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सिंहदेव के बाद अब पायलट को पद देने की तैयारी:हाईकमान ने तैयार किए 3 विकल्प, राहुल गांधी से चर्चा के बाद होगा फैसला

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सिंहदेव के बाद अब पायलट को पद देने की तैयारी:हाईकमान ने तैयार किए 3 विकल्प, राहुल गांधी से चर्चा के बाद होगा फैसला

छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनाने के बाद अब कांग्रेस हाईकमान राजस्थान को लेकर फैसला करने की तैयारी में है। सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चुनावों से पहले खींचतान मिटाने के फॉर्मूले पर काम लगभग पूरा हो चुका है। अब सचिन पायलट को पद देकर मुख्य धारा में लाने की तैयारी चल रही है। पायलट के सियासी पुनर्वास पर कई दौर की चर्चा हो चुकी है। इसके लिए तीन विकल्पों पर विचार चल रहा है। राहुल गांधी के मणिपुर दौरे से लौटने के बाद हाईकमान कदम आगे बढ़ाएगा।

फिर शेयरिंग फॉर्मूला तैयार
कांग्रेस हाईकमान विधानसभा चुनावों का कैंपेन शुरू होने से पहले गहलोत-पायलट का झगड़ा सुलझाना चाहता है। इसके लिए फिर शेयरिंग फॉर्मूला तैयार किया गया है। अब इसे लागू करने की एक्सरसाइज शुरू हो चुकी है। पार्टी हाईकमान को यह फीडबैक मिलता रहा है कि पायलट खेमे को साथ लिए बिना सरकार के खिलाफ नाराजगी कम नहीं होगी। ऐसे में अब दोनों खेमों को साधकर चुनाव मैदान में जाने का प्लान तैयार किया जा रहा है।

चुनाव में जाने के लिए हाईकमान ने पायलट-गहलोत के लिए कौन सा फॉर्मूला तैयार किया, यदि पायलट कहीं एडजस्ट होंगे तो उनके द्वारा उठाई गई मांगों का क्या होगा, टिकट वितरण में सचिन पायलट का क्या रोल होगा? पढ़िए इस रिपोर्ट में…

सचिन पायलट के सियासी पुनर्वास के लिए तीन तरह के विकल्प तैयार किए गए हैं। इन्हीं विकल्पों में से एक पर आम सहमति बनाकर गहलोत और पायलट को साथ लाया जाएगा।

1. ्पहला विकल्प पायलट को राष्ट्रीय महासचिव और कांग्रेस की सुप्रीम बॉडी कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) का मेंबर बनाने के साथ विधानसभा चुनाव की कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाने का है। इस फॉर्मूले पर पहले भी चर्चा हुई थी। इससे विरोधी खेमे को भी ज्यादा दिक्कत नहीं होगी।

2. दूसरा विकल्प पायलट को फिर से प्रदेशाध्यक्ष और उनके खेमे के विधायक को डिप्टी सीएम बनाने का है, लेकिन गहलोत खेमा इसका विरोध कर रहा है। इसके लिए कैबिनेट में फेरबदल करना होगा। प्रदेशाध्यक्ष के पद पर अशोक गहलोत खुद के खेमे के नेता की जगह पायलट का विरोध करते रहे हैं।

2020 में पायलट को प्रदेशाध्यक्ष और डिप्टी सीएम पदों से बर्खास्त किया गया था। चुनावी साल में जाट वर्ग के नेता को प्रदेशाध्यक्ष पद से हटाने से एक बड़े वोट बैंक की नाराजगी का खतरा भी है। इसलिए गहलोत खेमा इसी खतरे का तर्क देकर पायलट को प्रदेशाध्यक्ष बनाने का विरोध कर रहा है। गहलोत खेमे को मनाने और जाट वोट बैंक को बैलेंस करने के लिए मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को डिप्टी सीएम बनाने का विकल्प भी खुला रखा गया है।

3. इन दो विकल्पों के अलावा एक तीसरे विकल्प पर भी काम किया जा रहा है। राहुल गांधी के मणिपुर दौरे से लौटने के बाद इसे फाइनल किया जाएगा। संभवत: सीएम गहलोत और पायलट को आमने-सामने बैठाकर इस पर चर्चा की जाएगी। माना जा रहा है कि तीसरा विकल्प पायलट को कांग्रेस का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ने के विकल्प पर चर्चा की जा सकती है। हालांकि अभी कुछ तय नहीं है।

अशोक गहलोत (सबसे दाएं) अपने खेमे के नेता को ही प्रदेशाध्यक्ष बनाने के पक्ष में हैं। वे गोविंद सिंह डोटासरा (सबसे बाएं) को हटाने के पक्ष में नहीं हैं। (फाइल फोटो)

अशोक गहलोत (सबसे दाएं) अपने खेमे के नेता को ही प्रदेशाध्यक्ष बनाने के पक्ष में हैं। वे गोविंद सिंह डोटासरा (सबसे बाएं) को हटाने के पक्ष में नहीं हैं। (फाइल फोटो)

पायलट और सिंहदेव के मुद‌्दे अलग
राजनीतिक जानकारों का तर्क है कि छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव के मामले की सचिन पायलट से तुलना नहीं की जा सकती। टीएस सिंहदेव अंदरूनी तौर पर असंतुष्ट जरूर थे, लेकिन उन्होंने सियासी लिमिट क्रॉस नहीं की। सचिन पायलट सरकार और अशोक गहलोत के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल चुके हैं। यात्रा निकाल चुके हैं।

जुलाई 2020 में बगावत के बाद अगस्त 2020 में फिर सुलह करके वापस आए। पायलट के मुद्दे भी अलग हैं। सचिन पायलट खेमा लगातार मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी पेश कर रहा है, जबकि गहलोत खेमा विधायकों का बहुमत अपने पास होने का तर्क देकर पायलट की दावेदारी को खारिज करता रहा है।

25 सितंबर को गहलोत खेमे के विधायकों के विधायक दल की बैठक का बहिष्कार कर हाईकमान को तेवर दिखाने के बाद मामला और पलट गया। उसके बाद पायलट और गहलोत खेमों के बीच तल्खी और बढ़ गई। ऐसे में पायलट के मामले में अलग फॉर्मूला तलाश कर समाधान का प्रयास किया जा रहा है।

पायलट को पद दिया ताे उनकी मांगों का क्या होगा?
सचिन पायलट ने तीन मुद्दों को लेकर अजमेर से जयपुर तक पैदल यात्रा (11 मई से 15 जून तक) की थी। उसके बाद 15 दिन का अल्टीमेटम दिया था। सीएम ने तीनों ही मांगों को अलग-अलग समय पर बयान देकर नकार दिया था।

गहलोत ने बुद्धि का दिवालियापन तक कह दिया था
पेपर लीक प्रभावित युवाओं को मुआवजे की मांग को तो गहलोत ने बुद्धि का दिवालियापन तक कह दिया था। आरपीएससी को भंग कर पुनर्गठन की मांग पर गहलोत ने जरूर तेवर हल्के करते हुए कहा था कि पायलट हमारे पार्टी परिवार के मेंबर हैं। उन्होंने बात उठाई तो हमने पूरे मामले को दिखवाया, लेकिन राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) संवैधानिक संस्था है। इसे भंग करने का प्रावधान नहीं है।

वसुंधरा राजे सरकार के करप्शन की जांच पर भी गहलोत कह चुके हैं कि खान आवंटन सहित सभी मामलों में कोर्ट तक से फैसला हो चुका है। वसुंधरा राजे के खिलाफ एक मामला पेंडिंग है और वह ईडी का मामला है। इसमें राज्य सरकार कुछ नहीं कर सकती।

पेपर लीक के मुद्दे पर सीधे बैक नहीं हो सकते पायलट
जानकारों के मुताबिक, सचिन पायलट सुलह बैठक के बाद भी युवाओं से जुड़े मुद्दों पर पीछे नहीं हटने का बयान दे चुके हैं। चुनावी साल में पेपर लीक बहुत बड़ा मुद‌दा है और विपक्ष भी सरकार को इस पर घेर रहा है। पायलट पेपर लीक के मुद्दे पर सीधे बैक नहीं हो सकते। इसलिए कोई बीच का रास्ता निकालने का प्रयास चल रहा है, जिसमें पायलट और सरकार दोनों की बात रह जाए।

दोनों नेताओं की तल्ख बयानबाजी पर विराम
सरकार को अल्टीमेटम देने के बाद राहुल गांधी की मौजूदगी में हुई सुलह बैठक के बाद चीजें काफी बदली हैं। दोनों नेताओं के तेवर में बदलाव आया है। गहलोत और पायलट ने एक-दूसरे पर तल्ख बयानबाजी भी छोड़ दी है। यह सब हाईकमान के इशारे का परिणाम माना जा रहा है।

इन संकेतों से यह माना जा रहा है कि गहलोत-पायलट के झगड़े को कुछ समय के लिए शांत करने का फॉर्मूला निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है।

पायलट के समर्थक विधायक नहीं चाहते कि वे अलग पार्टी बनाएं या कांग्रेस छोड़ें, क्योंकि इससे उन्हें अपने क्षेत्र में नुकसान होने की आशंका है। (फाइल फोटो)

पायलट के समर्थक विधायक नहीं चाहते कि वे अलग पार्टी बनाएं या कांग्रेस छोड़ें, क्योंकि इससे उन्हें अपने क्षेत्र में नुकसान होने की आशंका है। (फाइल फोटो)

पायलट टिकट वितरण में भी रोल चाहेंगे
सचिन पायलट को अपने समर्थक नेताओं के टिकटों की भी चिंता है। पायलट टिकट वितरण में अपना रोल चाहेंगे। पायलट चाहते हैं कि टिकट वितरण में उनके समर्थकों को पहले की तरह ही अहमियत दी जाए। टिकट बांटने में रोल होने से ही पायलट अपने समर्थकों की पैरवी कर सकेंगे। सुलह की टेबल पर आने के समय से ही समर्थकों के टिकट पायलट का मुख्य कंसर्न है।

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक चुनावी कमेटियों में पायलट खेमे को जगह दी जाएगी। इस पर भी लगभग सहमति है। टिकट बांटने में इस बार पुराने पैटर्न में थोड़ा बदलाव किए जाने की संभावना है।

अब समझिए कि गहलोत-पायलट सुलह के क्या हैं मायने?

कांग्रेस के नजरिए से : दोनों के बीच सुलह की खबरों से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में पॉजिटिव मैसेज गया है। मतलब चुनाव में गहलोत और पायलट एक साथ मैदान में उतरेंगे। जैसा कि संगठन महासचिव वेणुगोपाल पहले ही दिल्ली में इस बारे में बोल चुके हैं। कांग्रेस कार्यकर्ताओं में यह धारणा बनने की संभावना रहेगी कि कांग्रेस एकजुटता की ओर बढ़ रही है। इससे ग्रासरूट पर कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा।

पायलट के नजरिए से : गहलोत ने पिछले दिनों कहा था कि पायलट से सुलह परमानेंट हो गई है। इस बयान का मतलब है कि पायलट को गंभीरता से लिया जा रहा है। कांग्रेस हाईकमान उनको पूरी तवज्जाे दे रहा है। सुलह में कुछ न कुछ ऐसा तय हुआ है, जो पायलट को मंजूर है।

गहलोत के नजरिए से : गहलोत के बयान से खुद गहलोत के लिए यह संकेत मिल रहा है कि वे आगे की पॉलिटिक्स को लेकर हाईकमान के स्तर पर हुई बातचीत को लेकर संतुष्ट हैं। फिलहाल चुनाव तक उनकी सीएम कुर्सी पर कोई संकट नहीं है।

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