80 साल के ‘डॉक्टर बम’ से कैसे हारी सीबीआई:कारपेंटर से बना खूंखार आतंकवादी; दाऊद सहित दुनिया के बड़े आतंकी समूहों से संबंध
5-6 दिसंबर 1993 को देश के पांच शहरों लखनऊ, कानपुर, हैदराबाद, सूरत और मुंबई (तब बॉम्बे) की ट्रेनों में एक के बाद एक सिलसिलेवार बम ब्लास्ट हुए। लंबी सुनवाई के बाद अजमेर के टाडा कोर्ट ने मामले में गुरुवार को फैसला सुनाया।
कोर्ट ने इन हमलों की प्लानिंग में शामिल होने, सभी आतंकियों को विस्फोटक पहुंचाने और बम बनाने की ट्रेनिंग देने के मामले में अब्दुल करीम टुंडा (80) को बरी कर दिया गया है। वहीं दो आतंकवादियों इरफान (70) और हमीदुद्दीन (44) को उम्रकैद की सजा सुनाई है।
आखिर क्यों अब्दुल करीम टुंडा इस मामले में बरी हो गया?
इस फैसले के बाद हर किसी के दिमाग में बस यही सवाल उठ रहा है। इसी सवाल का जवाब तलाशने के लिए अजमेर के टाडा कोर्ट के 313 पेज के जजमेंट की एक-एक लाइन पढ़ी। लीगल एक्सपट्र्स की मदद से पूरे केस को समझा। मामले में 5 वजह सामने आई, जिनके कारण टुंडा बरी हो गया।
पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
कोर्ट ने इन हमलों की प्लानिंग में शामिल होने, सभी आतंकियों को विस्फोटक पहुंचाने और बम बनाने की ट्रेनिंग देने के मामले में अब्दुल करीम टुंडा को बरी कर दिया गया है।
सबसे पहले सीबीआई-एसटीएफ की वो थ्योरी, जिसे टाडा कोर्ट ने नहीं माना
सीबीआई ने इन्वेस्टिगेशन कर बताया था कि नवंबर-दिसंबर 1993 के बीच इन सीरियल बम ब्लास्ट का मास्टरमाइंड डॉ. मोहम्मद जलीस अंसारी सैय्यद अब्दुल करीम टुंडा से मिला था।
अंसारी ने टुंडा को बाबरी मस्जिद विध्वंस की पहली बरसी पर अलग-अलग शहरों की ट्रेनों में बम धमाके करने की प्लानिंग के बारे में बताया था।
टुंडा ने ही इससे पहले अंसारी को आतंकी गतिविधियों में शामिल कराया था और उसे बम बनाने की टेक्निकल ट्रेनिंग दी थी। अंसारी ने जब उसे ये बताया तो टुंडा ने उसे इसके लिए अपनी सहमति भी दे दी।
इस दौरान दोनों ने मिलकर भारत सरकार पर दबाव बनाने और लोगों में दहशत फैलाने के मकसद से 5 दिसंबर 1993 को शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के ऑफिस व 26 जनवरी 1994 को दिल्ली को दहलाने का फैसला किया था।
देश में दंगे कराना था मकसद
सीबीआई ने इन्वेस्टिगेशन कर बताया था कि अब्रे रहमत अंसारी उर्फ कारी, एजाज अकबर, डॉ. मोहम्मद जलीस अंसारी, सैय्यद अब्दुल करीम टुंडा, हबीब अहमद खान, जमाल अलवी, मोहम्मद अशफाक, मोहम्मद अफाक खान, इरफान अहमद, हमीर उल उद्दीन, फजल उर रहमान सूफी, अमीन, निसारुद्दीन, जहीरुद्दीन अहमद, शमशुद्दीन उर्फ पेंटर बाबा, अजीमुद्दीन, युसूफ, सलीम अंसारी, मोहम्मद सलीम, निसार अहमद अंसारी, मोहम्मद तुफैल और अन्य मुंबई, लखनऊ, कानपुर बड़ौदा, सूरत, कोटा, दौसा, हैदराबाद, गुलबर्गा, श्रीनगर और अन्य स्थानों पर एक आपराधिक साजिश में शामिल हुए थे।
इस साजिश का उद्देश्य लोगों में आतंक पैदा कर केंद्र सरकार को डराना और बाबरी मस्जिद विध्वंस का बदला लेने के लिए ट्रेनों में बम विस्फोट कर हिंदू-मुस्लिम दंगे करवाना था।
लखनऊ में बैठक कर रची थी साजिश
इसी आपराधिक साजिश को अंजाम देने के लिए सितंबर 1993 में लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में जमाल अलवी के निवास पर सभी आरोपियों ने एक बैठक की और पूरी प्लानिंग बनाई।
जमाल अलवी ने यूपी में राजधानी एक्सप्रेस ट्रेनों में बम धमाके करने की जिम्मेदारी ली। वहीं मोहम्मद जलीस अंसारी ने इन हमलों के लिए बम लाने और आदमियों के लिए फंडिंग की व्यवस्था के लिए सहमति दी थी।
अलग से चार्जशीट पेश नहीं की, मास्टरमाइंड जलीस अंसारी और हबीब अहमद के बयानों को बनाया आधार
सीबीआई ने अब्दुल करीम टुंडा की गिरफ्तारी के बाद अलग से कोई चार्जशीट पेश नहीं की। सीबीआई ने गिरफ्तारी से पहले ही टुंडा और अन्य चार आरोपियों के खिलाफ 26 जुलाई 1997 को पूरक चार्जशीट पेश करते हुए आरोपी मास्टरमाइंड जलीस अंसारी और हबीब अहमद के बयानों को ही आधार बनाकर टुंडा को सीरियल बम विस्फोट की साजिश का षडयंत्रकर्ता माना था।
जलीस अंसारी का बयान : अपने बयान में कबूला था कि साल 1986-87 में आंध्र प्रदेश के करीम नगर निवासी और नक्सलियों से टच में रहने वाले आराम कोरी ने उसे यूपी के गाजियाबाद के रहने वाले अब्दुल करीम टुंडा से मिलाया था।
मुंबई में अब्दुल करीम ने उन्हें बम बनाने की सामग्री दी और बनाने का तरीका भी सिखाया। इसके लगभग एक-दो साल बाद अब्दुल करीम रायबरेली के किसी बच्चू के साथ दोबारा जलीस से मिला। इस बार भी विस्फोटक देकर आतंकी घटनाओं के लिए उकसाया।
जलीस अंसारी ने बयानों में बताया कि उसने और अब्दुल करीम ने 1992-93 के दौरान मुंबई में कई जगह बम लगाए, जो ब्लास्ट भी हुए। पुणे की लोकल ट्रेनों में और एक बस स्टैंड पर और बंबई-फैजाबाद ट्रेन में भी उन्होंने बम लगाए।
जलीस ने ये भी बताया कि वो लोग अब्दुल करीम टुंडा से बम विस्फोटक सामग्री मंगवाते थे। वो अब्दुल करीम के कहने पर ही हबीब अहमद से मिला था।
दिसंबर 1993 में जलीस अब्दुल करीम से मिला था। तब टुंडा ने उसे कहा था कि 26 जनवरी 1994 को दिल्ली में बम विस्फोट करना चाहिए ताकि कुछ महत्वपूर्ण लोगों को मारा जा सके। जलीस इस पर सहमत हुआ था।
हबीब अहमद का बयान : हबीब अहमद ने अपने इकबालिया बयानों में बताया था कि वो अब्दुल करीम को पिछले 5-6 साल से जानता था।
अब्दुल करीम रायबरेली में विस्फोटक सामग्री का अवैध कारोबार करता था। हबीब ने बताया था कि वो जलीस से साल भर पहले रायबरेली में ही मिला था।
तब उसने बताया था कि उसने और अब्दुल करीम ने मुंबई और पुणे में कई बम विस्फोट किए थे। इन विस्फोटों के लिए अब्दुल करीम ने ही उसे विस्फोटक दिया था।
सीबीआई ने इन्हीं दोनों इकबालिया बयानों को आधार बनाकर अब्दुल करीम टुंडा को 5-6 दिसंबर 1993 में देश के 5 शहरों लखनऊ, कानपुर, हैदराबाद, सूरत और मुंबई की ट्रेनों में सीरियल बम ब्लास्ट के मामले में साजिश रचने और पूरी प्लानिंग का हिस्सा होने का आरोपी बनाया था।
सीबीआई की लापरवाही और जांच में खामियां
इस मामले में टुंडा की गिरफ्तारी के बाद इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर कभी कोर्ट में बयान देने ही नहीं आया। वहीं सीबीआई टुंडा का इकबालिया बयान भी नहीं ले पाई। इतना ही नहीं, टुंडा की गिरफ्तारी के वक्त दावा था कि उसके पास से 23 पासपोर्ट और पाकिस्तानी करेंसी जब्त की गई है, लेकिन सीबीआई ने कोर्ट में ये साक्ष्य पेश ही नहीं किए।
कोर्ट के फैसले की 5 बड़ी बातें
- ट्रेनों में हुए सीरियल बम ब्लास्ट में अब्दुल करीम टुंडा के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र में शामिल होने को लेकर पर्याप्त साक्ष्य पत्रावली पर उपलब्ध नहीं हैं।
- अभियोजन 5-6 दिसंबर 1993 में हुए इन बम धमाकों में टुंडा की भूमिका को स्पष्ट नहीं कर सका है।
- अभियोजन ने केवल ये साक्ष्य उपलब्ध करवाए हैं कि टुंडा ने जलीस अंसारी और हबीब अहमद को बम बनाने की ट्रेनिंग दी और विस्फोटक सामग्री दी। इन साक्ष्यों में ये था कि टुंडा द्वारा दी विस्फोटक सामग्री को मुंबई में हुए बम धमाकों में इस्तेमाल किया गया था। उस सामग्री का लंबी दूरी की ट्रेनों में हुए बम विस्फोट से कोई संबंध साबित नहीं हो सका।
- वहीं अभियोजन ये भी साबित नहीं कर पाया कि लंबी दूरी की ट्रेनों में हुए बम विस्फोट में टुंडा की कोई भूमिका थी या उसने इसमें कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर किसी तरह का कोई सहयोग किया हो।
- दोनों मास्टरमाइंड के इकबालिया बयानों के अलावा अभियोजन अब्दुल करीम टुंडा के खिलाफ कोर्ट में कोई भी साक्ष्य पेश ही नहीं कर पाई।
कोर्ट ने फैसले में टुंडा को संदेह का लाभ दिया।
इस तरह हुए थे सीरियल ब्लास्ट
5-6 दिसंबर 1993 को एक्सप्रेस ट्रेनों मुंबई-नई दिल्ली, नई दिल्ली-हावड़ा, हावड़ा-नई दिल्ली, फ्लाइंग क्वीन एक्सप्रेस सूरत से बड़ौदा और आंध्र प्रदेश एक्सप्रेस हैदराबाद से नई दिल्ली में बम विस्फोट हुए थे। इसमें दो यात्रियों की मौत हो गई थी और 22 यात्री घायल हो गए थे।
इन बम धमाकों को लेकर जीआरपी कोटा, जीआरपी वलसाड, जीआरपी कानपुर, जीआरपी इलाहाबाद और थाना मलकाजगिरी के अंतर्गत अलग-अलग FIR रजिस्टर्ड की गई थी।
भारत सरकार ने 28 दिसंबर 1993 को इन सभी मामलों की जांच सीबीआई को सौंपी थी। इसके बाद सीबीआई ने जयपुर, अहमदाबाद व लखनऊ में एक-एक और अहमदाबाद में 2 एफआईआर सहित कुल 5 FIR रजिस्टर्ड कर इन्वेस्टिगेशन शुरू किया था।
इन्वेस्टिगेशन में ये निकल कर आया कि ये सभी बम धमाके एक ही साजिश का हिस्सा थे, इसलिए बाद में 26 अप्रैल 1994 को इन सभी मामलों को क्लब कर दिया गया था।
डॉक्टर बम के नाम से मशहूर है टुंडा
टुंडा को 1993 ब्लास्ट केस में 2013 में गिरफ्तार किया गया था। भारत-नेपाल बॉर्डर के करीब उत्तराखंड के बनबसा में उसकी गिरफ्तारी हुई थी। टुंडा दाऊद इब्राहिम का करीबी था और बम बनाने की तकनीक के लिए डॉक्टर बम कहा जाता है। बम बनाने के दौरान हुए धमाके से ही उसका बायां हाथ उड़ गया था। कई रिपोट्र्स में कहा गया कि टुंडा आतंकवादी बनने से पहले कारपेंटर था। 1993 मुंबई बम धमाकों में पहली बार उसका नाम सामने आया। वो लश्कर-ए-तैयबा, इंडियन मुजाहिदीन, जैश-ए-मोहम्मद और बब्बर खालसा जैसे आतंकवादी संगठनों से जुड़ा था।
सुप्रीम कोर्ट में करेंगे अपील
सीबीआई की तरफ से पैरवी कर रहे अधिवक्ता भवानी सिंह ने बताया कि अब्दुल करीम टुंडा को बरी किया गया है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे। बाकी दोनों आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।
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