अबू धाबी के मंदिर में भरतपुर का पत्थर:कलर मैच नहीं हुआ तो 5 महीने रुका काम, 170 फीट खुदाई के बाद मिला पसंद का स्टोन
जयपुर
हाल ही में 14 फरवरी को अबू धाबी में स्वामी नारायण मंदिर का उद्घाटन हुआ था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए थे। 14 से 24 फरवरी तक अबू धाबी में कई कार्यक्रम हुए।
दुनियाभर में सुर्खियां बटोर रहे इस मंदिर का राजस्थान से खास कनेक्शन है। मंदिर में इस्तेमाल किया गया पत्थर बयाना (भरतपुर) का है। इसके लिए ढाई लाख घन फुट पत्थर पोर्ट से अबू धाबी भेजा गया था।
इतना ही नहीं पत्थर का कलर मैच नहीं हुआ तो 5 महीने काम रोकना पड़ा। पसंदीदा पत्थर के लिए 170 फीट तक खुदाई की गई।
मंदिर के निर्माण के लिए बयाना का पत्थर ही क्यों चुना गया, इस सवाल का जवाब जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम भरतपुर के बयाना पहुंची।
पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
शिवशंकर स्टोन इंडस्ट्रीज के नेमीचंद शर्मा को भी मंदिर के उद्घाटन के दौरान हुए कार्यक्रमों के लिए अबू धाबी बुलाया गया था।
पूरा पत्थर बंशी पहाड़पुर से निकाला
बयाना में शिवशंकर स्टोन इंडस्ट्रीज के नेमीचंद शर्मा ने ही पत्थर अबूधाबी पहुंचाया है। नेमीचंद ने बताया कि अबू धाबी के मंदिर में 2.50 लाख घन फुट पत्थर लगा है। पूरा पत्थर बयाना के बंशी पहाड़पुर से निकाला गया है।
मंदिर का काम दिसंबर में ही पूरा हो चुका है। प्रधानमंत्री मोदी के उदघाटन के बाद से अभी मंदिर में कई कार्यक्रम चल रहे हैं।
स्वामीजी ने अबूधाबी में मंदिर बनाने के लिए पत्थर मांगा
नेमीचंद शर्मा ने बताया कि 2020 में स्वामी अक्षरमुनि बयाना आए थे। तब कोरोना चल रहा था। उनके साथ बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामिनारायण संस्था (BAPS) संस्था से काफी लोग आए थे।
मीटिंग में उन्होंने अबू धाबी में मंदिर बनाने की बात कहीं थी। स्वामी अक्षरमुनि ने नेमीचंद शर्मा से कहा कि तुम्हें सारा पत्थर भेजना होगा। पत्थर भेजने के लिए पूरी प्लानिंग बताई गई।
नेमीचंद ने बताया कि उन्होंने पत्थर भेजने के लिए हामी भर दी। उस समय वे नासिक सहित कई जगहों पर पत्थर भेज रहे थे। उन्हाेंने दूसरी जगह पत्थर भेजना कम किया, ताकि अबू धाबी के लिए पर्याप्त खेप भेज सकें।
अबू धाबी मंदिर के अलावा अयोध्या राम मंदिर के निर्माण में भी बंशी पहाड़पुर के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया।
कलर को लेकर 5 महीने रुका रहा काम
नेमीचंद ने बताया कि उन्होंने अबू धाबी मंदिर के लिए पत्थर भेजना शुरू तो कर दिया, लेकिन जिस कलर का पत्थर चाहिए था, वो माइंस से निकल नहीं रहा था।
कलर में कुछ अंतर आ रहा था। पूरी तरह से मैच नहीं हो रहा था। ऐसे में करीब 5 महीने तक काम रूका रहा।
अबू धाबी से डिमांड आई कि जिस माइंस से पहले पत्थर भेजा था, उसी माइंस का पत्थर चाहिए। BAPS से कई इंजीनियर माइंस देखने के लिए पहुंचे।
कई सैंपल दोबारा से मैच करके देखे गए थे। इसके बाद मिट्टी निकाल माइंस को साफ कराया गया। इसके बाद उस कलर का पत्थर निकाला, जो मांगा गया था।
नेमीचंद ने बताया कि बंशी पहाड़पुर के पत्थर की डिमांड बेहद ज्यादा है। क्योंकि ये पत्थर पानी और धूप से खराब नहीं होता है। बल्कि जितना पानी पत्थर पर गिरता है, उतनी ज्यादा चमक बढ़ती है। धूप का भी कोई असर नहीं पड़ता है। पत्थर की एक हजार साल से ज्यादा की क्षमता है।
मंदिर के लिए एक जैसे कलर के पत्थर चाहिए थे, ऐसे में पांच महीने तक काम रुका रहा।
170 फीट से निकाल रहे पत्थर
नेमीचंद ने बताया कि बंशी पहाड़पुर माइंस में अभी 170 फीट की गहराई तक पहुंच चुके हैं। जितनी गहराई पर जा रहे हैं, उतना अच्छा पत्थर अच्छा निकल रहा है। पत्थर में कहीं भी कोई क्रेक नहीं होता है।
वे बाेले कि 50 साल तक भी माइंस में खुदाई करें तो भी पत्थर खत्म नहीं होगा। मंदिरों के लिए पत्थर की डिमांड बहुत ज्यादा आ रही है। अभी अयोध्या में भी परिसर के लिए पत्थर भेजा जा रहा है।
अयोध्या से भी लगातार पत्थर भेजने की डिमांड की जा रही है। दोनों के ऑर्डर लगभग एक साथ ही आए थे। ऐसे में रात-दिन काम करके दोनों जगहों की डिमांड पूरी गई थी।
पहले पिंडवाड़ा पहुंचा रहे, फिर वापस बयाना
नेमीचंद शर्मा ने बताया कि माइंस से सीधे पत्थर निकाल कर पहले बयाना में आता है। यहां पर पत्थरों के ब्लॉक की टेस्टिंग के बाद पिंडवाड़ा भेजा जाता है। वहां पर भी टेस्टिंग की जाती है।
BAPS का यहां पर बड़ा कारखाना बना हुआ है। यहां पर करीब 700 सीएनसी मशीनें और 70 कार्बिंग मशीनें है। इसके बाद कटिंग की जाती है।
सीएनसी मशीनों से ही पत्थर पर डिजायन(नक्काशी) का काम किया जाता है। प्रॉपर शेप में कटिंग होने के बाद वापस पत्थरों को हिंडौन और बयाना में लाया जाता है।
सीएनसी मशीनों से ही पत्थर पर डिजायन(नक्काशी) का काम किया जाता है।
हिंडौन और बयाना में 25 कारखाने बनाए
पिंडवाडा से काम करने के बाद पत्थरों को हिंडौन और बयाना लाया जाता है। क्योंकि यहां पर अच्छे कारीगर हैं। करीब 25 प्रतिशत से ज्यादा काम हैंडवर्क किया जाता है।
हिंडौन और बयाना में करीब 25 कारखाने हैं। कई गांवों में BAPS ने कारखाने बना रखे हैं। जहां पर कारीगर ज्यादा हैं, वहीं पर संस्था ने कारखाना बना दिया है।
संस्था का सुपरवाइजर, डिजाइनर इंजीनियर और आर्किटेक्ट भी होता है। जो कारीगरों के काम को चेक करते हैं। ये कारीगर हथौड़े, छैनी से पूरा डिजायन तैयार करते हैं।
माइंस से पत्थर निकलने से लेकर डिजायनिंग तक संस्था के इंजीनियर बारीकी से चेक करते हैं। पत्थर में हल्का क्रेक होने पर भी उसे रिजेक्ट कर दिया जाता है।
बड़े-बड़े कंटेनरों में पैंकिंग कर भेजे गए पोर्ट
नेमीचंद शर्मा ने बताया कि पत्थरों को तैयार करके अबूधाबी भेजना भी बड़ी चुनौती थी। डिजाइनिंग होने के बाद पत्थरों की सही से पैकिंग की जाती है। उन्हें पूरी तरह से कवर किया जाता है ताकि डिजायन खराब न हो।
पैकिंग कर बड़े-बडे़ कंटेनरों में डाला जाता है। उन कंटेनरों को सील कर वहां से इन्हें कांडला पोर्ट पर भेजा जाता है। यहां से पूरे पत्थर जहाज के जरिए अबूधाबी भेजा गया है।
1600 मंदिर बना चुके
नेमीचंद शर्मा ने बताया कि अबूधाबी में मंदिर का काम दिसम्बर महीने में ही पूरा हो चुका था। स्वामीजी ने प्रण लिया था कि अयोध्या में काम पूरा होने व प्राण प्रतिष्ठा होने पर ही अबूधाबी में उद्घाटन करेंगे।
BAPS संस्था देश और विदेश में करीब 1600 मंदिर बना चुकी है। अमेरिका, जर्मनी, इंग्लैंड, जापान से लेकर हर बड़े देश में मंदिर बनाए जा चुके हैं।
देश में 1000 से ज्यादा मंदिर बनाए हैं। संस्था ने प्रण लिया है कि वे हर बड़े शहर में एक मंदिर बनाएंगे। 2005 में दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर के बाद से ही उन्हें लगातार देशभर से पत्थर भेजने के लिए ऑर्डर मिल रहा है। तब से बयाना और हिंडौन में दो ऑफिस बनाए गए हैं।
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