SPORTS / HEALTH / YOGA / MEDITATION / SPIRITUAL / RELIGIOUS / HOROSCOPE / ASTROLOGY / NUMEROLOGY

रिलेशनशिप- सांवले रंग से समस्या क्या है?:पंचायत की रिंकी को गेंहुए रंग की वजह से नहीं मिल रहा था काम, अब बन गईं ‘नेशनल क्रश’

TIN NETWORK
TIN NETWORK
FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

रिलेशनशिप- सांवले रंग से समस्या क्या है?:पंचायत की रिंकी को गेंहुए रंग की वजह से नहीं मिल रहा था काम, अब बन गईं ‘नेशनल क्रश’

कुछ महीने पहले सोशल मीडिया पर निजी स्कूल की एक किताब का पन्ना वायरल हुआ। पहली कक्षा के बच्चों को हिंदी का पाठ पढ़ाने वाली इस किताब में सुंदर और कुरूप का अंतर समझाया गया था।

किताब लिखने वाले ने ‘सुंदर महिला’ के सामने एक गोरे रंग की महिला की तस्वीर फिट की और लगभग उसी फेशियल फीचर वाली सांवली महिला को ‘कुरूप’ बताकर चिह्नित किया।

यहां बड़े आराम से गोरे रंग को सुंदरता और सांवले रंग को कुरूपता से जोड़ दिया गया। लेकिन बहुत पुरानी बात नहीं है, जब अपने यहां सांवले रंग को खूबसूरत समझा जाता था।

गोरे और सांवले रंग की यह चर्चा पंचायत सीरीज की रिंकी के अनुभव के बाद एक बार फिर से शुरू हुई है। इस किरदार को निभाने वाली सानविका ने कहा कि आज भी इंडस्ट्री में डस्की स्किन वालों को आसानी से काम नहीं मिलता।

इसलिए आज रिलेशनशिप कॉलम में ‘सुंदरता’ के अलग-अलग रंगों की बात करेंगे। समाजशास्त्री, एंथ्रोपॉलोजिस्ट और रिसर्च की मदद से स्किन के रंग को लेकर फैले भ्रमजाल की भी पड़ताल करेंगे।

सबसे पहले यह समझें कि सांवलापन नहीं है ‘कुरूपता’ की निशानी

सबसे पहले यह समझ लेना जरूरी है कि गोरापन खूबसूरती का एकमात्र पैमाना नहीं और न ही सांवलापन ‘कुरूपता’ की निशानी है। ये बात हम किसी को सांत्वना देने के लिए नहीं कह रहे।

एंथ्रोपॉलोजिस्ट गीतिका शर्मा की मानें तो मौजूदा वक्त में सुंदरता के जितने भी पैमाने हैं, सब ब्यूटी, फैशन और कल्चरल इंडस्ट्री के शगूफे हैं। अलग-अलग संस्कृति में अलग-अलग पैमाने बने। कहीं गोरे रंग को तरजीह दी जाती है तो कहीं सांवले रंग की पूछ होती है। कहीं पतली होने के लिए कहा जाता है तो कहीं मोटी। कहीं बाल बड़े करने के लिए कहा गया तो कहीं छोटे। कहीं नीली आंखें खूबसूरत कही गईं तो कहीं भूरी या काली।

ये पैमाने सब्जेक्टिव हैं। लेकिन शारीरिक विज्ञान और एंथ्रोपॉलोजी की नजर में स्वस्थ होना ही सुंदर होना है। बाहरी सुंदरता का यही पैमाना है।

सुंदरता की कोई रूल बुक नहीं, आप जैसे हैं सुंदर हैं

‘सुंदरता देखने वाले की आंखों में बसती है’ आपने यह कहावत कभी न कभी सुनी ही होगी। लेकिन सच्चाई यह भी है कि ऐसी बातें सामाजिक पैमाने पर ‘कम सुंदर’ दिखने वाले लोगों को दिलासा दिलाने भर के लिए कही जाती हैं।

क्या आपके मन में कभी यह सवाल उठा है कि किसी भी महिला या पुरुष को कौन-सी चीजें सुंदर बनाती हैं? गोरा बदन, काली जुल्फें और ब्यूटीफुल फिगर या फिर कुछ और? जवाब है- शायद इनमें से कोई भी नहीं।

क्योंकि अलग-अलग लोगों के लिए, अलग-अलग कल्चर में और इतिहास के अलग-अलग हिस्सों में इस बारे में कभी एकरूपता नहीं रही।

मशहूर साहित्यकार सआदत हसन मंटो गोरे बदन की तुलना पानी में सड़कर सफेद पड़ चुकी लाश से करते थे। तानाशाह हिटलर काले बाल वालों को खराब नस्ल का मानता था। मध्यपूर्व के कुछ देशों में महिलाओं की सुंदरता उनके मोटापे से मापी जाती है। प्राचीन रोम में छोटी छाती वाली महिलाओं को कुलीन समझा जाता था। इन बातों से इतना तो समझ आता ही है कि सुंदरता की कोई रूल बुक नहीं होती है।

तो बाजार में मिलते स्किन को काला करने वाले प्रोडक्ट्स..

समाजशास्त्री डॉ. मोहन सिंह बताते हैं कि समाज में जो अमीर और प्रभावशाली होता है, धीरे-धीरे उसे ही सुंदर और बेहतर मान लिया जाता है। लंबे समय तक हमारे ऊपर अंग्रेजों का शासन रहा।

चूंकि हमारे शासक गोरे थे, इसलिए हमारे मन में इस रंग के प्रति आदर का भाव और सांवले या काले रंग के प्रति हीनभावना आई।

अगर दुनिया पर अफ्रीकन ने राज किया होता तो आदर की यही भावना काले रंग को लेकर होती और आज दुनिया भर के बाजार स्किन को काला करने वाले प्रोडक्ट्स से भरे होते।

इसका मतलब है कि खूबसूरती हमारे रंग से नहीं बल्कि उस रंग से जुड़ी ऐतिहासिक सोच और अनुभव से जुड़ा है। सोच और अनुभव समय के साथ बदलते रहे हैं।

कभी सांवला रंग था सुंदरता का पैमाना

ऐतिहासिक रूप से देखें तो भारत में गहरे रंग को बढ़िया माना जाता था। कृष्ण और श्याम रंग की एक अलग पहचान थी। रामचरितमानस में तुलसी दास ने भगवान राम की तारीफ करते हुए लिखा- ‘केकी कंठ दुति स्यामल अंगा’। यानी भगवान मोर के कंठ की तरह सांवले हैं। महाभारत में सांवले रंग की द्रौपदी को अनिंद्य सुंदरी बताया गया है। मेघदूत में कालीदास ने भी सांवले रंग की शान में कसीदे पढ़े हैं।

सांवला रंग या शारीरिक बनावट को लेकर पनपने वाली हीनभावना कई बार जान की दुश्मन भी बन जाती है। ऐसी ही हुआ हैदराबाद और मुंबई के मामले में।

जुनून सुंदर दिखने का, कीमत- मौत!

पिछले साल की घटना है। हैदराबाद के रहने वाले एक युवक की शादी होने वाली थी। लेकिन वह अपने चेहरे से खुश नहीं था। किसी ने उसे बताया कि उसकी मुस्कान में कुछ कमी है। इस कमी को पूरी करने के लिए शादी से पहले उसे स्माइल सर्जरी कराने और अपनी ‘सुंदरता’ बढ़ाने की सलाह दी गई। दूल्हे ने ऐसा किया भी।

लेकिन यही सर्जरी उसके लिए काल बन गई। सर्जरी की वजह से शादी से ऐन पहले उसकी जान चली गई। जिस लड़के को मंडप पर बैठना था, वह अर्थी पर चढ़कर श्मशान पहुंच गया। शादी की उमंग में डूबा उसका घर शोक में घिर गया।

मुंबई की एक लड़की के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। लड़की ने शहर के एक नामी लग्जरी ब्यूटी पार्लर में फेशियल कराया था। फेशियल भी खास किस्म का था, जिसके लिए महिला ने पूरे 17,500 रूपए चुकाए। लेकिन इस फेशियल ने महिला के पूरे चेहरे को जला दिया।

उसके पूरे चेहरे पर जलने के निशान पड़ गए। ये निशान परमानेंट हैं। जो अब पूरी उम्र उसके साथ रहेंगे। चेहरा खराब होने के बाद महिला ने पार्लर के खिलाफ पुलिस में केस दर्ज कराया। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। मामला आया-गया हो गया।

अब तक आप समझ चुके होंगे कि खूबसूरती को लेकर कोई ब्यूटी मीटर नहीं। जिसे हम आज ब्यूटीफुल कहते या समझते हैं आने वाले समय में ब्यूटी बाजार के मदारी उसे किसी भी नए नाम से बुला सकते हैं और नए नजरिए से देख सकते हैं। आज के वक्त में लोगों का कॉन्फिडेंस ही उन्हें ब्यूटीफुल या हैंडसम बनाता है। जो कॉन्फिडेंट है, वही ब्यूटीफुल या हैंडसम है। इसका स्किन कलर से कोई लेना-देना नहीं है। पंचायत सीरीज से घर-घर में पहचान बनाने वाली सानविका इसका जीता-जागता उदाहरण हैं।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare
error: Content is protected !!