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आलेख:श्रीमती अंजना शर्मा (शंकरपुरस्कारभाजिता)
पुरातत्वविद्, अभिलेख व लिपि विशेषज्ञ
प्रबन्धक देवस्थान विभाग, जयपुर – राजस्थान सरकार

लगभग 125वर्ष पूर्व की बात है। जोधपुर- राज्य अंतर्गत सुआप
नामक गांव में मेहोजी नामके एक चारण रहते थे। ये भगवती के उपासक थे। उनके लगातार छह पुत्रियां हुई। इन्होंने देवी से प्रार्थना की कि ‘माता। मेरा वंश चले।’ माताने प्रकट होकर ‘तथास्तु’ कह दिया।

अबकी बार मेहोली को पुत्र होने की आशा थी, पर फिर पुत्री हो गयी। मेहोजी की बहिन ने अपने भाई से अंगुली टेड़ी कर कहा फिर वही पत्थर आ पड़ा ,तब से उनकी अंगुली टेढ़ी ही रह गयी। दूसरी बार अपनी ससुराल से लौटने पर वे बालिका की सेवा करने लगी। बालिका ने अपने कर स्पर्श से ही अंगुली सीधी कर दी!बालिका का नाम दिधुबाई था पर अब करनी देवी कहलाने लगी
भोजन की सामग्री लेकर एक दिन देवीजी अपने खेत पर जा रही थी रास्ते में जैसलमेर के महाराज शेख जी क्षुधार्थ अपनी सेना के साथ मिले देवी जी ने अपने उतने ही भोजन से समस्त सैनिकों को खिला दिया और राजा को विपत्ति में सहायता देने का बचन दिया, राजा युद्ध क्षेत्र में पहुंचे, पर उनकी सेना हार गयी और उनके रथ का घोड़ा भी मर गया, स्मरण करते ही सिंह के रूप में उनके रथ जुत गयी, राजा की विजय भी हो गयी:

करनीदेवी के पिता को एक बार सर्प ने काट लिया। देवीजी ने केवल करस्पर्श से ही उन्हें अच्छा कर दिया। देवीजी को सयानी देखकर उनके पिताने साठिका नामक गांव के दीपोजी से उन‌का विवाह कर दिया। पहले ही दिन देवीजी ने दीपोजी को चतुर्भुजी रूप में दर्शन दिया और कहा कि आप दूसरा विवाह कर ले। मुझसे कोई सन्तान न होगी। दीपोजी ने देवीजी की बहिन से विवाह किया। उनसे-चार सन्तान हुई। वे सन्ताने देवीजी की कहलाती थी। दीपोजी देवीजी को सदैव माता के रूप में देखते थे
ससुराल में भी उन्होंने बहुत चमत्कार दिखाये, यहाँ बिच्छु रहते है बहु सावधान रहना
एक दिन उनकी सास ने कहा। बिच्छू के यहाँ दर्शन भी नहीं होते, देवीजी ने कहा।तब से आज तक बिच्छु के कभी नहीं निकले।

एक बार साठिका गाँव में कई वर्ष तक दुर्भिक्ष पड़ा। दयालु देवीजी गायों को वहाँ से लेकर चल पड़ी,वे पहले राठौड़ राजा कान्हो जी की राजधानी जांगलू पहुंची। कुओं के जल से भरी खेलियों से जल पिलाने की आज्ञा उन्होंने कर्मचारी और राजा से चाही, पर किसी ने उन्हें गायों को जल नहीं पिलाने दिया। इतने में ही राजाके छोटे भाई रणमलजी आ गये। उन्होंने देवीजी अभ्यर्थना की और पानी पिलाने के लिये गायों को ले गये।पानी पी लेनेपर भी खेलियाँ ज्यों-की-त्यों भरी रही।

देवीजीने उन्हें ‘राजन’ कह दिया। बाद में जांगलू के राजा रणमल जी ही हुए और जोधपुर भी उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया। इसके बाद देवीजी ने आगे चलकर देशनोक नामक गाँव बसाया। नेड़ी स्थानसे चलते समय उन्होंने अपनी नेड़ी (मथानी) वहीं गाड़ दी थी, कहते हैं, वह हरी हो गयी और खेजडी वृक्ष के रूप में आज भी विद्यमान है।

उस स्थान को आज तक नेडी कहते हैं।

जोधपुर के राजा जोधाजी के सुपुत्र बीकाजी अपने पिताजी से मनमुटाव हो जाने के कारण आश्विन सुदी १० संवत – 1522 को नया शहर बसाने के लिए देवीजी के पास आये। कुछ दिन बाद उन्होंने बीकानेर नगर बसाया।

उनका सब जगह अधिकार हो गया। वे राजा बन गये । करणीदेवी राज्य की कुलदेवी बन गयी।

राज्यप्रबन्ध से अब भी देवीजी का स्थान देशनोक में वर्तमान है। नवरात्रियों में वहाँ बहुत बडा मेला लगता है और बीच-बीच में शतचण्डी-अनुष्ठान आदि का भी आयोजन होता रहता है।

देशनोक में देवीजी ५० वर्षों तक रही। एक बार – जैसलमेर नरेश की पीठमें एक फोड़ा हो – गया। किसी प्रकार से अच्छा न होने पर – उन्होंने देवीजी को याद किया । देवीजी ने अपने पुत्र (भागनी-पुत्र) पूनोजी को साथ लेकर चली। वहाँ से तीस कोस दूर चारण‌बास नामक गांव के पास आकर उन्होने पूनोजी से जल मंगाकर स्नान किया और उसी क्षण नश्वर शरीर त्याग दिया। आज भी इस स्थान पर देवीजी का स्मारक विद्यमान है। माताजी के चले जाने से पूनोजी फूट-फूट रोने लगे। तब देवीजीने भगवती के रूपमें उन्हें दर्शन देकर कहा- तुम देशनोक लौट जाओ। मैं तुमसे फिर वहाँ मिलूँगी। पूनोजी देशनोक लौट आये। भगवती ने जैसलमेर नरेश का फोड़ा अच्छा कर दिया। देशनोक में श्रीदेवीजी के दर्शनार्थ दूर-दूरसे यात्री आते है। एक दिन साधु के बेष में एक चोर आया और देवीजी का छत्र चुराकर गुम हो गया। देवीजी ने राजा को तुरंत स्वप्न दिया। राजा ने चोर को पकड़वाकर छत्र मन्दिर में भिजवा दिया सोने का एक और विशाल सुन्दर छत्र बनवाकर देवीजी को भेंट किया, जो आज भी वहाँ रखा है।

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