सत्ता रहे या जाए, अफसर हमेशा रहे गहलोत-राजे के साथ:हेलिकॉप्टर डगमगाया, लेकिन नहीं छोड़ा CM का हाथ, हाईकोर्ट के दखल से हटे वसुंधरा के भरोसेमंद IAS
जयपुर

जब भी सत्ता बदलती है, पूर्ववर्ती सरकार में लगे करीबी अफसरों को बदल दिया जाता है। इस तरह के तबादले सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया है। इन सबके बीच राजस्थान के 2 मुख्यमंत्री ऐसे रहे, जिनके चुनिंदा अफसर हमेशा उनके साथ रहे। वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत ऐसे नाम हैं, जो सत्ता में रहे या नहीं, उनके साथ रहे कुछ खास अफसरों का साथ उनको हमेशा मिला।
ये मुद्दा इसलिए चर्चा में है, क्योंकि हाल ही में भाजपा की भजनलाल सरकार ने जो तबादले किए उनमें अशोक गहलोत के उन पसंदीदा अफसर के नाम थे, जो 26 साल से उनके साथ थे। कई इतने प्रभावशाली कि कैबिनेट के मंत्रियों तक से इंतजार करवाते थे। एक पुलिस अधिकारी ने तो जान की परवाह किए बगैर सीएम की हिफाजत की थी।
इसी तरह कुछ अफसर वसुंधरा राजे के साथ भी रहे, जिन्हें हाईकोर्ट के दखल के बाद हटाया गया। मंडे स्पेशल स्टोरी में आज उन अफसरों की कहानी, जिन पर सत्ता परिवर्तन का भी कोई असर नहीं पड़ा। आखिर क्यों उन्हें कभी हटाया नहीं गया?
सबसे पहले उन अफसरों की बात जो पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी रहे
1. देवाराम सैनी : ‘पावरफुल’ ओएसडी, कैबिनेट मंत्रियों को भी करवाते थे इंतजार

मूल रूप से सीकर के रहने वाले देवाराम सैनी 1998 बैच के आरएएस अधिकारी हैं।
आरएएस अधिकारी देवा राम सैनी उन अधिकारियों में से हैं, जिनके तबादले पर सभी की नजरें रहीं। अशोक गहलोत मुख्यमंत्री रहे या नहीं रहे, देवाराम सैनी हमेशा उनके साथ रहे। गहलोत के विश्वासपात्र अधिकारियों में से एक सैनी उनके ही समाज से आते हैं।
पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान देवाराम सैनी मुख्यमंत्री के ‘पावरफुल’ ओएसडी रहे। गहलोत कैबिनेट में रहे कई मंत्रियों ने बातचीत में बताया कि स्थिति यह थी कि मंत्रियों तक को इंतजार करवा देते थे। जिसकी शिकायत महिला मंत्री सहित दो अन्य कैबिनेट मंत्रियों ने भी अशोक गहलोत से की थी।
मंत्रियों ने गहलोत से देवा राम पर उनके बताए काम अटकाने के भी आरोप लगाए थे। गहलोत से शिकायत करने पहुंचे मंत्रियों ने कहा था कि आपका नाम लेकर देवाराम काम अटका देते हैं। फिर आपसे बात करने के बाद ही संबंधित काम हो पाते हैं। खुद गहलोत ने देवाराम को मंत्रियों से मिली शिकायतों के बाद निर्देशित भी किया था।

देवाराम सैनी की भतीजी के विवाह समारोह में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत।
दूसरे कार्यकाल में जुड़े, फिर छोड़ा नहीं साथ
बतौर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का दूसरा कार्यकाल 2008 से 2013 के बीच रहा था। गहलोत सरकार बनने के तत्काल बाद 16 दिसंबर 2008 को देवाराम को सीएम ओएसडी पद पर नियुक्ति का आदेश जारी हुआ। उन्होंने अगले ही दिन कार्यभार संभाला। इससे पहले ये जेडीए में तैनात थे। गहलोत के सरकार में बने रहने तक यानी 13 दिसंबर 2013 तक वे लगातार सीएम के ओएसडी पद पर रहे।
इसके बाद 2013 में बीजेपी की वसुंधरा राजे सत्ता में आईं, लेकिन देवाराम का तबादला नहीं हुआ। वे अशोक गहलोत के साथ ही रहे। राजे सरकार ने देवा राम के लिए 9 दिसंबर 2013 को पूर्व सीएम अशोक गहलोत का स्पेशल असिस्टेंट के पद पर नियुक्त करने का आदेश जारी कर दिया। 13 दिसंबर को ओएसडी पद से रिलीव होने के बाद उन्होंने 17 दिसंबर 2013 को नए पद पर काम शुरू किया। देवा राम इस पद पर भी पूरे पांच साल रहे।
इसके बाद गहलोत जब वापस 2018 में तीसरी बाद सीएम बने, तब देवाराम सैनी के लिए 18 दिसंबर 2018 को ओएसडी टू सीएम का आदेश जारी हुआ और वे फिर पूरे पांच साल इस पद पर लगातार बने रहे।
अब एक बार एपीओ, 2 बार तबादला : इतने साल तक पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ रहे देवाराम सैनी को भाजपा की भजनलाल सरकार ने एपीओ कर दिया। पहले उन्हें अतिरिक्त संभागीय आयुक्त बांसवाड़ा लगाया गया। इसके बाद बीकानेर की कृषि यूनिवर्सिटी में रजिस्ट्रार पद पर लगाया गया।
2. राम निवास चेजारा : हेलिकॉप्टर की इमरजेंसी लैंडिंग में फंसे गहलोत को बचाया

रामनिवास चेजारा मूल रूप से जयपुर के रहने वाले हैं।
1998 में अशोक गहलोत पहली बार मुख्यमंत्री बने। तब से लगातार 26 साल तक एक पुलिस ऑफिसर राम निवास चेजारा उनकी सिक्योरिटी में हमेशा तैनात रहे। चाहे गहलोत मुख्यमंत्री रहे या नहीं, राजे सरकार ने भी चेजारा को गहलोत के पास से कभी नहीं हटाया। पहले वे सब इंस्पेक्टर थे, आउट ऑफ टर्न प्रमोट होकर इंस्पेक्टर बने और 2022 में डिप्टी एसपी बने।
राम निवास का नाम लोगों के बीच चर्चा में आया था, जब गहलोत बतौर मुख्यमंत्री नवंबर 2011 में हेलिकॉप्टर में आई एक तकनीकी खराबी के कारण बाल-बाल बचे थे। गहलोत ने जयपुर से नांगल (चूरू) में एक स्पोट्र्स अकादमी के कार्यक्रम में जाने के लिए उड़ान भरी थी। बीच में ही हेलिकॉप्टर के एक विंग में तकनीकी खराबी आ गई।
इस खराबी के चलते हेलिकॉप्टर हवा में ही जोर-जोर से वाइब्रेट (हिलने व डगमगाने) होने लगा था। इस दौरान उनके साथ सुरक्षा अधिकारी राम निवास और तत्कालीन निजी सचिव गौरव बजाड़ थे। हेलिकॉप्टर के भीतर डर का माहौल हुआ। तब राम निवास अपना फर्ज निभाते हुए सीएम की हिफाजत में जुट गए।

ये वो समय था जब हेलिकॉप्टर की इमरजेंसी लैंडिंग करवानी थी, लेकिन किसी को पता नहीं था कि हेलिकॉप्टर जमीन पर लैंड कर पाएगा या नहीं। उस दौरान अपनी जान की परवाह किए बगैर चेजारा सीएम को प्रोटेक्ट करने में जुट गए।
सीएम का हेलिकॉप्टर चूरू से करीब 10 किमी पहले चांदपुर गांव में आपातकालीन स्थिति में उतारा गया। इस घटना में कोई जनहानि नहीं हुई। इसके बदले राम निवास को आउट ऑफ टर्न प्रमोशन मिला और गैलेंट्री अवार्ड भी मिला।
26 साल में पहली बार तबादला : करीब 26 साल तक लगातार गहलोत के पीएस रहे चेजारा का पहली बार तबादला हुआ है। उन्हें भाजपा सरकार ने पुलिस ट्रेनिंग सेंटर में लगा दिया है।
3. किशोरीलाल सैनी और नीरज मेवानी

किशोरी लाल सैनी भी 26 साल तक अशोक गहलोत की सिक्योरिटी में तैनात रहने वाले अफसरों में हैं।
मूल रूप से झुंझुनूं के रहने वाले प्रमोटी आरपीएस किशोरी लाल सैनी भी राम निवास चेजारा की तरह 26 साल से अशोक गहलोत के साथ रहे। किशोरी लाल सैनी भी गहलोत के विश्वासपात्र अफसरों में से रहे और उनके समाज से ही आते हैं।
गहलोत के पहले कार्यकाल से ही किशोरी लाल सैनी को सीएम सिक्योरिटी में तैनाती मिली थी। तब वे सब इंस्पेक्टर के पद पर थे। बाद में उन्हें 2018 में प्रमोशन मिला और आरपीएस अधिकारी बन गए। गहलोत तीन बार सीएम रहे लेकिन किशोरी लाल सैनी को नहीं हटाया गया।

नीरज मेवानी का हाल ही में जारी हुई तबादला सूची में नाम आया है।
इसी तरह चौथा नाम प्रमोटी RPS नीरज मेवानी का आता है। वे भी पिछले डेढ़ दशक से गहलोत के साथ सिक्योरिटी में थे।
अब हुआ तबादला : भजनलाल सरकार ने किशोरीलाल सैनी का भरतपुर और नीरज मेवानी का खैरवाड़ा पुलिस ट्रेनिंग सेंटर में तबादला कर दिया है।
वसुंधरा राजे के साथ भी कई सालों से जुड़े हैं 2 अफसर
अशोक गहलोत की तरह ही वसुंधरा राजे के साथ भी कुछ अफसर लंबे समय तक जुड़े रहे। जैसे गहलोत के पसंदीदा अधिकारियों को राजे ने सरकार में आने के बाद नहीं हटाया, ठीक वैसे ही राजे के पसंदीदा अधिकारियों को गहलोत ने सत्ता आने के बाद उनके पास ही बनाए रखा। इनमें 2 चेहरे प्रमुख हैं।
1. गजानन्द शर्मा : डिप्टी चीफ प्रोटोकॉल अफसर से बने सीएम राजे के ओएसडी

1985 बैच के आरएएस रहे गजानंद शर्मा प्रमोटी आईएएस हैं।
वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री बनने से पहले गजानंद शर्मा डिप्टी चीफ प्रोटोकॉल ऑफिसर, जीएडी के पद पर काम कर रहे थे। राजे जब पहली बार मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने 5 फरवरी 2004 में उन्हें अपना ओएसडी बनाया। गजानंद इस पूरे कार्यकाल में लगातार उनके ओएसडी रहे।
भाजपा 2008 का विधानसभा चुनाव हार गई। सत्ता में आई कांग्रेस की गहलोत सरकार ने गजानंद शर्मा को 7 जनवरी, 2009 को इस पद से हटाकर कहीं और लगा दिया। इसके बाद वसुंधरा राजे जब नेता प्रतिपक्ष बनीं, तो गहलोत सरकार ने 2011 में एक बार फिर गजानंद को राजे के पास स्पेशल असिस्टेंट के पद पर लगा दिया। राजे नेता प्रतिपक्ष के पद से हटीं, तो फरवरी 2013 में गजानंद को उनके पास प्राइवेट सेक्रेटरी पद पर लगाने के आदेश जारी हो गए।
कांग्रेस 2013 के विधानसभा चुनाव हार गई और भाजपा की सरकार आने के बाद वसुंधरा राजे फिर से सीएम बनीं। उन्होंने गजानंद को फिर पूरे पांच साल अपने पास ओएसडी पद पर लगाए रखा। राजे जब 2018 में चुनाव हारीं, तब गहलोत सरकार ने फिर गजानंद को 8 जनवरी से सितंबर, 2019 तक पूर्व सीएम का ओएसडी लगाए रखा।

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ गजानंद शर्मा (चेक शर्ट में।
हाईकोर्ट के आदेश से हटे गजानंद
आईएएस गजानंद को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का विशेषाधिकारी नियुक्त करने पर काफी बवाल हुआ था। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी पूर्व मुख्यमंत्री को आईएएस या आरएएस अधिकारी को विशेष अधिकारी लगाने पर रोक लगाई हुई थी। लेकिन अशोक गहलोत सरकार ने राज्य के कानून का हवाला देकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए आईएएस गजानंद शर्मा की नियुक्ति कर दी थी।
इस पर राजस्थान हाईकोर्ट ने उस समय पूर्व मुख्यमंत्रियों को दी जाने वाली आवास सहित अन्य सुविधाओं को असंवैधानिक करार दिया था। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा था कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सुविधाएं नहीं दी जा सकती। गजानंद पहले आरएएस थे, इसके बाद वे प्रमोटी आईएएस बने थे। अब वे रिटायर हो चुके हैं।
2. कुलदीप सिंह : राजे की सुरक्षा में दो दशक से साथ
वसुंधरा राजे के बतौर मुख्यमंत्री पहले कार्यकाल से ही कुलदीप सिंह उनकी सुरक्षा में तैनात रहे। राजे के पहले कार्यकाल के बाद गहलोत दो बार सत्ता में आए लेकिन कुलदीप सिंह का तबादला नहीं हुआ। कुलदीप सिंह राजे के साथ आज भी तैनात हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री के पीछे सफारी सूट में कुलदीप सिंह अभी भी उनकी सिक्योरिटी में हैं।
गहलोत सरकार ने कर दिया अधिनियम में संशोधन
पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन कैबिनेट मंत्री का दर्जा और सरकारी सुविधाओं से जुड़े ‘राजस्थान मंत्री वेतन अधिनियम 1956’ में पूर्ववर्ती गहलोत सरकार ने संशोधन को मंजूरी दी थी। इसके तहत पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी सुविधाओं का हकदार बना दिया था। इसके तहत ये पूर्व मुख्यमंत्रियों को ये सुविधाएं मिल रही थीं…
- आजीवन सरकारी बंगला
- 10 लोगों का लिपिकीय स्टाफ
- 3 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी
- सरकारी ड्राइवर
- राज्य व राज्य के बाहर गाड़ी के भरपूर उपयोग की छूट
- पूर्व मुख्यमंत्री के परिवार को भी सरकारी सुविधाओं के इस्तेमाल में छूट

सुप्रीम कोर्ट के बाद राजस्थान हाईकोर्ट ने लगाई रोक
पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सुविधा देने के राजस्थान सरकार के कानून को 4 सितंबर, 2019 को मिलापचंद डांडिया एवं अन्य ने याचिका लगाकर चुनौती दे दी। इससे पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी सुविधाओं को लेकर यूपी सरकार के विधेयक को असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यूपी में भी पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगला खाली करने के आदेश दिए गए थे।
इसके बाद राजस्थान हाईकोर्ट ने भी सरकार के खिलाफ फैसला सुनाते हुए पूर्व मुख्यमंत्रियों से सुविधाएं वापस लेने के ऑर्डर जारी कर दिए। फैसले के समय राजस्थान में वर्तमान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और जगन्नाथ पहाड़िया को सुविधाएं मिल रही थीं।
पूर्व सीएम को सरकार अपने विवेक से विशेषाधिकारी या सचिव पद पर अधिकारियों को लगा रही थी, लेकिन कोर्ट का फैसला आने के बाद अब ये व्यवस्था बंद हो गई है।
क्या सीएम-पूर्व सीएम के पास इस तरह से लगाए जा सकते हैं अधिकारी?
पूर्व आईएएस महावीर सिंह के अनुसार, अधिकारियों को कहां लगाना है, ये सरकार के क्षेत्राधिकार में है। अब सरकार किसी पूर्व सीएम के पास किसी अधिकारी को लगाए रखती है या नहीं, ये संबंधित सरकार पर ही निर्भर करता है।
इसे लेकर कोई विशेष नियम नहीं है। पार्टियों के नेताओं के बीच आपसी तालमेल के आधार पर भी अफसरों को लगाया जाता रहा है। हालांकि पूर्व सीएम को मिलने वाली सुविधाओं पर रोक लगाई गई थी, तब से सरकारें थोड़ी सावधानी बरतती हैं।
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