नार्को टेस्ट से सुलझेगी श्रद्धा मर्डर की गुत्थी:आरुषी हत्याकांड हो या कुर्ला रेप; नार्को टेस्ट में आरोपियों ने क्या राज खोले
श्रद्धा मर्डर केस अब एक पहेली बनता जा रहा है। आरोपी आफताब लगातार गुमराह कर रहा है। पुलिस ने दिल्ली की साकेत कोर्ट से नार्को टेस्ट की मांग की थी, जिसकी अनुमति मिल गई है। पुलिस नार्को टेस्ट के जरिए आफताब से पांच प्रमुख बातें उगलवाना चाहती है, जिससे हत्या की गुत्थी को सुलझाया जा सके…
1. श्रद्धा का मर्डर क्यों किया?
2. श्रद्धा का मर्डर कैसे किया?
3. श्रद्धा का शव कहां ठिकाने लगाया?
4. मर्डर वेपन और अन्य सबूत कहां हैं?
5. हत्या में और कौन-कौन लोग शामिल हैं?
नार्को टेस्ट से कुछ बातें साफ जरूर हो सकती हैं, लेकिन इसके जरिए हमेशा चौंकाने वाले खुलासे नहीं होते। नार्को टेस्ट रिपोर्ट को कोर्ट सबूत भी नहीं मानता है। हमने 5 पांच पुराने केस उठाए हैं और जानने की कोशिश की है कि हत्या की गुत्थी सुलझाने में नार्को टेस्ट कितना मददगार होता है।
केस-1: बिजनेसमैन अरुण कुमार टिक्कू मर्डर केस
क्या था मामलाः साल 2005 की बात है। मॉडलिंग वर्ल्ड में फेमस हो चुकी सिमरन सूद की मुलाकात अनुज नाम के एक लड़के से हुई। सिमरन ने अनुज को फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री कराने का सपना दिखाया, फिर धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती मजबूत हो गई। इस दौरान सिमरन के पति विजय पलांदे ने अनुज के फ्लैट पर अपने दो दोस्तों को ठहरा दिया।
अनुज के पिता अरुण कुमार टिक्कू को जब इसकी भनक लगी तो वो समझ गए कि सिमरन और उसका पति फ्लैट पर कब्जा करना चाहते हैं। सिमरन और उसके पति की घर को ह़ड़पने की साजिश का खुलासा होने के बाद दोनों ने एक प्लान बनाया।
उन्होंने अपने साथियों की मदद से अरुण कुमार टिक्कू की हत्या कर दी। इससे पहले भी सिमरन का पति दोहरे हत्याकांड के मामले में 1998 और 2002 में जेल भी चुका था।
नार्को टेस्ट में खुलासाः इस केस में आरोपी विजय पुलिस के सवालों का सही जवाब नहीं दे रहा था। ऐसे में नार्को टेस्ट की मदद से बाद में खोजे गए साक्ष्यों के जरिए दो चीजों का पता चला- पहला ये कि हत्या को कब और कैसे अंजाम दिया। दूसरा ये कि हत्या के बाद शव को कहां और कैसे फेंका गया था।
मौजूदा स्टेटस: 2017 में विजय पलांदे को इस केस में उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
केस- 2: कुर्ला सीरियल रेप और मर्डर
क्या था मामलाः 19 जून 2010 को कुर्ला की सुनसान इमारत में 9 साल की एक बच्ची का शव मिलता है। जांच में पता चलता है कि मर्डर से पहले इस नाबालिग लड़की का रेप हुआ है।
इससे पहले 9 फरवरी और 7 मार्च को भी इसी तरह कुर्ला में दो और नाबालिगों की रेप के बाद हत्या हुई थी। सीरियल रेप और मर्डर की घटना की वजह से पूरे इलाके में दहशत का महौल बन गया था।
पुलिस के हाथ कुछ भी नहीं लग रहा था। इस मामले में 70 से ज्यादा लोगों के DNA सैंपल लेकर जांच के लिए फोरेंसिक लैब भेजे गए थे। फिर DNA टेस्ट के आधार पर अजमेरी शेख को हिरासत में लिया गया, लेकिन 90 दिन तक पुलिस सबूत जुटाने में असफल रही तो कोर्ट से उसे बेल मिल गई थी।
नार्को टेस्ट में क्या सामने आयाः नार्को टेस्ट के जरिए पुलिस कुर्ला सीरियल रेप और मर्डर मामले में सबूत जुटा सकी। इसके बाद एक बार फिर से अजमेरी शेख को गिरफ्तार किया गया था।
केस का वर्तमान स्टेटस: 2015 में कोर्ट ने सबूतों के आधार पर आरोपी को दोषी बताकर उम्रकैद की सजा सुनाई।
केस- 3: आरुषी मर्डर केस
इस तस्वीर में आरुषी अपने माता-पिता के साथ दिख रही हैं, जिन्हें बाद में बेटी की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था।
क्या था मामलाः 15 मई 2008 की रात नोएडा के सेक्टर 25 में 14 साल की लड़की आरुषी की रहस्यमयी मौत हो गई। हत्या के बाद घटना को अंजाम देने वालों ने सभी सबूत मिटा दिए थे।
आरुषी के पिता ने बेटी की हत्या के आरोप में नौकर हेमराज के खिलाफ केस दर्ज कराया। जांच में पुलिस को आरुषी के पिता राजेश तलवार के घर से ही हेमराज का भी शव मिला। इसके बाद शक के आधार पर पुलिस ने आरुषी के माता-पिता को हिरासत में ले लिया।
पुलिस के हाथ अब भी कोई मजबूत सबूत नहीं मिले थे। इसी वजह से आरुषी के पिता राजेश तलवार और उनके नौकरों को बरी कर दिया गया। फिर जनवरी 2010 में पुलिस को कोर्ट से नार्को करने की इजाजत मिल गई।
नार्को टेस्ट में क्या सामने आयाः नार्को टेस्ट के बाद इस केस का एंगल ही बदल गया। पुलिस ने इसके आधार पर तीन बातें पता कीं। पहला- आरुषी और नौकर हेमराज दोनों की हत्या राजेश तलावर और उनकी पत्नी ने ही की है। दूसरा- दंपति ने अपनी प्रतिष्ठा और इज्जत के लिए नौकर की हत्या की। तीसरा- हथियार बरामद करने में भी पुलिस सफल रही।
केस का वर्तमान स्टेटस: 26 नवम्बर 2013 को विशेष CBI अदालत ने आरुषी-हेमराज के दोहरे हत्याकाण्ड में राजेश एवं नूपुर तलवार को IPC की धारा 302 के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई है।
केस- 4: हैदराबाद ट्विन ब्लास्ट केस
ये तस्वीर 25 अगस्त 2007 में हैदराबाद के गोकुल घाट में हुए धमाके की है।
क्या था मामलाः 25 अगस्त 2007, हैदराबाद के गोकुल घाट में एक जबरदस्त धमाका होता है। इसके ठीक कुछ देर बाद यहीं लुंबिनी पार्क में एक और विस्फोट होता है।
इन दोनों ही घटनाओं में 42 लोगों की मौत होती है, जबकि 50 से ज्यादा लोग घायल हुए। इस मामले में करीब एक दर्जन लोगों को पुलिस ने हिरासत में लिया था लेकिन पुलिस के सामने असली चुनौती मुजरिम तक पहुंचने की थी।
फिर नार्को टेस्ट से पकड़ा गया आतंकी: इस मामले में पुलिस ने अब्दुल कलीम और इमरान खान के नार्को टेस्ट के लिए कोर्ट से इजाजत ली। इसके बाद पुलिस असली मुजरिम तक पहुंच गई। 3 आरोपियों को सजा मिली, जबकि 2 को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया।
केस का स्टेटस: सितंबर 2018 में मेट्रोपोलिटन सेशन न्यायालय ने इंडियन मुजाहिदीन (IM) के एक आतंकी तारिक अंजुम को इस मामले में दोषी करार दिया। उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इसके अलावा दो अन्य आरोपियों अनीक शफीक सैय्यद और अकबर इस्माइल चौधरी को सजा-ए-मौत दी गई है।
केस- 5: तेलगी केस
क्या था मामलाः साल 2003 की बात है। मीडिया में खबर सामने आई कि ट्रेन में मूंगफली बेचने वाले ने देश का सबसे बड़ा घोटाला किया है, तो हर कोई हैरान रह गया। महाराष्ट्र की राजनीति में तहलका मचाने वाले यह घोटाला स्टाम्प पेपर स्कैम था। इसके मुख्य आरोपी का नाम था- अब्दुल करीम तेलगी। तेलगी एक बड़े गैंग को ऑपरेट करता था। पुलिस ने हिरासत में लेने के बाद इस पूरे मामले में खुलासे के लिए नार्को टेस्ट कराने का फैसला किया।
नार्को टेस्ट रिपोर्ट के बाद मचा बवाल: नार्को टेस्ट में सरगना अब्दुल करीम तेलगी ने NCP सुप्रीमो शरद पवार, पूर्व उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल के नाम लिए थे। उसने कहा कि इन दोनों लोगों को उसने पैसे दिए हैं। जबकि इससे पहले जब तेलगी ने चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज कराया तो उसमें पवार या भुजबल का नाम नहीं लिया था। साल में 2003 में कराए गए नार्को टेस्ट को साल 2006 में टीवी चैनलों पर दिखाया गया था।
केस का वर्तमान स्टेटस: 20 हजार करोड़ के इस घोटाले में तेलगी को 30 साल कैद की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, 2017 में जेल में ही उसकी मौत हो गई।
अब जानते हैं कि नार्को टेस्ट होता क्या है?
आमतौर पर किसी आरोपी से सही बात उगलवाने के लिए नार्को टेस्ट किया जाता है। इस प्रोसेस में सबसे पहले शख्स को नशे की कुछ दवा दी जाती है। जैसे- सोडियम पेंटोथल, स्कोपोलामाइन और सोडियम अमाइटल।
इस दवा के शरीर में जाते ही वह शख्स एनेस्थीसिया के कई स्टेज से गुजरता है। मतलब ये हुआ कि वह एक तरह से संवेदना शून्य हो जाता है और ना तो पूरी तरह होश में और ना ही बेहोश होता है।
इस वक्त शख्स की इमेजिनेशन पावर यानी कल्पना शक्ति कम जाती है और वह सिर्फ सच बोलता है। यही वजह है कि पुलिस सच जानने के लिए नार्को टेस्ट कराती है।
भारत में आरोपी का नार्को टेस्ट कैसे किया जाता है?
नार्को टेस्ट के लिए सबसे पहले कोर्ट से इजाजत लेनी होती है। इसके बाद आरोपी से सहमति मिलने के बाद उसे सरकारी अस्पताल ले जाया जाता है।
यहां आरोपी का ब्लड प्रेशर, पल्स, बल्ड फ्लो और उसकी मानसिक स्थिति को जांचा जाता है। इसके लिए ब्रेन मैपिंग और पॉलीग्राफ टेस्ट भी किए जाते हैं। इसके बाद उसे दवा देकर आधी बेहोशी के हालात में पहुंचाया जाता है।
इसके बाद सवाल-जवाब शुरू होता है। इस समय वहां आरोपी के जवाब का विश्लेषण करने के लिए फोरेंसिक एक्सपर्ट, मनोवैज्ञानिक, ऑडियो-वीडियोग्राफर और सहायक नर्सिंग स्टाफ के अलावा सीनियर पुलिस अधिकारी होते हैं।
कोर्ट में नार्को टेस्ट की लीगल वैलिडिटी क्यों नहीं है?
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक दवा के इस्तेमाल के बाद इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि कोई शख्स सिर्फ सही बात ही बोले।
एनेस्थीसिया की स्थिति में कोई शख्स अपनी इच्छा से स्टेटमेंट नहीं देता है और इस समय वह होश-हवास में भी नहीं होता है। इसीलिए कोर्ट में कानूनी तौर पर साक्ष्य के लिए नार्को टेस्ट रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया जाता है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि नार्को टेस्ट रिपोर्ट की मदद से बाद में खोजी गई किसी भी जानकारी को सबूत के तौर पर कोर्ट में पेश किए जाने की अनुमति होगी।
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