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लूणकरणसर: संथारा साधिका रिद्धू देवी दुगड़ की संलेखना पूर्वक आत्मावलोकन करते हुए देह त्याग

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लूणकरणसर। तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य श्री महाश्रमण की श्राविका रिद्धू देवी द्वारा छ दिवसीय आत्मावलोकन करते हुए संलेखना पूर्वक देह त्याग करने पर उनकी अंतिम यात्रा में जैन जैनेतर समाज के बालक बालिकाओं के साथ हजारों लोग उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करने शामिल हुए ।

आचार्य महाश्रमण की शिष्या बसंत प्रभा द्वारा संथारा संलेखना त्याग करवाया गया।

साधुमार्गी शासन दीपक संत निश्नेयश मुनि महाराज सा.द्वारा मंगल पाठ का लाभ भी प्राप्त किया।

उनके पुत्र संपतलाल दुगड़ ने बताया कि उनकी माताजी की भावना सदैव धर्म परायण रही जागरूकता के साथ शतायु की अवस्था पूर्ण करने पर भी वे धर्म के प्रति सजग रही ।

बुध मल दूगड़,मूलचंद,मनोज के साथ अंतिम यात्रा में समाज के गणमान्य लोग सम्मिलित हुए।

तेरापंथ भवन में शासन श्री साध्वी बसंत प्रभा के सानिध्य में स्मृति सभा का आयोजन किया गया जिसमें उन्होंने कहा कि मृत्यु तो निश्चित है पर लक्षित मंजिल को पाने एवं मृत्यु को महोत्सव बनाना बड़ी बात है जागते रहते हुए आत्मवलोकन करना श्रावकों को अनशन करना तीसरा मनोरथ है जैन धर्म में संथारे का महत्व है ।लूणकरणसर
संथारा साधिका रिद्धू देवी दुगड़ की संलेखना पूर्वक आत्मावलोकन करते हुए देह त्याग

तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य श्री महाश्रमण की श्राविका रिद्धू देवी द्वारा छ दिवसीय आत्मावलोकन करते हुए संलेखना पूर्वक देह त्याग करने पर उनकी अंतिम यात्रा में जैन जैनेतर समाज के बालक बालिकाओं के साथ हजारों लोग उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करने शामिल हुए ।

आचार्य महाश्रमण की शिष्या बसंत प्रभा द्वारा संथारा संलेखना त्याग करवाया गया।

साधुमार्गी शासन दीपक संत निश्नेयश मुनि महाराज सा.द्वारा मंगल पाठ का लाभ भी प्राप्त किया।

उनके पुत्र संपतलाल दुगड़ ने बताया कि उनकी माताजी की भावना सदैव धर्म परायण रही जागरूकता के साथ शतायु की अवस्था पूर्ण करने पर भी वे धर्म के प्रति सजग रही ।

बुध मल दूगड़,मूलचंद,मनोज के साथ अंतिम यात्रा में समाज के गणमान्य लोग सम्मिलित हुए।

तेरापंथ भवन में शासन श्री साध्वी बसंत प्रभा के सानिध्य में स्मृति सभा का आयोजन किया गया जिसमें उन्होंने कहा कि मृत्यु तो निश्चित है पर लक्षित मंजिल को पाने एवं मृत्यु को महोत्सव बनाना बड़ी बात है जागते रहते हुए आत्मवलोकन करना श्रावकों को अनशन करना तीसरा मनोरथ है जैन धर्म में संथारे का महत्व है आत्मा को शुद्ध करते हुए वीतराग बनने की दिशा में प्रयास करना चाहिए।

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