NATIONAL NEWS

साहित्य अकादमी में भारत-रूसी लेखक सम्मिलन संपन्न

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

अनुवाद की कला : निष्ठा बनाम रचनात्मकता पर हुआ विचार विमर्श

नई दिल्ली 4 फ़रवरी 2025। साहित्य अकादेमी ने आज भारत में रूसी महासंघ के दूतावास तथा रशियन हाउस, नई दिल्ली के सहयोग से भारत-रूसी लेखक सम्मिलन का आयोजन किया। इस लेखक सम्मिलन में अनुवाद की कला : निष्ठा बनाम रचनात्मकता विषय पर विचार विमर्श हुआ। सम्मिलन में अध्यक्षीय वक्तव्य साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने और स्वागत वक्तव्य साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने प्रस्तुत किया । इस अवसर पर
विशिष्ट अतिथि भारत में रूसी महासंघ के दूतावास की काउंसलर यूलिया अरायेवा और
रशियन हाउस की निदेशक
एलेना रेमिज़ोवा थी। कार्यक्रम में
रूस से आए प्रतिभागी थे- सिर्गेई शरगुनोफ़, दमीत्रि बाक, वसीली नतसिन्तफ़ एवं आन्ना शिपीलवा तथा भारत से शामिल प्रतिभागी थे हेम चंद्र पांडे, पंकज मालवीय, रंजना सक्सेना रंजना बनर्जी, किरण सिंह वर्मा एवं सोनू सैनी ।
कार्यक्रम के आरंभ में सभी का स्वागत साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने अंगवस्त्रम पहनाकर किया और कहा कि इस लेखक अनुवादक सम्मिलन के जरिए हम अनुवाद की क्षमताओं और उसकी सीमाओं पर बात कर सकेंगे। उन्होंने अनुवाद में सांस्कृतिक परिवेश की प्रस्तुति को चुनौतीपूर्ण मानते हुए कहा कि हमें यह भी याद रखना चाहिए की सृजनात्मक अनुवाद के लिए अनुवादक को कुछ छूट भी मिलनी चाहिए जिससे वह अनुवाद के साथ न्याय कर सके। साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि आज का दिन भारत और रूस के लेखकों और अनुवादकों के लिए ऐतिहासिक दिन है। हम आज अपने संबंधों के स्वर्णिम दिनों को याद करते हुए एक नई वैसी ही बुनियाद फिर रख सकते हैं और इस बुनियाद के केंद्र में पहले की तरह हीअब भी हमारे साहित्यकार ही होंगे। आगे उन्होंने अनुवाद के महत्त्व पर बोलते हुए कहा कि स्टोन से स्पेस युग तक पहुंचने में अनुवाद की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने रूसी और भारतीय अनुवादकों से अपील की कि वे अब नई पीढ़ी को अनुवाद प्रक्रिया में शामिल करें जिससे आधुनिक लेखकों के अनुवाद भी सामने आ सकें। रूसी दूतावास की काउंसलर यूलिया अरायेवा ने कहा कि भारत की तरह रूस में भी स्टोरी टेलिंग की एक प्राचीन परंपरा है। अभी तक हमने कालजयी साहित्य के अनुवाद ही किए हैं लेकिन अब ज़रूरत है कि हम आधुनिक साहित्य के अनुवाद को प्राथमिकता दें। रशियन सेंटर की निदेशक ने कहा कि एक दूसरे के देश को अच्छे से समझने के लिए साहित्यिक कृतियों के अनुवाद की जरूरत होती है। इसके लिए हमें वहां के सांस्कृतिक परिवेश और भावबोध को समझना भी जरूरी है। इसके बाद रूसी एवं भारतीय लेखकों और अनुवादको ने अनुवाद की लंबी प्रक्रिया पर अपने विचार रखे। इसमें रूस से पधारे कवि अनुवादक अनिल जनविजय ने भी अपने विचार व्यक्त किए।सभी का मानना था कि समकालीन लेखकों की पुस्तकों के भी अनुवाद होने चाहिए और इसके लिए अनुवादकों की एक नई पीढ़ी को तैयार करने की आवश्यकता है। इस बात को भी सभी ने माना कि कविता का अनुवाद मुश्किल होता है और वहां बहुत सजगता और संतुलन की जरूरत होती है। कार्यक्रम का संचालन उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

About the author

THE INTERNAL NEWS

Add Comment

Click here to post a comment

error: Content is protected !!