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पश्चिम बंगाल में विश्व भारती विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के दौरान रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने युवाओं से नवाचार करने, नवीनतम प्रौद्योगिकियों का विकास करने और नई कंपनियां स्थापित करने का आह्वान किया

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पश्चिम बंगाल में विश्व भारती विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के दौरान रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने युवाओं से नवाचार करने, नवीनतम प्रौद्योगिकियों का विकास करने और नई कंपनियां स्थापित करने का आह्वान किया


श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत को अधिक शक्तिशाली और आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनुसंधान प्रतिष्ठान और स्टार्ट-अप बहुत महत्वपूर्ण हैं

रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने भारत को अधिक शक्तिशाली और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने की दिशा में सरकार के प्रयासों को नई गति प्रदान करने के लिए युवाओं से नवाचार करने, नवीनतम प्रौद्योगिकी विकसित करने और नई कंपनियां, अनुसंधान प्रतिष्ठानों और स्टार्ट-अप्स की स्थापना करने का आह्वान किया। आज पश्चिम बंगाल के बीरभूम में विश्व भारती विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के दौरान छात्रों को संबोधित करते हुए श्री राजनाथ सिंह ने उन्हें गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से प्रेरणा लेने और एक हाथ में विजन और ज्ञान लेकर तथा दूसरी ओर सदियों पुरानी भारतीय परंपराओं के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया ताकि राष्ट्र को विकास की सीढ़ी पर ऊपर ले जाने के समग्र उद्देश्य को प्राप्त करने का प्रयास किया जा सके।

उन्होंने छात्रों को अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देने, एक टीम के रूप में काम करने और जीवन की सफलताओं और असफलताओं से न बहकने लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि बिना विचलित हुए संतुलित तरीके से आगे बढ़ने की क्षमता ही सफलता की कुंजी है। उन्होंने छात्रों से अहंकार या क्रोध को अपने रास्ते में न आने देने का भी आग्रह किया। चरित्र निर्माण, ज्ञान और धन को समान महत्व दिया जाना चाहिए। भारत की प्रगति का मार्ग युवाओं से ही होकर आगे जाता है। आप जितने मजबूत होंगे, देश भी उतना ही मजबूत बनेगा।

श्री राजनाथ सिंह ने छात्रों को अपना नैतिक कर्तव्य निभाते हुए विश्व भारती की प्रसिद्धि को आगे बढ़ाने का भी आह्वान किया। उन्होंने विश्व भारती विश्वविद्यालय को गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की दार्शनिक विरासत की भौतिक अभिव्यक्ति और उनके ज्ञान और बुद्धि का अवतार बताते हुए कहा कि विश्व भारती भारतीय ज्ञान के साथ साथ ही विश्व ज्ञान का भी एक अनूठा मिश्रण है। इसमें दुनिया भर से भारतीय विचारों में ज्ञान के प्रवाह को आत्मसात करने और पूरी दुनिया को प्रबुद्ध बनाने का संयोजन है।

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के राष्ट्रवाद और सार्वभौमिक मानवतावाद के विचारों के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने छात्रों को बताया कि कैसे इस महान दार्शनिक ने अपने विचारों, दर्शन और मूल्यों से भारतीय समाज और राजनीति को गहराई से प्रभावित किया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सदियों से भारतीय राष्ट्रवाद सहयोग और मानव कल्याण की भावना पर ही आधारित रहा है। श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद क्षेत्रीय न होकर सांस्कृतिक है। चेतना क्षेत्र से पहले आती है। मानव कल्याण केंद्र बिंदु हैं। भारतीय राष्ट्रवाद बहिष्कारवादी न होकर सर्व-समावेशी है और सार्वभौमिक कल्याण से ही प्रेरित है। विश्वभारती इसी भावना का सूचक है।

श्री राजनाथ सिंह ने यह उल्लेख करते हुए कि गुरुदेव के उस समय के भविष्यवादी विचार आज भी प्रासंगिक हैं। राष्ट्र के विकास के लिए औद्योगिक विकास और आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के विचारों का विशेष उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि यह उसी दृष्टि का परिणाम है कि भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नए मानक स्थापित करके विकास के पथ पर आगे बढ़ने के लिए ‘मेकिंग इन इंडिया, मेकिंग फॉर द वर्ल्ड’ के मार्ग पर अग्रसर है। उन्होंने कहा कि आज हम दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में लगातार प्रगति कर रहे हैं। निवेश फर्म मॉर्गन स्टेनली की अभी हाल की रिपोर्ट के अनुसार भारत अगले 4-5 साल में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। मुझे उम्मीद है कि हम 2047 तक दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्था बन जाएंगे। यही गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

रक्षा मंत्री ने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के सामाजिक परिवर्तन, महिला सशक्तिकरण और जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के बारे में दूरदर्शी विचारों का जिक्र किया जो सरकार को प्रेरणा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि संगीत के लिए गुरुदेव के लेखन ज्ञान संचार भारतीयता की सुगंध का सार हैं।

श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि इस महान दार्शनिक के शिक्षा संबंधी विचार आज भी एक मार्गदर्शक के रूप में काम कर रहे हैं। गुरुदेव का मानना था कि शिक्षा सत्य और सौंदर्य तक पहुंचने और सामाजिक कल्याण को सुनिश्चित करने का एक सक्षम मार्ग है। उनका यह मानना  था कि केवल सीखना ही काफी नहीं है, बल्कि समाज के हित में उसका उपयोग करना भी उतना ही जरूरी है। एक शिक्षक एक साथ 40-50 छात्रों को शिक्षित कर रहा है, जो पश्चिम से प्रेरित प्रक्रिया है, जो किसी बच्चे के व्यक्तित्व को निखारने में असमर्थ रहती है। भारत में प्राचीन गुरुकुल में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी। कई अध्ययन यह बताते हैं कि नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों में गुरुजनों और छात्रों का अनुपात 1:5 का हुआ करता था। सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू की है, जिसमें बच्चों के व्यक्तित्व विकास और शिक्षक-छात्र के उचित अनुपात पर पूरा ध्यान दिया गया है।

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