GENERAL NEWS

स्वयं में वास्तु का विश्वकोश समेटे हुए है बीकानेर के सुमित व्यास

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

आलेख :– भरत कुमार व्यास

एक 26 साल का युवक जिसके अभी दाढ़ी मूंछ के बाल भी पूरे नहीं उगे वो यदि हिन्दू स्टडीज के अपने व्याख्यान से देशी विदेशी विद्वानों पर अपने अध्ययन की ऐसी छाप छोड़ें की हर कोई उसका मुरीद बन जाए।
मौका था जबलपुर में आयोजित तीसरी वर्ल्ड रामायण कांफ्रेंस का । देश विदेश से आए विद्वानों के बीच यह युवक सबके कौतूहल का विषय बना हुआ था । इस कॉन्फ्रेंस में मेजर जनरल जी.डी बख्शी, बी.जे.पी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी , श्री लंका के सांस्कृतिक मंत्री विदुरा विक्रमनायके सहित देश विदेश के विद्वानों के बीच जब छोटी काशी के सुमित व्यास डायस पर आए तो श्रोताओं में खुसफुसाहट हुई सब सवालिया निगाहों से बीकानेर के लाडले को देख रहे थे । जैसे ही सुमित ने विश्व में सौम्य शक्ति के रूप में रामायण, रामचरितमानस में शैव व वैश्विक संदर्भ में मीरा कांफ्रेंस में मीरा की सरणागति विषय पर बोलना शुरू किया । उस सभागार में शमशान जैसी शांति छा गई थी कोई आवाज गूंज रही थी तो वह सुमित व्यास की थी। इस पत्र वाचन में सुमित ने वेदों व संस्कृत के प्राचीन ग्रन्थों से उद्धरण लेकर अपने व्यक्तव्य की पुष्टि की उसे हर कोई प्रभावित था। श्रीलंका के सांस्कृतिक मंत्री विदुरा विक्रमनायके मंच से उतरते ही प्रोटोकॉल तोड़कर सुमित से मिले व उसकी अन्य रुचियों के बारे में पूछताछ की । सुमित ने बताया कि वो वास्तु विज्ञान से जनमानस में छाई भ्रांतियों को दूर करने के लिए अपने स्तर पर प्रयासरत है। इस अनोपचारिक भेंट में विक्रमनायके ने सुमित को श्रीलंका आने का न्योता दिया। इसी कॉन्फ्रेंस में मौरिसस से आए स्कोलर रितेश मोहाबिर ने वास्तुशास्त्र पर मौरिसस में एक व्याख्यानमाला करने का प्रस्ताव दिया। वहीं नीलेश ओक जैसे प्रसिद्ध खगोलशास्त्री तो बिना तोडफ़ोड़ के वास्तु सुधारने की अवधारणा से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने साथ काम करने का प्रस्ताव देकर उन तथाकथित वास्तुविदो पर एक करारा तमाचा मारा जो दो चार किताबें पढ़ कर लोगों का लाखों का नुकसान करा बैठते है ।
उल्लेखनीय है सुमित व्यास ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदू अध्ययन में एम ए की पढ़ाई की है । जिसकी प्रवेश परीक्षा में पूरे भारत में दसवाँ स्थान प्राप्त किया। साथ ही सुमित 15 से अधिक सनातन धर्म के विषयों पर अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय संगोष्ठियों में पत्र वाचन कर चुके हैं। इसके अलावा “रामचरितमानस में शैव”, “विश्व में सौम्य शक्ति के रूप में रामायण” जैसे शोध पत्र राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में सुमित के साथी बिहार के धर्मेश शाह कहते है सुमित ने हमारे प्रोफेसर सदाशिव द्विवेदी व प्रो अमित पांडे के लेक्चर व अपने स्वाध्याय से आज वास्तुशास्त्र पर जो पकड बनाई है वो उसे उस भीड़ से अलग करती है जो वास्तु के नाम पर लोगों को डराकर अपना हित साधते है। शाह याद करते है रामायण पर कॉन्फ्रेंस होनी थी अनेकानेक कारणों से छात्र उसमे जाने के लिए अपने आपको तैयार नहीं कर पाए लेकिन सुमित ने प्रो द्विवेदी व प्रो पांडे के आदेश को सहर्ष स्वीकार कर विश्विद्यालय के प्रतिनिधि के रूप में अपनी जोरदार प्रस्तुति दी जो इतिहास बन गई। सुमित बताते है बी एच यू में धर्म एवं कर्म विमर्श , वेदांग, वैदिक सिद्धांत एवं परंपराए व भारतीय स्थापत्य कला तो अकादमिक स्तर पर पढ़े ही इसके अलावा समरांगणसूत्रधार, मनुष्यालय-चन्द्रिका, राजवल्लाभम् रूपमण्डम् वास्तु विद्या, शिल्परन्तम, शिल्परत्राकर मयवास्तु, सर्वार्थ शिल्पचिन्तामणि। मयभत, विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र, मानसार, वृहसंहिता, विष्णु धर्मोत्तर, अपराजित पृच्छ, जय पुच्छ, प्रसाद मण्डन, प्रमाण पंजरी, वास्तुशास्त्र, वास्तु मण्डन, कोदण्ड मण्डन, शिल्परत्न, प्रमाण मंजरी में मुझे जो ग्रंथ सहज उपलब्ध हुआ उसे पढा। इसके अलावा अर्थवेद के उपवेद व ऋग्वेद का अध्ययन कर रहा हूँ।
सुमित बताते है कि उनके दादा स्व भैरुदान व्यास , स्व संतोष व्यास ने शुरू से ऐसे संस्कार दिए । बाद में नाना राजस्थान हाई कोर्ट के जस्टिस डीएन जोशी ने उन्हें पंडित नथमल जी पुरोहित के पास भेजा जहां से
बीकानेर में सुमित ने कर्मकांड की शिक्षा ग्रहण की । बहरहाल सुमित बीकानेर में सती माता बगीची में भज गोविन्दम नामक शिविर पिछले दो साल से लगातार चला रहे है । इस शिविर में संध्या , रुद्री , विष्णुसहस्रनाम, गीता, आदि का प्रशिक्षण निःशुल्क दिया जाता है। सुमित के भज गोविन्दम शिविर का लक्ष्य धर्म सम्राट करपात्री जी महाराज के सपनों को साकार करते हुए सनातन संस्कृति को घर घर पहुँचाना है।

सुमित कहते है हाल के वर्षों में वास्तु को लेकर अधकचरे ज्ञान से लोग दिग्भ्रमित हुए है । जन्म मृत्यु जैसे शाश्वत सत्य के बीच में वास्तु की चर्चा करने से एक अज्ञात भय से लोग तोड़फोड़ करा लेते हैं जिसमें लाखों रुपए का नुकसान होता है । व्यास कहते है वास्तुशास्त्र की उत्पत्ति स्थापत्य वेद से हुई है, जिसे अथर्ववेद का उपवेद कहा जाता है।
भविष्य पुराण में भी तीन अध्यायों में वास्तुशास्त्रीय विषयों का विशद वर्णन है। कामिकागम को तो वास्तु विद्या का प्रतिनिधि ग्रन्थ ही माना जाता है। इसके पचहत्तर अध्यायों में बासठ अध्याय सीधे वास्तु विषयक ही हैं।
बहरहाल सुमित व्यास अपनी जन्म भूमि में सेवाएं दे रहे है जल्द ही अपनी वेबसाइट के माध्यम से अपने वास्तु ज्ञान के प्रकाश को पूरे विश्व के जिज्ञासुओं के लिए एक द्वार खोलने के काम में लगे हुए है।
———————- – —————- ——— ——– — –

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

About the author

THE INTERNAL NEWS

Add Comment

Click here to post a comment

error: Content is protected !!