“मानवीय मूल्यों की शिक्षा हो अनिवार्य”
✍🏻….. समय के साथ हमारे भारतीय संस्कार कहीं लुप्त होते जा रहे है।वो संस्कार जो कभी हमारी पहचान हुआ करते थे न जाने कहाँ खो गए? समाज की संवेदनहीनता स्थिति की गम्भीरता को दर्शाता है।आये दिन हत्याओं की ख़बरें,हिंसा आगज़नी की वारदातें समाज की संवेदनहीन प्रकृति को परिलक्षित करती है।आज इंसान दूसरे को मारने में भी झिझक महसूस नही करता और तो और मारने के पश्चात् उसका वीडियो बनाया जाता है।आस-पास की भीड़ मदद करने के स्थान पर इसका लाइव कवरेज करने में व्यस्त रहती है?भ्रष्ट प्रशासन के चलते हम एक दूसरे की मदद करने में कतराते है।क्या हम मानवीय मूल्यों की दृष्टि से इस क़दर गिर गए है?आये दिन इस तरह की घटनाए बढ़ती ही जा रही है।जितना हम तकनीकी रूप में प्रगति कर रहे उतने ही अपने संस्करो से दूर होते जा रहे है।आज संतानों को अपने माता-पिता से भी लगाव नाम मात्र का होता है।हम भावनाशून्य हो गए है।इस दिशा में दोष चाहे हमारी परवरिश का हो या वातावरण का ,नुक़सान हर हाल में हमारा ही है।औपचारिक शिक्षा के साथ साथ मानवीय मूल्यों की शिक्षा भी आवश्यक होनी चाहिये।बच्चों में प्रारंभ से ही मूल्य विकास पर ध्यान दिया जाना चाहिए।स्वयं में सुधार कर हम अपनी भावी पीढ़ी को भी मूल्यपरक शिक्षा के माध्यम से सही राह पर ला सकते है।
✍🏻..डॉ.अजिता शर्मा
उदयपुर
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