रिलेशनशिप- कैसे बोलें कि लोग हमारी बातें ध्यान से सुनें:एक कान से सुनकर दूसरे से उड़ा न दें, समझिए कम्युनिकेशन की 6 बेसिक टेकनीक
वसीम बरेलवी का एक मशहूर शेर है-
‘’कौन सी बात कहां, कैसे कही जाती है,
ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है।।’’
आखिर कौन नहीं चाहता कि उसकी बातें सुनी जाएं। जुबां से कही बातें सामने वाले के दिल में उतर जाएं। लेकिन ऐसा कम ही हो पाता है। अक्सर बोली गई बातें अनसुनी कर दी जाती हैं या नेपथ्य में खोकर रह जाती हैं।
वसीम बरेलवी इसके लिए ‘सलीके’ की बात कहते हैं। अगर बात कहने का सही सलीका हो तो हमारी हर बात सुनी भी जाएगी और समझी भी।
आज ‘रिलेशनशिप’ कॉलम में अपनी बात कहने के इसी सलीके की बात करेंगे। ताकि आप कम शब्दों में अपनी भावनाओं को जाहिर कर पाएं और आपकी कही हर बात अपने अंजाम तक पहुंचे।
अपनी बात कहना एक कला है और इसे कोई भी सीख सकता है
ब्रिटिश मोटिवेशनल स्पीकर जूलियन ट्रेजर अपनी किताब ‘हाऊ टू बी हर्ड’ में लिखते हैं कि अपनी बात को दूसरों तक पहुंचाना एक कला है, जिसके विकसित होने के बाद इंसान की पर्सनल, प्रोफेशनल और सोशल कंडीशन मजबूत हो सकती है।
सही तरीके से अपनी बात कहना इतना जरूरी क्यों है?
सबसे पहले यह समझ लें कि हमारे आस-पास दिख रही हर सजीव चीज निरंतर संवाद कर रही होती है। पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े, पशु-पक्षी या इंसान कोई भी इस संवाद से अछूता नहीं है।
अपनी किताब ‘मास कम्युुनिकेशन इन इंडिया’ में केवल जे. कुमार लिखते हैं कि चिड़ियों का चहचहाना, पेड़-पौधों की रंगत, कुत्ते का भौंकना या भेड़िये का गुर्राना ये सबकुछ कम्युनिकेशन ही है। लेकिन इसमें कुछ भी खास नहीं। ये सिंपल कम्युनिकेशन स्किल सभी जीव-जंतुओं में सहज रूप से मौजूद होता है।
लेकिन इंसानों ने कम्युनिकेशन को एक कला के रूप में विकसित किया है। इस कला में जो जितना माहिर होगा, सोसाइटी में उसके आगे बढ़ने की संभावना भी उतनी ज्यादा होगी।
ढ़ाई हजार साल पहले यूनानी दार्शनिक प्लेटो ने प्रभावी ढंग से अपनी बात रखने का एक नियम दिया था। यह दुनिया की पहली स्पीच थ्योरी मानी जाती है। यह भी माना जाता है कि महान योद्धा और दुनिया जीतने वाला सिकंदर अपनी बड़ी सेना को जोड़े रखने के लिए प्लेटो की इसी थ्योरी का सहारा लेता था, जो उसे प्लेटो के शिष्य अरस्तू ने सिखाई थी
बातचीत के दौरान न करें ये गलतियां
- अपनी बात कहते हुए डिफेंसिव मोड में रहना यानी अपने हाथ बांधे रखना।
- बिना आई कॉन्टैक्ट किए बात करना।
- घबराहट दिखाना यानी लगातार हाथ-पैर हिलाते रहना।
- बात करते हुए पीछे की ओर झुकना या खिड़की, दरवाजे की ओर एकटक देखना।
- संवाद के दौरान चेहरे पर मुस्कुराहट न होना।
सिर्फ ‘शब्दों’ से नहीं कही जाती बातें, समझें नॉन वर्बल कम्युनिकेशन
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस की एक रिपोर्ट बताती है कि आपसी बातचीत में 93% भूमिका नॉन वर्बल कम्युनिकेशन और 7% भूमिका शब्दों की होती है।
इसका मतलब है कि किसी से बातचीत करते हुए हम कितने सफल या असफल होंगे, ये 93% हमारी बॉडी लैंग्वेज पर निर्भर करता है। इसके अभाव में अच्छे तरीके से, सही मौके पर बोले गए सुंदर शब्द भी बेकार साबित हो सकते हैं।
बातचीत के दौरान सही बॉडी लैंग्वेज बनाए रखने के लिए आंखों में आंखें डालकर बात करना, दूसरों की बातें सुनते हुए हामी भरना, हाथों से इशारे वगैरह करना मददगार साबित हो सकता है।
यहां इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि कुछ भी बोलने हुए ऐसा न लगे कि एक रोबोट शब्दों से खेल रहा है। बल्कि जब भी हम कुछ बोलें, हमारी आंखें, हमारा चेहरा, हाथ-पांव और पूरी बॉडी भी संवाद करती हुई दिखे। यह भी ध्यान रखें कि मुंह से बोले गए शब्द और बॉडी लैंग्वेज में अंतर न हो।
उदाहरण के लिए किसी की तारीफ करते हुए आंखें सिकुड़ जाएं और नजर दरवाजे की तरफ हो तो इसका मतलब है कि तारीफ दिखावटी है।
बिना कुछ बोले अपनी बात कहने की कला है बॉडी लैंग्वेज
अपनी किताब ‘द बॉडी लैंग्वेज ऑफ डेटिंग’ में रिलेशनशिप कोच टोन्या रीमन लिखती हैं कि प्यार की भाषा शब्दों से ज्यादा हाव-भाव और एक-दूसरे को देखकर मन में पैदा होने वाली फीलिंग्स पर निर्भर करती है। मुफीद बॉडी लैंग्वेज के सहारे बिना एक शब्द बोले अपनी भावनाएं जाहिर की जा सकती हैं।
कई बार जो बातें आंखों से या हावभाव से कही जा सकती हैं, उसे शब्दों से बयां कर पाना संभव भी नहीं होता। बॉडी लैंग्वेज सही हो तो दुनिया के सामने खुद को जाहिर करने के बेहतर मौके मिलते हैं। इसका सीधा असर रिश्तों और तरक्की पर पड़ता है।
हमारी कही हर एक बात अपने मकसद में कामयाब हो और बोली दिल तक उतरे, इसके लिए जरूरी है कि ‘सलीका’ और ‘मौका’ सही हो। इसके लिए प्लेटो से लेकर नए जमाने के एक्सपर्ट्स के अपने-अपने सुझाव हैं। इन सभी की बातों पर थोड़ा-थोड़ा अमल करके एक शानदार गुफ्तगू के सहारे बेहतर पर्सनल और प्रोफेशनल रिलेशन डेवलप करना मुश्किल नहीं रह जाएगा।
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