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CJI बोले-ट्रायल कोर्ट के जज जमानत देने में हिचकिचाते हैं:जिन्हें लोअर कोर्ट से बेल मिलनी चाहिए, उन्हें सुप्रीम कोर्ट आना पड़ता है

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CJI बोले-ट्रायल कोर्ट के जज जमानत देने में हिचकिचाते हैं:जिन्हें लोअर कोर्ट से बेल मिलनी चाहिए, उन्हें सुप्रीम कोर्ट आना पड़ता है

चीफ जस्टिस रविवार को बर्कले सेंटर फॉर कम्पेरेटिव इक्वेलिटी और एंटी-डिस्क्रिमिनेशन के 11वें सालाना सम्मेलन में शामिल हुए थे। (फाइल फोटो) - Dainik Bhaskar

चीफ जस्टिस रविवार को बर्कले सेंटर फॉर कम्पेरेटिव इक्वेलिटी और एंटी-डिस्क्रिमिनेशन के 11वें सालाना सम्मेलन में शामिल हुए थे। (फाइल फोटो)

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने रविवार को कहा कि ट्रायल जज कई अहम आपराधिक मामलों में सिर्फ इसलिए बेल देने से हिचकिचाते हैं, क्योंकि इन मामलों को शक की नजर से देखा जा रहा है। ऐसे में हर केस की बारीकी समझने के लिए ठोस कॉमन सेंस की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि जिन लोगों को ट्रायल कोर्ट में जमानत मिलनी चाहिए, लेकिन नहीं मिलती, वे लोग मजबूरन हाईकोर्ट जाते हैं। जिन्हें हाईकोर्ट में जमानत मिलनी चाहिए, जरूरी नहीं कि उन्हें भी वहां जमानत मिल जाए, इसके चलते उन्हें सुप्रीम कोर्ट आना पड़ता है। इस प्रक्रिया के चलते उन लोगों की परेशानी बढ़ जाती है, जो मनमाने ढंग से गिरफ्तारियों का सामना कर रहे हैं।

CJI ने यह बात बर्कले सेंटर फॉर कम्पेरेटिव इक्वालिटी और एंटी-डिस्क्रिमिनेशन के 11वें सालाना सम्मेलन के आखिर में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए कही। यह सवाल मनमानी गिरफ्तारियों पर था।

CJI से सवाल और उसका जवाब…
सवाल पूछने वाले ने कहा कि हम ऐसे समाज में जी रहे हैं, जहां पहले एक्शन लिया जाता है और बाद में माफी मांगी जाती है। खासतौर से पब्लिक अथॉरिटी ऐसा कर रही हैं। वे राजनीति से प्रेरित होकर एक्टिविस्ट, एकेडमिक्स, जर्नलिस्ट्स और यहां तक कि राजनेताओं को भी गिरफ्तार कर रही है। इनमें विपक्षी पार्टियों के मुख्यमंत्री तक शामिल हैं।

इसके जवाब में CJI ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट लंबे समय से यह बताने की कोशिश कर रहा है कि ऐसा होने के पीछे कई कारणों में से एक कारण यह भी है कि लोगों को देश के संस्थानों में भरोसा नहीं रह गया है।

CJI ने आगे कहा कि मुझे लगता है कि यह बेहद जरूरी है कि हम उन लोगों पर भरोसा करना सीखें, जो कानूनी प्रणाली में निचले स्तर पर आते हैं, जैसे कि ट्रायल कोर्ट। हमें ट्रायल कोर्ट को प्रोत्साहित करना होगा कि वे उन लोगों की चिंताओं को सुनें और समझें जो न्याय की मांग कर रहे हैं।

CJI ने यह भी कहा कि दुर्भाग्य से आज की समस्या यह है कि ट्रायल जजों की तरफ से दी गई किसी भी राहत को हम शक की नजरों से देखते हैं। इसका मतलब है कि ट्रायल जज बचकर निकल रहे हैं और गंभीर आपराधिक मामलों में जमानत नहीं दे रहे हैं।

जजों में बेहतर कॉमन सेंस होना चाहिए
CJI ने कहा कि जजों में बेहतर कॉमन सेंस होना चाहिए। जब तक हम आपराधिक न्यायशास्त्र में गेहूं को भूसे से अलग नहीं करेंगे, तब तक यह बहुत ही मुश्किल है कि हमें न्यायपूर्ण समाधान मिलें। जज गेहूं को भूसे से अलग कर सके, इसके लिए जरूरी है कि हम उन पर भरोसा करें।

CJI बोले कि मेरे हिसाब से कई मामले सुप्रीम कोर्ट आने ही नहीं चाहिए। हमारे सामने जो छोटे केस रखे जाते हैं, उन्हें देखकर मैं यह कह सकता हूं कि उच्च अदालतों में याचिका लगाकर हम निचली अदालतों को निष्क्रिय नहीं कर सकते।

हम जमानत दिए जाने की पैरवी इसलिए कर रहे हैं, ताकि देशभर में यह संदेश दे सकें फैसला लेने की प्रक्रिया के सबसे शुरुआती चरण पर जो लोग हैं, उन्हें अपनी ड्यूटी निभानी होगी, बिना यह सोचे कि उनका करियर खतरे में आ जाएगा।

बीते कुछ महीनों में CJI के कानून व्यवस्था पर दिए गए बयान…

SC के जजों के पास सातों दिन काम, 5 दिन में 50 केसों की सुनवाई

CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने जजों की छुट्टी और पेंडिंग केस की गति को लेकर कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के जज सातों दिन काम करते हैं। सोमवार से शुक्रवार तक 40-50 मामले निपटाते हैं, शनिवार को छोटे केसेस पर सुनवाई होती है। इसी दिन सुरक्षित रखे गए फैसलों को लिखवाया जाता है। रविवार को सोमवार के केस पढ़े जाते हैं।

CJI ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के जज छुट्टी के दौरान संवैधानिक मुद्दों पर विचार करते हैं। हमारे लिए यह करना बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि संवैधानिक मामले देश की सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक स्थिति के साथ-साथ लोगों के अधिकारों को भी प्रभावित करते हैं। पूरी खबर पढ़ें…

बिना फैसले के मामलों को रिजर्व रखना गलत, जज भी भूल जाते हैं

8 अप्रैल को CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने अदालती मामलों को महीनों रिजर्व रखने के जजों के रवैये पर नाराजगी जताई थी। एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि जज बिना फैसला सुनाए किसी केस को 10 महीनों से ज्यादा समय तक रिजर्व रखते हैं। यह चिंता का विषय है।

इतने लंबे समय के बाद केस पर दोबारा सुनवाई हो तो पिछली सुनवाई के दौरान रखी गई मौखिक दलीलें मायने नहीं रखतीं। जज भी कई बातें भूल जाते हैं। CJI ने बताया था कि उन्होंने इस मामले को लेकर सभी हाईकोर्ट को लेटर लिखा है। पू

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