डोगरी की ललद्यद थीं पद्मा सचदेव – ओम गोस्वामी
नई दिल्ली। 17 दिसंबर 2024। साहित्य अकादेमी द्वारा डोगरी और हिंदी की प्रख्यात लेखिका, कवयित्री और अनुवादिका पद्मा सचदेव के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित एक परिसंवाद का आयोजन आज साहित्य अकादेमी के तृतीय तल स्थित सभागार में किया गया। परिसंवाद के अतिथियों का स्वागत अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने अंगवस्त्रम् भेंट कर किया। अपने स्वागत वक्तव्य में के. श्रीनिवासराव ने कहा कि पद्मा जी का गहरा स्नेह उन्हें प्राप्त था। उन्होंने पद्मा सचदेव की साहित्यिक यात्रा और उनकी रचनाओं पर भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि पद्मा सचदेव मात्र डोगरी या हिंदी की ही नहीं, बल्कि भारतीय साहित्य की प्रबल प्रतिनिधि थीं।
साहित्य अकादेमी के डोगरी परामर्श मंडल के संयोजक मोहन सिंह ने आरंभिक वक्तव्य देते हुए कहा कि पद्मा सचदेव का व्यक्तित्व बहुमुखी था, और यह उनके विविध तथा विपुल लेखन में भी दिखता है। डोगरी और पद्मा सचदेव एक दूसरे का पर्याय बन गए हैं। उन्होंने कहा कि पद्मा सचदेव ने डोगरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए जम्मू से लेकर दिल्ली तक बड़ा संघर्ष किया था।
विजय वर्मा ने बीज वक्तव्य देते हुए अपने संस्मरणों के माध्यम से पद्मा सचदेव के वत्सल व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनकी रचनाओं की विशिष्टता को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि भारतीय साहित्य की प्रसिद्ध स्त्री रचनाकारों के जब भी नाम लिए जाएँगे तब पद्मा सचदेव का नाम उसमें आदर के साथ शामिल रहेगा। उन्होंने कहा कि पद्मा सचदेव ने डोगरी भाषा, साहित्य और संस्कृति को देश-विदेश में पहुँचाने का अविस्मरणीय कारनामा अंजाम दिया है।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता डोगरी के प्रख्यात लेखक ओम गोस्वामी ने की। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि पद्मा सचदेव के व्यक्तित्व की ऊँचाई इसी से समझी जा सकती है कि उन्हें डोगरी के साहित्याकाश का ध्रुवतारा, डोगरी की ललद्यद और हब्बा खातून जैसी उपाधियों से अनेक साहित्यकारों ने बड़े ही सम्मान के साथ अलंकृत किया है। उन्होंने तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवनदशा को अपने सशक्त लेखन में प्रस्तुत करके साहित्य को प्रेरणादायी ऊर्जा से लैश कर दिया है।
प्रथम सत्र की अध्यक्षता नीलम सरीन ने की और सरिता खजूरिया ने ‘पद्मा सचदेव की कविता‘ पर तथा सुषमा चौधरी ने ‘पद्मा सचदेव की कहानियाँ और उपन्यास‘ पर केंद्रित अपने आलेख प्रस्तुत किए। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता शिवदेव सुशील ने की तथा सुषमा रानी राजपूत ने ‘पद्मा सचदेव का हिंदी साहित्य को योगदान‘ पर तथा खजूर सिंह ठाकुर ने ‘पद्मा सचदेव का डोगरी साहित्य को योगदान‘ विषय पर अपने सुचिंतित आलेख प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन अकादेमी में संपादक (हिंदी) अनुपम तिवारी ने किया। परिसंवाद में बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी मौजूद रहे।
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