*राज्य के जलसंकट को देख, परमाणु सहेली बनी “जल सहेली”*
भारत की परमाणु सहेली के नाम से जानी जाने वाली डॉ नीलम गोयल ने आज हॉटल राजमहल में एक प्रेसवार्ता का आयोजन किया । परमाणु सहेली ने प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि वर्तमान में के भारत 6 लाख गाँवों में निवास करने वाली भारत की लगभग 95 करोड़ (लगभग 70%) ग्रामीण आँचल की जनता की प्रति व्यक्ति सालाना औसत आय मात्र 8000 रूपये है, जबकि शहरी आँचल में यह सालाना आय तकरीबन 6 लाख रूपये है।
पिछले 40 वर्षों के समयांतराल में अनगिनित संख्या में बाग़-के-बाग़ और पेड़ों का सफाया हुआ और लगभग 1200 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि का विस्तार हुआ। भूजल व क्यारी-धोरा से सिचाई हेतु खेत-खेत पर निजी डी-प्रचालित ट्यूबवेल का भी अत्यधिक प्रयोग हुआ फलस्वरूप 40 वर्ष पूर्व, राजस्थान राज्य में 10-50 फ़ीट तक की गहराई में उपलब्ध भूजल, आज 300-1200 फीट नीचे तक चला गया है। तालाब सूखते गए और नदियाँ लुप्त होती गयीं। भारत के 773 जिलों में 250 जिले डार्क जोन घोषित हो गए हैं। 21 महानगरों में भूजल लगभग समाप्त हो गया है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले एक ही दशक में राजस्थान का 80 प्रतिशत भूभाग हड़प्पा व मोहनजोदाड़ो के सदृश्य बन जाएगा।
पानी की इस त्रासदी के कारण, कृषि व पशुपालन, ग्रामीण आँचल के दोनों ही मुख्य व्यवसाय, अपना औचित्य खो रहे हैं। हर ग्रामीण परिवार से दो लोग बेरोजगार होकर शहरों की तरफ मुड़ रहे हैं। परमाणु सहेली ने बताया कि राजस्थान राज्य का किसान, 16 बीघा जमीन होते हुए भी, गर्मियों के दिनों में जयपुर जैसे शहर की सड़कों पर भीख मांगता हुए दिखाई देने लगा है |
*समाधान*
80-90% भूजल की मांग तो कृषि में सिंचाई के लिए ही होती है और पिछले 10 वर्षों में ही भारत ने अपना 60% भूजल खो दिया है। दूसरी ओर, हर साल भारत में 65% वर्षाजल खेत-खेत व नदी-नहर-नालों द्वारा गाँव-गाँव से व्यर्थ ही बहकर समुद्र-सागर में मिल जाता है। जल की समुचित व्यवस्था के लिए अगर इस व्यर्थ बहते वर्षाजल को खेत-खेत तक ही संग्रहित कर लिया जावे तो पानी की सम्पूर्ण मांग की आपूर्ति भारत का प्रत्येक गाँव स्वयं ही कर सकेगा।
व्यर्थ बहते इस वर्षाजल को अगर भारत का हर छोटा, मध्यम व बड़ा किसान अपने ही खेत की 5% ज़मीन पर 10 फ़ीट गहरे जलखेत बनाकर संग्रहित कर ले तो अपने ही लिए बारोमसी सिंचाई की व्यवस्था कर सकता है। तो समाधान है हर खेत की 5% जमीन पर पर जलखेत का निर्माण परमाणु सहेली ने बताया कि हर किसान परिवार को जल आत्मनिर्भर बनाने के लिए जलखेत निर्माण में 4 कार्य शामिल किए गए हैं जिनमें:
*1. (ढलान दिशा में खेत के अंतिम छोर पर 10 फीट गहरे जलखेत के निर्माण*
*2. पानी के संधारण हेतु अंदर से लेकर ऊपर तक एक विशिष्ट प्लास्टिक शीट*
*3. जलखेत की फेंसिंग एवं*
*4. खेत की मुंडेरों पर चार-चार मीटर के अंतराल में फलदार पेड़-पौधों के रोपण*
परमाणु सहेली ने बताया कि उन्होंने IIT खडगपुर के विप्र गोयल के साथ (अपने संस्थान के मार्फत) 8 जून 2022 से 15 जून 2022 तक (वर्षा प्रारंभ होने के दिन तक) सभी किसानों को तैयार करते हुए. मॉडल स्वरुप 10 जलखेतों का निर्माण भी करवा चुकी हैं। और यह 10 जल खेत इसी मॉनसून की बरसात के पानी से भर भी चुके हैं। इससे ग्रामीण जनों में एक ऐतिहासिक आशा का संचार हुआ और पूरी ग्राम पंचायत ऐसे ही जलखेत अपने-अपने खेतों पर बनवाने के लिए तैयार हो चुकी है।
*जलखेत बनाने में वर्तमान स्थिति व हमारा मॉडल*
राजस्थान राज्य हर साल 25000 जलखेतों को सब्सिडी देता है। जबकि कुल काश्तकार 80 लाख हैं। अगर यह मान भी लिया जाए कि हर साल 25000 जलखेत तैयार होंगे तो भी, इस गति से, हमें सभी काश्तकारों के जलखेत बनवाने में 320 साल लग जाएंगे। जबकि भूजल तो अगले 3 5 साल में ही खत्म हो जाएगा। राज्य में 80 लाख किसानों के जलखेत बनवाने के सपने को साकार करने के लिए सरकार के साथ-साथ बैंक, निवेशकर्ताओं, कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व सहायता, दानदाताओं, इत्यादि को भी तैयार करना होगा | इसी उदेश्य की पूर्ती हेतु, दौसा जिले की छारेड़ा ग्राम पंचायत को मॉडल स्वरुप विकसित किया जा रहा है। जिसकी स्वीकृति केंद्र व राज्य सरकार दोनों ने दी है। इस मॉडल से जलसंरक्षण, आय, रोजगार, वातावरण व अन्य तबकों पर प्रभाव को देख सभी हितदारकों को इस जल क्रान्ति से सच में ही जोड़ा जा सकेगा। परमाणु सहेली ने बताया कि जहाँ आज कुल GDP का मात्र 0.2 प्रतिशत ही कृषि सेक्टर में निवेश होता है. इस मॉडल के बनने से, निवेश प्रतिशत को 30 से 40 तक पहुँचाकर – “सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास, सबका विश्वास” के सपने को सच में ही ग्रामीण भारत में साकार किया जा सकेगा।
*ग्राम पंचायत को हर मोर्चे पर आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य*
राजस्थान राज्य की छारेड़ा ग्राम पंचायत में हर खेत पर जलखेत के निर्माण से जल पर्याप्त मॉडल ग्राम पंचायत के रूप में विकसित किया जा रहा है। साथ ही, स्थानीय व किफायती चारे की व्यवस्था हेतु फेंसिंग, गुमटी व चौकीदार सहित चरागाह विकसित किये जाएँगे, स्थानीय व किफायती मशीनों की व्यवस्था हेतु कस्टम हायरिंग सेंटर विकसित किया जाएगा, कच्चे कृषि व सहचरी उत्पादन के मूल्य संवर्धन हेतु खाद्य व दुग्ध प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना की जाएगी जिनसे होने वाले मुनाफे को किसान उत्पादकों में ही एक FPO के माध्यम से शेयरहोल्डर बतौर वितरित किया जाएगा | ग्रामीण परिवारों के लिए स्थानीय व किफायती रसोई गैस, ऑर्गेनिक खेती के लिए जैविक खाद व कीटनाशक की व्यवस्था हेतु एक बायोगैस सयंत्र की स्थापना की जाएगी | सभी सयंत्रों से तैयार उपभोक्ता माल की बिक्री हेतु पोर्टेबल मिनी- शॉप्स की स्थापना व ऑनलाइन ई-कॉमर्स प्लेटफार्म विकसित किये जाएँगे । घर-घर पर वर्षाजल संरक्षण हेतु रूफटॉप रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम व किचिन-बाथरूम के पानी को प्रकृतिक रूप से छानकर भूजल रिचार्ज करने हेतु सोख पिटों का निर्माण किया जाएगा।











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