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साहित्य अकादमी में दो दिवसीय वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य जन्मशतवार्षिकी संगोष्ठी का समापन

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आम आदमी के संघर्ष हमेशा उनकी लेखनी में आते रहे – निर्मलकांति भट्टाचार्जी

उनके उपन्यास मानवता के प्रतीक है – सत्यकाम बरठाकुर

नई दिल्ली। 20 नवंबर 2024; असमिया के प्रख्यात लेखक एवं साहित्य अकादेमी के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य की जन्मशतवार्षिकी के अवसर पर साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित दो-दिवसीय संगोष्ठी का आज समापन हुआ। आज के प्रथम सत्र की अध्यक्षता कुलधर सइकिया ने की। इस सत्र में विभाष चौधरी, निर्मल कांति भट्टाचार्जी एवं सत्यकाम बरठाकुर ने अपने आलेख प्रस्तुत किए। दूसरा सत्र मनोज गोस्वामी की अध्यक्षता में हुआ, जिसमें अनुराधा शर्मा दीप सइकिया एवं दिलीप चंदन ने अपने आलेख प्रस्तुत किए।
वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य की कथात्मक उपलब्धियों पर आधारित आज के प्रथम सत्र की अध्यक्षता कर रहे कुलधर सइकिया ने उनके उपन्यासों पर चर्चा करते हुए कहा कि इनमें जहाँ विभिन्न स्थानीय सामाजिक टकराव हैं, वहीं परिवेश का संयोजन बहुत अच्छे ढंग से किया गया है। भट्टाचार्य जी के उपन्यास ‘आई’ का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इस उपन्यास में एक ऐसी माँ की परिकल्पना की गई है, जो किसी एक व्यक्ति की नहीं बल्कि एक पूरे समाज की माँ है। आगे उन्होंने कहा कि उनके उपन्यास या कहानियों के प्रारंभ और अंत बेहद दिलचस्प होते हैं और पाठकों को काफी कुछ सोचने पर मजबूर करते हैं। भट्टाचार्य जी की रचनाओं में कथात्मक तकनीक और चरित्र विकास पर बोलते हुए विभाष चौधरी ने कहा कि उन्होंने अपने लेखन में जहाँ रूस के लेखकों लियो टॉलस्टाय और फ्योदोर दोस्तोएव्स्की से प्रेरणा ली, वहीं उनके पत्रकारिता का अनुभव भी उनके काम आया। उन्होंने अपने कथानक में एक ऐसा निर्माण तंत्र प्रयुक्त किया जिसमें उनके लिए पाठक महत्त्वपूर्ण था। इतिहास और वर्तमान के मेल से उन्होंने ऐसी तकनीक तैयार की, जिसे आगामी वर्षों में अनेक लेखकों के लिए प्रेरणा का काम किया। निर्मल कांति भट्टाचार्जी ने उनके कहानी से उपन्यास तक पहुँचने की पूरी यात्रा का विवरण देते हुए बताया कि वे गाँधी से बेहद प्रभावित थे और उन्होंने अपने आस-पास के परिवेश को अपने लेखन के लिए चुना। उनकी इस कथा यात्रा में आम आदमी के संघर्ष हमेशा उनकी लेखनी में आते रहे। भट्टाचार्य जी की विरासत के बारे में बोलते हुए सत्यकाम बरठाकुर ने कहा कि उन्होंने असम में बदलाव की पृष्ठभूमि को अंग्रेजांे के समय से लेकर बाद तक बहुत गहराई से पकड़ा और उसे आने वाली पीढ़ियों को भी सौंपा। उनके उपन्यास मानवता के प्रतीक हैं। उन्होंने गाँधी से प्रेरणा लेकर सत्य की महत्ता को स्थापित किया। उन्होंने उनके गीतों की भी चर्चा की और कहा कि अभी भी उनका बहुत कुछ अप्रकाशित है। उनका लेखन भारतीय लेखकों को लंबे समय तक प्रभावित करता रहेगा।
अगले सत्र में जो कि भट्टाचार्य जी के संपादन और असमिया साहित्य के विकास का नेतृत्व विषय पर केंद्रित था, की अध्यक्षता करते हुए मनोज गोस्वामी ने कहा कि उन्होंने अपने विस्तृत लेखन से युवाओं की कई पीढ़ियों को प्रभावित किया और उनके लिए ऐसी विरासत छोड़ी है जो उनका मार्गदर्शन लंबे समय तक करती रहेगी। अनुराधा शर्मा ने कहा कि उन्होंने अपनी पत्रिका ‘रामधेनु’ से युवा लेखकों की एक ऐसी सजग लेखकीय पीढ़ी तैयार की जिसने आगे चलकर असमिया साहित्य को गहराई तक प्रभावित किया। दीप सइकिया ने उनके संपादन कार्य और असमिया साहित्य में आधुनिकतावाद पर अपना आलेख प्रस्तुत किया तथा दिलीप चंदन ने उनकी संपादकीय दृष्टि और नए रूझानों के निर्माण पर विस्तार से जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया।

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