अब कैसे करेगा प्रशासन सहायक आचार्य को रिलीव ??
REPORT BY SAHIL PATHAN
जयपुर / दिल्ली : एमजीएसयू बीकानेर की एक महिला सहायक आचार्य ने बीते दिनों अपने ही यूनिवर्सिटी के पांच साथियों के खिलाफ कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न का पुलिस केस दायर किया जिसमें यूनिवर्सिटी के कुलपति पर भी लैंगिक उत्पीड़न के आरोप लगाए गये थे।इसके क्रम में कुलपति द्वारा राज्यपाल से हुईं मुलाकात पश्चात राजभवन द्वारा पीड़िता के खिलाफ एक उच्च स्तरीय समिति गठित हुईं जिसमें राजूवास के पूर्व कुलपति अध्यक्ष हैं और दो अन्य राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपति सदस्य हैं , किंतु पंद्रह दिन का समय राजभवन द्वारा सितंबर 2022 से आरंभ कर देने के बावजूद सात महीने बीत जाने पर भी और तीनों कुलपतियों द्वारा पीड़िता के बयान दर्ज करने के बावजूद, जांच पूरी कर लेने के बाद भी आज दिन तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई या यूं कहें कि यूनिवर्सिटी को राजभवन के मार्फत प्राप्त नहीं हुईं । साथ ही पीड़िता की शिक़ायत पर राज्य सरकार द्वारा दिसंबर 2022 में उक्त प्रकरण में उच्च स्तरीय जांच समिति गठित हुईं जिसमें हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय की कुलपति अध्यक्ष हैं व अन्य दो सदस्य शामिल हैं किंतु उनकी रिपोर्ट भी अभी तक यूनिवर्सिटी को प्राप्त नहीं हुईं है जबकि इस समिति को भी 15 दिवस में अपनी जांच पूरी कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आदेश थे । लब्बोलुबाब ये रहा कि समितियां बनी लेकिन पीड़िता व पीड़िता द्वारा आरोपित साथियों के बयान दर्ज होने के बावजूद ना कोई जांच रिपोर्ट सार्वजानिक हुईं ना ही किसी के खिलाफ कोई चार्ज शीट कोर्ट में प्रस्तुत हुईं। उल्लेखनीय है कि उक्त सेक्शुयल हेरेसमेंट प्रकरण में पीड़िता द्वारा दिनाँक 26 अगस्त 2022 को रात 1:17 मिनिट पर नाल थाने में अपने उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज करवाई गई, जांच CID तक पहुंची किंतु अब तक ना FR लगी ना ही किसी के खिलाफ कोई चार्ज शीट प्रस्तुत हुई।ग्यातव्य सूत्रों के मुताबिक पीड़िता के खिलाफ विश्वविद्यालय स्तर पर भी कुछ विद्यार्थियों और उनके परिजनों द्वारा छात्रों के भविष्य खराब करने के गंभीर आरोप लगाए गये जिसकी एनक्वायरी यूनिवर्सिटी स्तर पर भी लंबित हैं जिसमें डूंगर कॉलेज के प्राचार्य, कॉलेज शिक्षा के सहायक निदेशक के अलावा नोखा राजकीय महाविद्यालय के प्राचार्य सदस्य हैं। जानकारी के अनुसार इस समिति ने अब तक कोई जांच रिपोर्ट विश्वविद्यालय में आज दिनाँक तक प्रस्तुत नहीं की है।
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इसी बीच पीड़िता का किसी अन्य यूनिवर्सिटी में चयन होने पर वो संस्था से रिलीव होने हेतु आजकल एक विभाग से दूसरे विभाग चक्कर काटती नज़र आ रहीं हैं। सवाल ये उठता है कि ऐसे में अब पीड़िता को संस्था कैसे रिलीव कर सकती है जब उनके खिलाफ इतनी जांचे पेंडिंग हैं ? यूनिवर्सिटी नें उन्हें इतने मामलों के चलते NOC कैसे दी ?यूनिवर्सिटी के कुलसचिव अरुण प्रकाश शर्मा से दूरभाष पर पूछने पर उन्होंने बात टालते हुये व ख़ुद को व्यस्त बताते हुये मुद्दे से पल्ला झाड़ लिया जबकि मुख्य बिंदु यह है कि संस्थान पीड़िता को किस आधार पर रिलीव करेगा जबकि उनके द्वारा साथी सहकर्मियों के खिलाफ लगाएं आरोपों की स्थिति स्पष्ट नहीं है और ख़ुद पीड़िता के खिलाफ उच्च स्तरीय जांचे लंबित हैं । उनके निस्तारण के बिना कैसे पीड़िता को संस्था नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट दें सकती है जबकि केस अभी चल रहा है और स्वयं पीड़िता के खिलाफ गंभीर जांचे ड्यू हैं। ऐसे में कैसे उन्हें यूनिवर्सिटी प्रशासन नो ड्यूज़ दें सकता है ? कैसे रिलीव कर सकता है, ये विचारणीय बिंदु है।
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