जम्मू-कश्मीर के बाद मणिपुर पर शाह की मीटिंग:सेना प्रमुख, IB CHIEF ,R&AW के अधिकारी शामिल; RSS चीफ ने कहा था- मणिपुर पर ध्यान देने की जरूरत
नई दिल्ली
मणिपुर हिंसा और राज्य की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर गृह मंत्री अमित शाह की दिल्ली में बैठक चल रही है। इसमें केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला, खुफिया ब्यूरो प्रमुख तपन डेका, सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे, मणिपुर के सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह, मणिपुर के मुख्य सचिव विनीत जोशी, मणिपुर के डीजीपी राजीव सिंह और असम राइफल्स के डीजी प्रदीप चंद्रन नायर बैठक में शामिल हुए।
एक दिन पहले (रविवार 16 जून) ही गृह मंत्री शाह ने जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा को लेकर हाई लेवल मीटिंग की थी। इसमें उन्होंने अधिकारियों को आतंकवाद और आतंकियों के मददगारों पर सख्त एक्शन के निर्देश दिए हैं।
मोदी कैबिनेट के शपथ लेने के एक दिन बाद 10 जून को RSS चीफ मोहन भागवत ने कहा था- मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है। बीते 10 साल से राज्य में शांति थी, लेकिन अचानक से वहां गन कल्चर बढ़ गया। जरूरी है कि इस समस्या को प्राथमिकता से सुलझाया जाए।
16 जून को हुई मीटिंग में जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा भी मौजूद थे।
मणिपुर की राज्यपाल ने की थी शाह से मुलाकात
मणिपुर के हालात पर यह हाईलेवल मीटिंग राज्यपाल अनुसुइया उइके की गृह मंत्री से मुलाकात के एक दिन बाद बुलाई गई है। अनुसुइया ने शाह से मुलाकात के दौरान पूर्वोत्तर राज्य की मौजूदा स्थितियों के बारे में जानकारी दी थी।
मणिपुर में पिछले साल 3 मई से जातीय हिंसा जारी है, जब अखिल आदिवासी छात्र संघ (ATSU) ने मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल करने की मांग के विरोध में आयोजित रैली में झड़पें हुई थीं।
चुराचांदपुर जिले में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे। जो देखते ही देखते पूर्वी-पश्चिमी इंफाल, बिष्णुपुर, तेंगनुपाल और कांगपोकपी समेत अन्य जिलों में फैल गए थे।
जून में एक व्यक्ति की हत्या के बाद कोटलेन में अज्ञात बदमाशों ने मैतेई और कुकी दोनों समुदायों के कई घरों को जला दिया। इसके बाद जिरीबाम के 600 लोग असम के कछार जिले में शरण ले रहे हैं।
मणिपुर में 67 हजार लोग विस्थापित हुए
जिनेवा के इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (IDMC) ने रिपोर्ट जारी की है। इसमें कहा गया है कि साल 2023 में साउथ एशिया में 69 हजार लोग विस्थापित हुए। इनमें से 97 फीसदी यानी 67 हजार लोग मणिपुर हिंसा के कारण विस्थापित हुए थे। रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत में साल 2018 के बाद हिंसा के कारण पहली बार इतनी बड़ी संख्या में विस्थापन देखने को मिला।
4 पॉइंट्स में जानिए- क्या है मणिपुर हिंसा की वजह…
मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।
- कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।
- मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।
- नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।
- सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।
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