ज्योतिषाचार्य मोहित बिस्सा
धनतेरस भारतीय संस्कृति के प्रमुख पर्व हैं, जो न केवल सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ज्योतिषीय, दार्शनिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी गहन अर्थ रखते हैं। यह शोधपत्र दीपावली और धनतेरस के सांस्कृतिक, ज्योतिषीय और दार्शनिक आयामों का विश्लेषण करता है, जो भारतीय परंपराओं, वेदों, पुराणों और ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर आधारित है।
धनतेरस, जो दीपावली से दो दिन पहले कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाता है, धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी के साथ-साथ धन्वंतरि, आयुर्वेद के देवता, की पूजा का दिन है। यह दिन निर्ऋति (अलक्ष्मी) को दूर करने और समृद्धि को आमंत्रित करने का प्रतीक है।
धनतेरस पर सोना, चांदी या बर्तन खरीदने की परंपरा समृद्धि और स्थायित्व का प्रतीक है। यह सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह व्यापार और निवेश को प्रोत्साहित करता है।
धनत्रयोदशी का महत्व (ज्योतिष, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से):
धनत्रयोदशी, जिसे धन्वंतरि जयंती भी कहा जाता है, कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है। ज्योतिष के अनुसार इस दिन सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा स्वाति नक्षत्र में स्थित होते हैं, जो धन प्राप्ति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के योग को दर्शाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इसी दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे — इसलिए यह आयुर्वेद और आरोग्य का दिन माना गया है। इस दिन कुबेर पूजन और दीपदान से जीवन में धन-संपन्नता बढ़ती है, ऐसा “स्कंद पुराण” और “पद्म पुराण” में उल्लेख है। वैज्ञानिक दृष्टि से, दीपावली से पूर्व यह तिथि ऊर्जा शुद्धि और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की होती है — दीपक जलाने से वातावरण में बैक्टीरिया नष्ट होते हैं और मनोबल में वृद्धि होती है। इस प्रकार धनत्रयोदशी केवल धन का प्रतीक नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, प्रकाश और संतुलन का संदेश देने वाला उत्सव है।
ज्योतिषाचार्य मोहित बिस्सा









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