NATIONAL NEWS

साहित्य अकादमी पुस्तकायन का चौथा दिन बहुभाषी कवि सम्मिलन एवं अनुवाद पर हुई परिचर्चा

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

साहित्य अकादेमी पुस्तकायन का चौथा दिन

बहुभाषी कवि सम्मिलन एवं अनुवाद पर हुई परिचर्चा

कविता किसी भाषा की मोहताज नहीं – आशुतोष अग्निहोत्री

दिव्यांग बच्चों ने प्रस्तुत किया सांस्कृतिक कार्यक्रम

नई दिल्ली। 9 दिसंबर 2024; साहित्य अकादेेमी द्वारा आयोजित किए जा रहे पुस्तक मेले पुस्तकायन के चौथे दिन ‘विविधता में एकता के माध्यम के रूप में अनुवाद’ विषय पर परिचर्चा एवं बहुभाषी कविता-पाठ का आयोजन किया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रम में नेशनल एसोसिएशन फॉर ब्लाइंड के सुरकीर्ति बैंड द्वारा एक संगीतमयी प्रस्तुति दी गई। उन्होंने गाँधी भजन और देशभक्ति के कई गीत प्रस्तुत किए।
बहुभाषी कवि सम्मिलन आशुतोष अग्निहोत्री की अध्यक्षता में हुआ, जिसमें मिताली फूकन (असयिमा), बी.आर. मंडल (बाङ्ला), जितेंद्र श्रीवास्तव (हिंदी), रफ़ीक़ मसूदी (कश्मीरी), भूमा वीरवल्ली (तमिऴ) एवं ए. कृष्णाराव (तेलुगु) ने अपनी-अपनी कविताएँ हिंदी/अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रस्तुत कीं। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में अंग्रेजी एवं हिंदी के कवि आशुतोष अग्निहोत्री ने कहा कि आज यहाँ विभिन्न भारतीय भाषाओं की कविता सुनकर लगा कि कविता किसी भाषा की मोहताज नहीं होती है उसमें भाव ही प्रमुख होते हैं। उन्होंने सभी कवियों की कविताओं को श्रेष्ठ बताते हुए महाभारत के पात्र अभिमन्यु की मृत्यु पर एक लंबी कविता प्रस्तुत की।
इससे पहले अनुवाद पर आयोजित परिचर्चा की अध्यक्षता हरीश नारंग ने की और उसमें रख़्शंदा जलील एवं रेखा सेठी ने अपने विचार व्यक्त किए। रख़्शंदा जलील ने अनुवाद में विविधता में एकता की उपस्थिति को मध्ययुगीन भक्ति काव्य में रेखांकित करते हुए कहा कि भक्ति कालीन समय इस उपलब्धि का मील का पत्थर है। अब्दुल रहीम खानखाना का उल्लेख करते हुए कहा कि यह वह काल था जब अनेक भारतीय कालजयी कृतियों का अनुवाद तो हुआ ही बल्कि वह अनुवाद चित्रों के साथ था, जिससे उसको व्यापक लोकप्रियता मिली है। रेखा सेठी ने अनुवाद को एक जुगलबंदी मानते हुए कहा कि इंटरनेट आने के बाद अनुवाद की दुनिया और व्यापक हुई है, लेकिन संतुलित अनुवाद की जरूरत अभी भी बनी हुई है। हरीश नारंग ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि भारत भाषाओं के मामले में विश्व की सबसे बड़ी प्रयोगशाला है। साहित्य अकादेमी की स्थापना सभी भाषाओं को सम्मान देने के उद्देश्य से की गई। भारत में भाषा के सवालों को बड़ी ही सहजता से सँभाला गया है। लेकिन नए अनुवादकों की आवश्यकता अभी भी बनी हुई है।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

About the author

THE INTERNAL NEWS

Add Comment

Click here to post a comment

error: Content is protected !!