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SC बोला- जज फैसला देते समय अपने विचार न रखें:कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा था- किशोरियां यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखें

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SC बोला- जज फैसला देते समय अपने विचार न रखें:कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा था- किशोरियां यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखें

नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मित्तल की बेंच ने मामले पर सुनवाई की। - Dainik Bhaskar

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मित्तल की बेंच ने मामले पर सुनवाई की।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने 20 अक्टूबर को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो एक्ट) के एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था- किशोरियों को अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। वे दो मिनट के सुख के लिए समाज की नजरों में गिर जाती हैं।

शुक्रवार 8 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मित्तल की बेंच ने इस पर संज्ञान लेते हुए आपत्ति जताई। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को टीनएजर्स के आर्टिकल 21 के अधिकारों का उल्लंघन बताया है।

बेंच ने कहा कि जज से उम्मीद नहीं की जाती है कि वे फैसला सुनाते वक्त अपने विचार व्यक्त करें। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने पूछा कि अगर फैसले के खिलाफ कोई अपील फाइल हुई हो तो हमें बताया जाए।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने लड़कों को भी नसीहत दी थी
कलकत्ता हाईकोर्ट में जस्टिस चितरंजन दास और जस्टिस पार्थ सारथी सेन की बेंच ने एक लड़के को नाबालिग गर्लफ्रेंड से यौन उत्पीड़न मामले में बरी करते हुए ये टिप्पणियां की थीं। दोनों टीनएजर्स के बीच प्रेम संबंध था और उन्होंने सहमति से संबंध बनाए थे।

डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने लड़के को पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराते हुए 20 साल जेल की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ वह हाईकोर्ट पहुंचा था। हाईकोर्ट ने लड़कों को नसीहत दी थी- किशोरों को युवतियों, महिलाओं की गरिमा और शारीरिक स्वायत्तता का सम्मान करना चाहिए।

हाईकोर्ट की पेरेंट्स को सलाह- बच्चों को घर में सिखाएं
कलकत्ता हाईकोर्ट ने पेरेंट्स से कहा कि बच्चों, खासतौर पर लड़कियों को गुड टच-बैड टच, गलत इशारे, अच्छी-बुरी संगत और रिप्रोडक्टिव सिस्टम के बारे में सही जानकारी दें। महिलाओं का सम्मान करने की सीख देनी चाहिए, क्योंकि परिवार ही ऐसी जगह है जहां बच्चे सबसे ज्यादा और सबसे पहले सीखते हैं।

हाईकोर्ट ने सहमति से संबंध बनाने की उम्र घटाने का सुझाव दिया
हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) के प्रावधान पर भी चिंता जताई थी। इनमें किशोरों में सहमति से यौन संबंधों को अपराध माना गया है। बेंच ने 16 साल से अधिक उम्र के किशोरों के बीच सहमति से बने संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटाने का सुझाव दिया था।

भारत में यौन संबंधों के लिए सहमति की उम्र 18 साल है। इससे कम उम्र में दी गई सहमति वैध नहीं मानी जाती।

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