
नारायणसिंह भाटी लोक रा चितेरा कवि: प्रोफेसर अर्जुनदेव चारण
जोधपुर । डाॅ. नारायणसिंह भाटी के काव्य में लोक की सरलता एवं शास्त्र की गूढ़ता है। उनकी जड़े तो राजस्थानी डिंगल काव्य परम्परा में है मगर उनका स्वरूप आधुनिक नई कविता का है। आधुनिक राजस्थानी काव्य में मुक्त छंद में कविताएं लिखने वाले वो पहले कवि है मगर उनके काव्य का समुचित आंकलन अभी तक नहीं हुआ इसलिए उनके जीवन एवं सृजन पर आलोचनात्मक दृष्टि से पुनर्विचार की महत्ती दरकार है । कुछ आलोचक उन्हें स्वच्छंदता का कवि कहकर इतिश्री कर लेते है मगर उनका काव्य स्वच्छंदता का नहीं बल्कि समाज एवं सांस्कृतिक मर्यादा का काव्य है। यह विचार ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर (डाॅ.) अर्जुनदेव चारण ने राजस्थानी विभाग द्वारा आयोजित ‘डाॅ.नारायणसिंह भाटी: जीवण अर सिरजण’ एक दिवसीय राष्ट्रीय राजस्थानी संगोष्ठी में अपने अध्यक्षीय उदबोधन में व्यक्त किए । उन्होंनें कहा कि असल में डाॅ. नारायणसिंह भाटी एक लोक चितेरा कवि है।
राजस्थानी विभागाध्यक्ष एवं संगोष्ठी संयोजक डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने बताया कि इस अवसर पर मुख्य अतिथि आकाशवाणी निदेशक रामनिवास चोयल ने कहा कि डाॅ.नारायणसिंह भाटी एक महान सृजनधर्मी रचनाकार है जिन्होंने अपना पूरा जीवन राजस्थानी काव्य सृजन एवं ऐतिहासिक अनुसंधान को समर्पित किया । जो राजस्थानी साहित्य एवं इतिहास को नई दिशा एवं दशा प्रदान करता है। विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर (डाॅ.) मंगलाराम बिश्नोई ने कहा कि डाॅ.नारायणसिंह भाटी राजस्थानी भाषा-साहित्य, संस्कृति एवं प्रकृति के कवि है जिनके काव्य में राजस्थानी लोक बोलता है। पुस्तक प्रकाश शोधकेन्द्र के सहायक निदेशक डॉ.महेन्द्रसिंह तंवर ने प्रारंभ में संगोष्ठी के विषय की उपयोगिता एवं वर्तमान में उसकी प्रासंगिकता को सिद्ध करते हुए डाॅ.नारायणसिंह भाटी को एक कर्मयोगी रचनाकार बताया। संगोष्ठी संयोजक डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने स्वागत उदबोधन के पश्चात डाॅ.नारायणसिंह भाटी के जीवन से जुड़े साहित्यिक अनछुएं पहलुओं को उजागर किया। इस अवसर पर प्रतिष्ठित रचनाकार डाॅ. रामरतन लटियाल द्वारा रचित ‘सत्यवादी तेजोजी प्रामाणिक जीवनी’ एवं वरिष्ठ साहित्यकार रामस्वरूप किसान द्वारा संपादित कथेसर पत्रिका के विशेषांक का अतिथियों द्वारा लोकार्पण किया गया। सत्र संयोजन डाॅ. इन्द्रदान चारण ने किया।
साहित्यिक सत्र: राजस्थानी सहायक आचार्य डाॅ.मीनाक्षी बोराणा की अध्यक्षता में आयोजित प्रथम साहित्यिक सत्र में डाॅ. रेवतदान भींयाड़ ने डाॅ.नारायणसिंह भाटी के जीवन, डाॅ.मदनसिंह राठौड़ ने डाॅ. नारायणसिंह भाटी के मौलिक सृजन तथा डाॅ.सद्दीक मोहम्मद ने डाॅ.नारायणसिंह भाटी के संपादित एवं अनुदित सृजन पर आलोचनात्मक शोध-आलेख प्रस्तुत किये। सत्र संयोजन डाॅ.जितेन्द्रसिंह साठिका ने किया। द्वितीय साहित्यिक सत्र सहायक आचार्य डाॅ.धनंजया अमरावत की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ जिसमें डाॅ.प्रकाशदान नाथूसर ने डाॅ.नारायणसिंह भाटी की काव्य-साधना, डाॅ.रामरतन लटियाल ने डाॅ.नारायणसिंह भाटी के काव्य कला-पक्ष तथा श्री श्रवणराम भादू ने डाॅ.नारायणसिंह भाटी द्वारा संपादित शोध पत्रिका परम्परा पर आलोचनात्मक शोध-आलेख प्रस्तुत किये सत्र संयोजन डाॅ.जीवराजसिंह जुड़िया ने किया।
समापन समारोह: राजस्थानी के प्रतिष्ठित विद्वान प्रोफेसर (डाॅ.) कल्याणसिंह शेखावत ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि नारायणसिंह भाटी की कविताओं में राजस्थानी जन जीवन की सच्चाई है, औपचारिकता नही। उन्होंने कहा कि डाॅ. भाटी ने राजस्थानी साहित्य को सम्पूर्ण विश्व में प्रकाशमान किया इसलिए उनके काव्य पर तुलनात्मक अध्ययन की महती दरकार है। समापन समारोह के मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित कवि-कथाकार रामस्वरूप किसान परलीका ने कहा कि डाॅ. नारायणसिंह भाटी की कविताऐं कलात्मक दृष्टि से अद्भुत, मानवीय संवेदना से परिपूर्ण एवं राजस्थानी लोक संस्कृति का पर्याय है। उन्होंने कहा कि आज की पीढी को उनके कवि कर्म से प्रेरणा लेकर सृजन करना चाहिए। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के राजस्थानी विभागाध्यक्ष डाॅ.सुरेश सालवी ने इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का समाहार प्रस्तुत करते हुए इसे सार्थक, महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक संगोष्ठी बताया। उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन से विश्वविद्यालय के शोधार्थी एवं विद्यार्थी बहुत लाभान्वित होते है जिससे उनके शोध कार्यो को एक नई दृष्टि और साहित्यिक प्रमाण मिलते है। गिरधर गोपालसिंह भाटी ने डाॅ. नारायणसिंह भाटी के जीवन पर प्रकाश डाला। डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने धन्यवाद ज्ञापित किया। समापन समारोह का संयोजन युवा रचनाकार डाॅ. सवाईसिंह महिया ने किया ।
संगोष्ठी के प्रारम्भ में मां सरस्वती एवं डाॅ.नारायणसिंह भाटी के चित्र पर अतिथियों द्वारा माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलित किया गया। तत्पश्चात राजस्थानी परंपरानुसार विभाग के सदस्यों द्वारा अतिथियों का स्वागत किया गया। इस अवसर पर प्रतिष्ठित विद्वान प्रोफेसर (डाॅ.) रामबक्ष, डाॅ. चांदकौर जोशी, डाॅ.दमयंति कच्छवाह, भंवलाल सुथार, बसंती पंवार, संतोष चैधरी, तरनीजा मोहन राठौड़, मोहनसिंह भाटी, रामकिशोर फिड़ोदा, डाॅ.भवानीसिंह पातावत, श्याम गुप्ता ‘शांत’, मोहनदास वैष्णव, डाॅ.कप्तान बोरावड़, डाॅ.कालू खां मेड़ता, डाॅ.सवाईसिंह महिया, डाॅ.तेजाराम परिहार, डाॅ.भानुमति चूण्डावत, नीतू राजपुरोहित, शिवानी जोधा, शीशपाल लिम्बा, रविन्द्र चैधरी, दिलीप राव, डाॅ.कंवरसिंह राव, हेमेंद्रसिंह, खुश्बू राठौड़, मालसिंह चारण, विष्णुशंकर, जगदीश, माधुसिंह, शान्तिलाल, नरेंद्रसिंह सहित संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के शिक्षक, राजस्थानी रचनाकार, शोधार्थी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे ।
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