मंत्री के वॉट्सऐप स्टेटस पर महिला अफसर की डिजायर:नेताजी ने पकड़े मुखिया के पांव, किस विधायक ने जिलाध्यक्ष को धमका दिया
जयपुर
- हर शनिवार पढ़िए और सुनिए- ब्यूरोक्रेसी, राजनीति से जुड़े अनसुने किस्से
सोशल मीडिया में सेकेंड्स की चूक भी कई बार सब कुछ उजागर कर देती है। पिछले दिनों एक मंत्रीजी से भी चूक हो गई।
किसी महिला अफसर को उसी जगह रखने के लिए मंत्रीजी ने डिजायर लिखी थी। देरी से बचने के लिए वॉट्सऐप से डिजायर भेजने का फैसला किया।
विभाग के अफससर को सेंड होने की जगह गलती से यह डिजायर वाट्सऐप स्टेट्स पर लग गई। मंत्री का ऐसा स्टेटस देखकर जागरूक लोगों ने तत्काल स्क्रीनशॉट लिए।
उनके शभुचिंतकों ने पांच मिनट में ही मैसेज पहुंचाकर गलती ठीक करवा दी, लेकिन सोशल मीडिया पर इतना वक्त काफी होता है।
सेंड ऑप्शन और स्टेटस ऑप्शन में बहुत मामूली सा अंतर होने के कारण कई बड़े लोग पहले भी राज उजागर करवा चुके हैं। सयाने सलाहकारों ने मंत्रीजी काे सोशल मीडिया का यूज सावधानी से करने की सलाह दी है।
डिजायर तो सामान्य सी बात थी, किसी दिन कोई गोपनीय विस्फोटक दस्तावेज भी स्टेटस पर लग गया तो क्या होगा? फिर सोशल मीडिया से अनसोशल कोई नहीं हो सकता।
नेताजी ने बैठक के बाद क्यों पकड़े मुखिया के पांव?
सत्ताधारी पार्टी में पिछले दिनों वॉर रूम में हुई बैठक की सियासी हलकों में रह-रहकर चर्चाएं हो रही हैं। बैठक में किस तरह कुछ नेताओं को मुखिया ने फटकारा था वो तो सबके सामने आ ही चुका है।
कुछ ऐसी बातें भी हुई थीं जो बाहर नहीं आईं। मुखिया ने बैठक में जैसे ही एक नेताजी को खरी खोटी सुनाई, बैठक खत्म होते ही उन नेताजी ने मुखिया के पास जाकर पैर पकड़ लिए।
नेताजी के साथी अब चुटकियां ले रहे हैं कि जब हिम्मत ही नहीं थी तो बोलने की क्या जरूरत थी? पांव पकड़ो डिप्लोमेसी का भी जवाब नहीं है।
इस पूरे घटनाक्रम को वहां मौजूद एक नेता ने चुपके से देख लिया, अब सियासत में ऐसेी बातें छिपती कहां है, प्रत्यक्षदर्शी ने बैठक के बाद का लाइव वृतांत सुना दिया।
राजधानी के विधायक ने जिलाध्यक्ष को क्यों धमकाया ?
सत्ता वाली पार्टी की राजधानी में अलग तरह की उठापटक है, यहां हर नेता अपने को बड़ा समझता है। पिछले दिनों एक अल्पसंख्यक पार्षद ने सत्ता वाली पार्टी के राजधानी के जिलाध्यक्ष का सम्मान समारोह रखवाया। अल्पसंख्यक पार्षद और इलाके के विधायक से छत्तीस का आंकड़ा है।
जिलाध्यक्ष के सम्मान समारोह से विधायक गायब थे क्योंकि बुलाया ही नहीं। अल्पसंख्यक विधायक को यह बात नागवार गुजरी कि जिलाध्यक्ष की इतनी हिम्मत कि वह बिना विधायक को बताए उनके इलाके में विरोधी से सम्मान करवा कर आ जाए।
विधायक ने आव देखा न ताव, जिलाध्यक्ष को फोन घुमाया और अपने अंदाज में जमकर खरी खोटी सुनाई। विधायक सत्ता के नजदीक हैं,इसलिए सियासी गर्मी तो रहती ही है।
जिलाध्यक्ष को भी विधायक का अंदाज चुभ गया है। चुनाव नजदीक अलग हैं, इसलिए विधायक के बोल ज्यादा ही चुभ गए हैं, इसीलिए चर्चा बाहर आ गई है। राजधानी की सियासत भी तो जलेबी जितनी सीधी है।
मुखिया की सम्राट से तुलना और संगठन मुखिया का नाम भूले
आजादी के मौके पर फ्री राशन किट योजना का लॉन्चिंग समारोह कई मायनों में अनूठा रहा। समारोह में स्वागत के वक्त संगठन के मुखिया का नाम विधायकों के भी बाद लिया गया।
फिर मंत्री का भाषण हुआ तो संगठन मुखिया का नाम ही नहीं लिया। इस चूक पर कई जानकार अचंभा जता रहे हैं। दूसरा अनूठा काम लोक कलाकारों के गीत में हुआ।
लोक कलाकारों ने प्रदेश के मुखिया की मौजूदगी में उनकी तुलना भारत के एक महान सम्राट से करते हुए उन्हें महान बताते हुए खूब गुणगान किया। अब सियासी जानकार इसके मायने निकाल रहे हैं।
सरकारी कार्यक्रम में भी तो सियासी मैसेज होते हैं, जिस जगह प्रोग्राम हुआ उस जगह से पहले भी सियासी मैसेज दिए जा चुके हैं।
हाईलेवल सरकारी बैठक में क्यों आए प्राइवेंट एजेंसी के मालिक?
प्रदेश के मुखिया इन दिनों ताबड़तोड़ बैठकें कर रहे हैं। चुनावी साल है तो फैसले जल्दी करने हैं इसलिए बैठकों की संख्या बढ़ना स्वाभाविक है।
पिछले दिनों सत्ता के सबसे बड़े घर में 2030 का विजन बनाने को लेकर हाईलेवल सरकारी बैठक हुई। सरकार ने उस बैठक का वीडियो भी जारी किया।
उस बैठक में सबसे अनोखी बात थी एक प्राइवेट व्यक्ति का मौजूद रहना। अनजान चेहरे को देख कई जानकारों को अचंभा हुआ।
सरकार की छवि चमकाने वाली एजेंसी के कर्ताध्कर्ता का हाईलेवल सरकारी बैठक में मौजूद रहना अब सियासी चर्चा का मुद्दा बन गया है।
‘राजसुहाती’ बात के लिए विख्यात अफसरों का वॉशरूम विमर्श
सत्ता के आस पास रहने का सबसे बड़ा गुण है-‘राजसुहाती’ बात कहने का गुण। राजसुहाती बात कहने और करने में माहिर कुछ अफसरों के एक ही दिन में पिछले दिनों दो रूप देखने को मिले।
राजधानी में तैनात दो अफसर सत्ता के नजदीक लोगों से सरकार रिपीट का ग्राउंड फीडबैक देने का दावा करते नहीं थकते।
एक सरकारी समारोह के बाद पिछले दिनों दोनों अफसर वॉशरूम में मिल गए। आपसी बातचीत में दोनों अफसरों ने सरकार रिपीट के दावों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। दोनों ने सीटों की संख्या को बहुत कम बताया।
दोनों अफसरों की इस असली बात को किसी सियासी चालक ने सुन लिया। बात आगे भी पहुंचा दी गई है। इस पूरी घटना की सत्ता के गलियारों में खूब चर्चा हो रही है।
वैसे इस पूरी घटना का सार यह है कि राज के आसपास रहने वालों को दिल की बात ऐसे वॉशरूम में तो उजागर बिल्कुल नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यहां सुनने वाले बहुत होते हैं, दिल की बातें ऐसे ही तो बाहर आती हैं।
वैसे, दोनों अफसर सत्ता के चहेते हैं और ऊपर सरकार रिपीट के पक्ष में तर्क गिनाते नहीं थकते। अफसरों के इस दिल और दिमाग वाले फीडबैक के अंतर को सियासी-सुजान ही समझ सकते हैं, जो इस फर्क को समझ पाया है वही सियासी भवसागर को पार कर पाया है, बाकी इतिहास गवाह है।
सेंट्रल डेपुटेशन के प्रयासों में कई अफसर
सत्ता के नजदीक कई अफसर इन दिनों सेंट्रल डेपुटेशन पर जाने के प्रयास में हैं। सत्ता के सबसे बड़े ऑफिस के ताकतवर अफसर भी प्रयास कर रहे हैं।
राजधानी में पुलिस की कमान संभाल चुके अफसर, राजधानी में शहरी विकास एजेंसी को संभाल चुके दो आईएएस से लेकर आधा दर्जन अफसर केंद्र में संभावनाएं तलाश रहे हैं। इनमें से कुछ अफसर दिल्ली के चक्कर भी लगा रहे हैं।
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