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‘मोसाद’ का वह एजेंट जिसने भारत से की गद्दारी, उल्‍फा को दिलाई थी 600 राइफलें, खौफनाक था प्‍लान

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‘मोसाद’ का वह एजेंट जिसने भारत से की गद्दारी, उल्‍फा को दिलाई थी 600 राइफलें, खौफनाक था प्‍लान

Israel India Relations Mossad: इजरायल और भारत के बीच दोस्‍ती अपने चरम पर है और गाजा युद्ध में यह खुलकर देखा जा रहा है। भारत ने हमास के हमले को आतंकी घटना करार दिया था। इस बीच एक किताब में दावा किया गया है कि मोसाद के एक एजेंट ने भारत के साथ गद्दारी की थी।

तेलअवीव/ढाका/नई दिल्‍ली: इजरायल पर हमास के हमले के बाद दुनिया की सबसे खतरनाक खुफिया एजेंसी कही जाने वाली मोसाद चर्चा का विषय बनी हुई है। हमास के हमले में इजरायल के 1200 लोग मारे गए थे और इसे मोसाद की सबसे बड़ी असफलता माना जा रहा है। मोसाद का इतिहास हत्‍याओं और कई साहस‍िक मिशनों से भरा हुआ है लेकिन भारत के खिलाफ उसकी एक खतरनाक हरकत का अब खुलासा हुआ है। इजरायल के गाजा में हमलों का भारत ने विरोध नहीं किया है और पीएम मोदी ने हमास के हमले को आतंकी घटना बताया है। दोनों देशों के बीच दोस्‍ती भी अपने शिखर पर है। इन सबके बीच एक किताब में खुलासा हुआ है कि भारत के असम राज्‍य में सक्रिय उग्रवादी गुट उल्‍फा को मोसाद के एक एजेंट ने 600 राइफल और मशीन गन की पहली खेप मुहैया कराई थी।

हमारे सहयोगी TIN की रिपोर्ट के मुताबिक उग्रवादी संगठन यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम या उल्‍फा को हथियारों की पहली खेप रोमानिया से मिली थी। इस डील को भारतीय मूल के व्‍यक्ति ने कराया था जिसके बारे में कहा जाता है कि वह कथित रूप से इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के लिए काम करता था। यह दावा एक किताब में किया गया है जिसे जल्‍द ही लॉन्‍च किया जाने वाला है। इस किताब ‘उल्‍फा: द मिराज ऑफ डॉन’ के मुताबिक सिंगापुर में रहने वाला यह मोसाद का एजेंट रोमानिया की राजधानी बुखारेस्‍ट गया था।

रोमानिया से राइफल खरीदने का समझौता

मोसाद एजेंट के साथ उल्‍फा का चीफ ऑफ स्‍टॉफ परेश बरुआ भी और दो अन्‍य लोग भी रोमानिया गए थे। इस डील के तहत असॉल्‍ट राइफलें, पिस्‍तौल, लाइट मशीन गन और विस्‍फोटक उल्‍फा को दिए जाने पर सहमति बनी। यह पूरी घटना साल 1993 की है जब उल्‍फा के एजेंट असम से भागकर बांग्‍लादेश चले गए थे ताकि भारतीय सुरक्षा एजेंसियां उन्‍हें गिरफ्तार नहीं कर सकें। यह घटना साल 2004 के चटगांव केस से जुड़ा नहीं है जिसमें 10 ट्रक हथियार उल्‍फा को पहुंचाया जाना था। इस हथियार को बांग्‍लादेश की सुरक्षा एजेंसियों ने पकड़ लिया था।


इस किताब को वरिष्‍ठ पत्रकार राजीव भट्टाचार्य ने कई सालों के शोध के बाद लिखा है। इस किताब में उल्‍फा के विदेशी अड्डों के बारे में जानकारी दी गई है। उल्‍फा पाकिस्‍तान, भूटान, बांग्‍लादेश, म्‍यांमार और चीन के जरिए अपने अभियान चलाती थी। उल्‍फा में एक दशक पहले दो फाड़ हो गया था और उसके एक शीर्ष कमांडर अरविंद राजखोवा को बांग्‍लादेश ने भारत के सुपूर्द कर दिया था। इसके बाद राजखोवा शांति वार्ता में शामिल हो गया और माना जा रहा है कि जल्‍द ही इसको लेकर डील हो सकती है।

यूक्रेन भी गया था मोसाद का एजेंट

मोसाद एजेंट ने उल्‍फा के लिए जो हथियार डील कराई थी, उसके लिए परेश बरुआ ने जमकर संपर्क साधे थे। उसे सिंगापुर में मोसाद के भारतीय मूल के एजेंट का पता चला जिसके माता-पिता तमिलनाडु से वहां चले गए थे। वह बहुत करीबी से मोसाद से जुड़ा हुआ था। वह हथियारों की डील कराकर भी घूस कमाता था। बांग्‍लादेश में मौजूद उल्‍फा के दो उग्रवादियों ने इस मोसाद एजेंट के बारे में जानकारी दी है। इसमें खुलासा हुआ कि परेश बरुआ रोमानिया में खुद वहां के विदेश सचिव से मिला था।

रोमानिया के विदेश सचिव ने उल्‍फा चीफ से हथियारों की आवश्‍यकता पूछी और फिर उन्‍हें कई हथियार दिखाए गए। इसके बाद परेश बरुआ ने अपनी पसंद के हथियारों का चुनाव किया। इसके बाद उल्‍फा और रोमानिया के बीच एक डील हुई जिसके तहत परेश बरुआ को 600 हथियार भेजे गए। इस हथियार को एक जहाज के जरिए बांग्‍लादेश चटगांव पोर्ट भेजा गया था जहां उल्‍फा के शीर्ष कमांडर रहते थे। इसके बाद उल्‍फा चीफ ने मोसाद के उस भारतीय एजेंट के साथ यूक्रेन की यात्रा की ताकि भविष्‍य में और ज्‍यादा हथियार खरीदे जा सकें।

इजरायल ने मोसाद एजेंट को मरवाया!

उल्‍फा चीफ ने बांग्‍लादेश के अंदर एक छोटे जहाज का इंतजाम किया ताकि विदेश से आने वाले हथियारों को पोर्ट पर जाने से पहले ही समुद्र में उतार लिया जाए। फिर उसे चुपके से बांग्‍लादेश के अंदर पहुंचाया जाय। मोसाद का यह एजेंट भी उल्‍फा के सदस्‍यों के साथ छोटे जहाज में समुद्र के अंदर मौजूद थे। यह जहाज वहां पहुंचने की बजाय पोर्ट पर पहुंच गया जहां पुलिस ने उसे जब्‍त कर लिया। इससे उल्‍फा के प्‍लानिंग को बड़ा झटका लगा। वहीं मोसाद का वह एजेंट किसी तरह से बांग्‍लादेश से सिंगापुर भागने में कामयाब हो गया। हालांकि कुछ महीने बाद ही वह ‘लापता’ हो गया। उसका फिर कभी पता नहीं लगा। बांग्‍लादेश में मौजूद उल्‍फा के सदस्‍यों का उस समय मानना था कि उसे इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद ने भारतीय उग्रवादी गुट को हथियार मुहैया कराने के मामले का खुलासा होने पर मौत की सजा दे दी।

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