GENERAL NEWS

जोधपुर की राजकुमारी शिवरंजनी राजे ने शुरू किया ‘आई लव कैमल मिल्क’ अभियान

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

एनआरसीसी में ‘ऊँट विरासत, संरक्षण एवं उद्यमिता’ पर ब्रेन स्‍टोर्मिंग सेशन

बीकानेर 20 नवम्‍बर 2025 । भाकृअनुप–राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर में आज ‘ऊँट विरासत, संरक्षण एवं उद्यमिता’ विषय पर एक गहन विचार गोष्ठी (ब्रेन स्‍टोर्मिंग सेशन) का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में जोधपुर की राजकुमारी शिवरंजनी राजे, विशेषज्ञ वार्ताकार राजुवास बीकानेर के कुलगुरु डॉ. सुमन्त व्यास, तथा अंतरराष्ट्रीय ऊँट विशेषज्ञ डॉ. पियर्स सिम्पकिन ने सहभागिता की। कार्यक्रम की अध्यक्षता केन्द्र के निदेशक डॉ. अनिल कुमार पूनिया ने की। एनआरसीसी के सभी वैज्ञानिकों ने इस गतिवधि में सक्रिय सहभागिता निभाई।
गोष्‍ठी में मुख्‍य संबोधन के दौरान राजकुमारी शिवरंजनी राजे ने ऊँट प्रजाति के संरक्षण को अपनी “प्राकृतिक धरोहर” बताते हुए कहा कि उन्हें, एनआरसीसी में आकर खुशी हुई और वे मारवाड़ की बेटी होने के नाते ऊँटों के संरक्षण हेतु प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने बताया कि भले ही वे अनुसंधान विशेषज्ञ नहीं हैं, लेकिन उनका प्रदेश की भूमि, सांस्‍कृतिक विरासत, निवासियों तथा पशुधन के प्रति एक विशेष जूनून है, अत: वे इस प्रजाति के लिए कार्यरत संस्थानों और उष्‍ट्र संबंद्ध समुदायों के लिए सार्थक प्रयास करेंगी। उन्होंने कहा कि ऊँट प्रजाति को बचाने के लिए उसके चरागाह क्षेत्रों को सुरक्षित करना होगा। राजकुमारी राजे ने स्थानीय घासों का ऊँट पालन में महत्‍व को उजागर करते हुए कहा कि मानव आबादी का विकास महत्वपूर्ण है, परन्तु पशुओं को भी महत्व दिया जाना चाहिए। इस अवसर पर उन्‍होंने ‘‘आई लव कैमल मिल्क’ अभियान की शुरूआत की तथा केन्‍द्र द्वारा विकसित ऊँटनी के दूध से बनी आइसक्रीम उत्‍पाद का भी उत्‍सुकता से स्‍वाद लिया। उन्होंने ऊँटों के लिए चरागाह के संरक्षण की बात कही। उन्‍होंने कैमल ईको-टूरिज्म की संभावनाओं पर बल देते हुए ऊँट उत्पादों को ब्रांडेड शैली में बाजार में पेश करने का सुझाव दिया। उन्होंने एनआरसीसी की ‘एक ऊँट मेरे नाम’ की मुहिम पर अपनी सहमति व्‍यक्‍त की। इस दौरान राजे ने एनआरसीसी के उष्‍ट्र संग्रहालय का भ्रमण किया तथा पौधारोपण भी किया।
इस अवसर पर राजुवास के कुलगुरू डॉ. सुमन्‍त व्यास ने कहा कि मानव सभ्यता, अर्थव्यवस्था और थार के विकास में ऊँट का योगदान ऐतिहासिक और अद्वितीय रहा है। उन्होंने उल्लेख किया कि वैश्विक स्तर पर ऊँट की बहुआयामी उपयोगिता स्वीकार की जाती है, जबकि भारत में इसका मूल्यांकन अभी भी कमत्‍तर आंका जाता है। उन्होंने कहा कि ऊँटनी के दूध का कोई विकल्प नहीं है और इसके पोषण व औषधीय गुण विश्वभर में मान्यता प्राप्त हैं। डॉ. व्‍यास ने गंगा रिसाला की ऐतिहासिक भूमिका का उल्‍लेख किया साथ ही कहा कि आईजीएनपी के निर्माण में ऊँट का महत्‍वपूर्ण सहयोग यदि नहीं मिलता, तो आज शहरी क्षेत्रों में पानी उपलब्ध कराना शायद कठिन होता। डॉ. व्यास ने आशा जताई कि ऊँटों की स्थिति में सुधार न्यूट्रास्यूटिकल मांग, बाजारी आकर्षण और अन्य ट्रिगर्स के माध्यम से संभव है तथा वैज्ञानिकों की नई पीढ़ी ऊँट संरक्षण और पुनर्जीवन पर गंभीरता से अनुसंधान कर रही है।
कार्यक्रम में निदेशक डॉ. अनिल कुमार पूनिया ने कहा कि एनआरसीसी के सभी कार्यों का केंद्रबिन्‍दु सदैव ‘ऊँट व ऊँटपालक’ रहा है। उन्होंने संस्थान की अनुसंधान उपलब्धियों और प्रौद्योगिकीय विकास का उल्लेख करते हुए बताया कि ऊँटनी के दूध को केवल “दूध” कहना उचित नहीं—यह “फूडीस्‍यूटिकल”, अर्थात भोजन और औषधीय गुणों का अनोखा मिश्रण है। उन्‍होंने कहा कि मरुस्थलों में आधुनिकीकरण के कारण भारत में ऊँट संख्या घट रही है, जबकि कई देशों में यह बढ़ रही है। हमें मानव विकास के साथ सस्‍टेनबिलिटी के पहलुओं को ध्‍यान में रखना होगा। क्‍योकि ऊँट के बिना मरूस्‍थ्‍ल की परिकल्‍पना भी असंभव है। उन्होंने कहा कि मानवीय रोगों यथा- मधुमेह, ऑटिज़्म और टीबी में ऊँटनी का दूध अनुपूरक के रूप में प्रबंधन में सहायक है। डॉ. पूनिया ने स्‍पष्‍ट किया कि एनआरसीसी उष्‍ट्र संरक्षण एवं विकास हेतु अनुसंधान के साथ-साथ कैमल ईको-टूरिज्‍म की अवधारणा को लेकर आगे बढ़ रहा है ताकि ऊँट पालकों की आमदनी को बढ़ाया जा सकें। उन्होंने राजकुमारी शिवरंजनी राजे की सकारात्मक सोच की सराहना करते हुए कहा कि यदि ऊँटनी के दूध की प्रोसेसिंग व मार्केटिंग सुदृढ़ हो जाए, तो किसानों को बेहतर मूल्य मिलेगा और ऊँट की आर्थिक उपयोगिता बढ़ेगी।
ब्रेन स्टॉर्मिंग सत्र में भाग लेते हुए डॉ. पियर्स सिम्पकिन ने केन्या में ऊँटों पर अपने अनुसंधान का उल्लेख किया और बताया कि बदलती जलवायु परिस्थितियों में ऊँट एक ऐसी प्रजाति है, जो नॉन-इक्विलिब्रियम इकोसिस्टम में भी अद्भुत रूप से अनुकूलन (adapt) कर लेती है। उन्होंने केन्या सरकार द्वारा ऊँट सेक्टर में किए जा रहे विभिन्न इंटरवेंशनों और उनके प्रभाव पर प्रकाश डाला, तथा भारतीय ऊँट परिस्थिति के साथ उसकी तुलनात्मक चर्चा की। डॉ. पियर्स ने कहा कि भविष्य में भारत और केन्या के बीच समन्वयात्मक एवं सहयोगी अनुसंधान की संभावनाएँ प्रबल हैं, और इस दिशा में संयुक्त प्रयास किए जाएंगे।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. श्‍याम सुंदर चौधरी, वैज्ञानिक द्वारा किया गया तथा धन्‍यवाद प्रस्‍ताव केन्‍द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राकेश रंजन ने प्रस्‍तुत किया।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

About the author

THE INTERNAL NEWS

Add Comment

Click here to post a comment

error: Content is protected !!