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साहित्य अकादमी द्वारा एस.एल. भैरप्पा की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन

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नई दिल्ली। 14 अक्तूबर 2025; साहित्य अकादेमी द्वारा आज प्रख्यात कन्नड लेखक एस.एल. भैरप्पा की स्मृति में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न भारतीय भाषाओं के लेखकांे ने उनको याद करते हुए अपनी श्रद्धांजलि प्रकट की। सर्वप्रथम साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने उन्हें इतिहास और नैतिकता के सबसे बड़े लेखक के रूप में याद करते हुए कहा कि वे केवल बड़े लेखक ही नहीं एक दार्शनिक भी थे। अपने लेखन में उन्होंने सत्य को प्राथमिकता दी। कन्नड लेखक बसवराज सदर ने उनसे 1979 की अपनी पहली मुलाकात को याद करते हुए बताया कि जब मैंने उनसे प्रश्न किया कि वह सत्य और सौंदर्य में किसको चुनेंगे तो उनका तुरंत ही उत्तर था, सत्य। क्योंकि सौंदर्य सत्य पर ही टिकता है। उन्होंने उनके संघर्षपूर्ण बचपन का उल्लेख करते हुए कहा कि अपने लंबे लेखकीय जीवन में उन्होंने 25 से ज्यादा श्रेष्ठ उपन्यास लिखे। वे अपने लेखन के सहारे लंबे समय तक हमारे बीच रहेंगे। तेलुगु लेखिका मृणालिनी सी. ने कहा कि वे मास्टर स्टोरी टेलर थे और उन्होंने वैदिक भारत के दर्शन को बहुत अच्छे ढंग से अपने उपन्यासों में प्रस्तुत किया। उनके उपन्यास गहरे शोध पर आधारित होते थे और हर किसी पाठक को अपने साथ जोड़ लेते थे। वे अपने जीवन में किसी भी आंदोलन से प्रभावित नहीं हुए और अपना लेखन केवल इतिहास पर केंद्रित रखा। हिंदी लेखक राजकुमार गौतम ने कहा कि उनके लेखन में मानव स्वभाव के छोटे-छोटे व्यवहारों को भी बड़ी शिद्दत से पेश किया जाता था। जिस विषय पर भी वे लिखते पहले उस पर खुद गहरी जानकारी प्राप्त करते थे। उन्होंने भारत को जिस रूप में प्रस्तुत किया, वह कहीं से भी बनावटी नहीं लगता। ओड़िआ लेखक गौरहरि दास ने कहा कि वे हमारे देश के महान लेखक थे और अपने मिथ्कीय पात्रों द्वारा उन्होंने एक नए भारतीय संसार की रचना की। प्रख्यात गुजराती लेखक भाग्येश झा ने कहा कि उन्होंने जादुई यथार्थवाद के समय भारतीय वैदिक साहित्य को इतनी विश्वनियता से दोबारा प्रस्तुत किया कि सब उसके जादू में बंध गए। उन्हें शब्दऋषि कहना उचित होगा। राजस्थानी लेखक अर्जुनदेव चारण ने उनकी शोध प्रवृत्ति के कई उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने वैदिक साहित्य को वर्तमान समय के सामाजिक स्वरूप में ढालकर हमारे सामने प्रस्तुत किया। वे केवल इतिहास लिखते नहीं थे बल्कि खुद इतिहास का हिस्सा होकर उसमें शामिल रहते थे। हिंदी लेखक बलराम ने कहा कि उनके उपन्यास को सही मायनों में भारतीय उपन्यास कह सकते है। कन्नड लेखक मनु बलिगा ने कहा कि उनसे उनके तीस साल के गहरे संबंध थे। श्री भैरप्पा का लिखना और बोलना एक ही था जो अपने आप में बेमिसाल है। प्रतिष्ठता और ख्याति के शिखर पर होते हुए भी उन्होंने बहुत साधारण जीवन जिया और हमेशा गरीब बच्चों के लिए कार्य करत रहे। साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने उनको याद करते हुए कहा कि उन्होंने धर्म और साहित्य के अंतर को अपने लेखन में प्रस्तुत किया। उनके शोध केवल ऐतिहासिक नहीं बल्कि जीवन शैली से भी जुड़े होते थे। उन्हें असली भारतीय शैली के प्रतीक के रूप में याद किया जाना चाहिए।

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