REPORT BY DR MUDITA POPLI
सलाहकार ने राहुल गांधी को कहे अपशब्द:बाजार बंद, पथराव हो रहा था, लेकिन कलेक्टर साहब ने अपना सम्मान रुकने नहीं दिया*
सरकारों-नेताओं के घोषित-अघोषित सलाहकार कई बार संकट मोचक बनने की जगह संकट की वजह बन जाते हैं। प्रदेश के मुखिया के एक सलाहकार इन दिनों सुरक्षित सीट तलाश रहे हैं। सलाहकारजी के बारे में एक किस्सा ग्राउंड से आया है, जो प्रदेश के मुखिया से लेकर पार्टी नेताओं तक को विचलित करने वाला है। सलाहकारजी ग्राउंड में लोगों के बीच एक ऐसे औद्यागिक घराने की तारीफ करने लगे जिसे पार्टी नेता हर बार कोसते रहते हैं। जब लोगों ने राहुल गांधी का हवाला देकर सवाल किया कि आपके नेता तो उस उद्योगपति को कोसते हुए नहीं थकते और आप यह कह रहे हैं। इस पर सलाहकारजी ने जो शब्द इस्तेमाल किया वह लिखा नहीं जा सकता। अब मुंह से निकला शब्द और बंदूक से निकली गोली अपना असर तो दिखाती ही है। बात जहां पहुंचनी चाहिए थी, वहां पहुंच गई है।
*सत्ताधारी पार्टी में यूथ पर ही मार*
प्रदेश की सत्ताधारी पार्ट में चिंतन शिविर में यूथ को आगे बढ़ाने पर खूब बातें हुईं लेकिन राजनीति में जो होता है वह दिखता नहीं और जो दिखता है, वो होता नहीं। चिंतन शिविर में यूथ को 50 प्रतिशत पद देने की घोषणा हुई। अब यूथ कांग्रेस के पूर्व और मौजूदा प्रदेशाध्यक्षों ने नाराज होकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। कई और युवा विधायक भी अलग अलग कारणों से नाराज हैं। पार्टी के सयाने नेता अब कह रहे हैं कि यूथ को 50 फीसदी पदों पर नियुक्ति मिलेगी तब मिलेगी, फिलहाल तो मार ही पड़ती दिख रही है।
*मंत्री पुत्र के कारनामों की दिल्ली तक गूंज*
सत्ता के गलियारों में मंत्री पुत्रों के चर्चे न हो तो जैसे राज की फीलिंग ही नहीं आती। एक मंत्री पुत्र को पिताजी का विभाग ऐसा भाया कि उनसे ज्यादा दफ्तर में नियमित हाजरी देने लग गए। मंत्री से ज्यादा हैडक्ववार्टर में मंत्री पुत्र के बैठने के पीछे तरह तरह के किस्से सामने आ रहे हैं। कुछ शुभचिंतकों ने आगाह भी कर दिया है कि इस तरह मंत्री पुत्र की हैडक्ववार्टर में बैठकें जारी रहीं तो यहां के कारनामों की गूंज एसीबी तक न पहुंच जाए। मंत्री पुत्र के कारनामों की दिल्ली तक भी चर्चा है।
*मंत्री की नाराजगी-जलालत के पीछे प्रभावशाली हाथ*
सरकार के प्रचार मंत्री की नाराजगी-जलालत की जयपुर से दिल्ली तक चर्चा है। प्रदेश के मुखिया के प्रमुख सचिव को लपेटकर मंत्रीजी ने क्रांति का बिगुल फूंक दिया, लेकिन नाराजगी के पीछे नई नई वजह सामने आ रही है। खेल के अंदर की बजट, पावर की राजनीति के अलावा सबसे बड़ा कारण सत्ता केंद्र के प्रभावशाली बेटे से अनबन भी है। इस अनबन के साइड इफेक्ट सामने आने लगे तो मंत्री की सहनशीलता का पैमाना छलक गया, लेकिन यूटर्न भी ले लिया। इस पूरे प्रकरण में कई परतें सामने आनी बाकी हैं।
*कलेक्टर को सम्मान की भूख*
सीमावर्ती जिले के एक कलेक्टर को इन दिनों सम्मान की चाह दीवानगी की हद तक हो गई है। रिटायरमेंट से पहले हर जगह सम्मान हो रहा है। पिछले दिनों एक कस्बे में बड़ा तनाव हो गया, बाजार बंद हो गए। संयोग से कलेक्टर भी शहर में थे, लेकिन उनका ध्यान खुद के सम्मान समारोह पर था। एक तरफ पत्थरबाजी हो रही थी,दूसरी तरफ कलेक्टर साहब का सम्मान समारोह चल रहा था। अब इतने जिम्मेदार प्रशासक हों तो फिर कानून व्यवस्था का हाल सब समझ सकते हैं। वैसे सम्मान करवा रहे कलेक्टर रिटायरमेंट के बाद नेता बनना चाहते हैं।
*नड्डा के सामने भी नहीं छिपी चेहरों की लड़ाई*
विपक्षी पार्टी में पिछले दिनों राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में एकजुटता के जितनी भी नसीहतें दी गई हों, लेकिन आंतरिक लोकतंत्र बाहर आए बिना नहीं रहता। राष्ट्रीय अध्यक्ष का बैठक से अलग शहर में एक ऑडिटोरियम में पार्टी के वरिष्ठ नेता पर लिखी किताब के विमोचन समारोह में बुलाया गया। उस कार्यक्रम में पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र खुलकर सामने आ गया। चेहरों की लड़ाई किस हद तक है यह नारों से पता लग गया। अब नसीहत और प्रैक्टिकल ग्राउंड में अंतर समझ आ गया होगा।
*अजीब सिस्टम, जिसके खिलाफ शिकायत उसे ही भेज दी*
सरकारी सिस्टम में शिकायतों को दूर करने पर चाहे कितने ही सिस्टम बन जाएं लेकिन जिलों के दफ्तरों की माया निराली है। सीमावर्ती जिले में सरकारी सिस्टम से परेशान एक टीचर ने इच्छा मृत्यु मांगते हुए कलेक्टर के नाम चिट्ठी लिखी। कलेक्टर ऑफिस ने प्राप्ति डालकर जिसके खिलाफ शिकायत थी उसे ही भेज दिया। अब जिसने शिकायत की उसकी हालत क्या हुई यह सब समझते हैं। संवेदनशीलता नारों से निकलकर सिस्टम में आने में अभी टाइम तो लगेगा ही।

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