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ईरान ने 7 साल बाद सऊदी अरब में खोली ऐंबैसी:दोनों देशों के बीच डिप्लोमैटिक रिश्तों की शुरुआत, चीन ने मार्च में कराया था समझौता

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ईरान ने 7 साल बाद सऊदी अरब में खोली ऐंबैसी:दोनों देशों के बीच डिप्लोमैटिक रिश्तों की शुरुआत, चीन ने मार्च में कराया था समझौता

फुटेज रियाद में ऐंबैसी के उद्घाटन समारोह की है। - Dainik Bhaskar

फुटेज रियाद में ऐंबैसी के उद्घाटन समारोह की है।

ईरान ने मंगलवार को 7 साल बाद सऊदी अरबी में अपनी ऐंबैसी खोली। इसी के साथ खाड़ी के दो अहम देशों के बीच डिप्लोमैटिक रिश्ते फिर से बहाल हो गए। इस मौके पर एंबेसी कम्पाउंड में सेरेमनी का आयोजन किया गया। इसमें कई डिप्लोमैट्स शामिल हुए। ईरान के कॉन्सूलर मामलों के डिप्टी विदेश मंत्री ने कहा- ये दिन ईरान और सऊदी के रिश्तों के लिए अहम है। हमें उम्मीद है कि इससे क्षेत्र स्थिरता और विकास की तरफ आगे बढ़ेगा।

इससे पहले मार्च में दोनों देशों ने ऐंबैसी खोलने को लेकर समझौता हुआ था। इसके तहत 2016 के बाद दोनों देश एक-दूसरे के मुल्क में अपनी-अपनी ऐंबैसी फिर खोलने के लिए राजी हो गए थे। ईरान के विदेश मंत्री हुसैन आमिर अब्दुल्लाह ने लेबनान की राजधानी बेरूत में इसकी जानकारी दी थी। दोनों देशों के बीच ये समझौता चीन ने कराया था।

ऐंबैसी खुलने से जुड़ी सेरेमनी की 2 प्रमुख तस्वीरें…

तस्वीर में ईरान और सऊदी अरब के डिप्लोमैट्स रिबन काटकर ऐंबैसी का उद्घाटन करते नजर आ रहे हैं।

तस्वीर में ईरान और सऊदी अरब के डिप्लोमैट्स रिबन काटकर ऐंबैसी का उद्घाटन करते नजर आ रहे हैं।

तस्वीर 7 साल बाद सऊदी अरब की राजधानी रियाद में खुली ईरान की ऐंबैसी की है।

तस्वीर 7 साल बाद सऊदी अरब की राजधानी रियाद में खुली ईरान की ऐंबैसी की है।

जो काम अमेरिका नहीं कर पाया चीन ने कर दिखाया
सऊदी और ईरान के बीच रिश्तों को सुधारने की कई देश कोशिश कर चुके थे। इंटरसेप्ट की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में सत्ता में आने के बाद राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दो साल में यमन के गृह युद्द को बंद करवाने का वादा किया था। वो सऊदी और ईरान की दुश्मनी की वजह से वादा पूरा नहीं कर पाए। जिसे चीन ने पूरा किया है।

11 मार्च को चीन की राजधानी बीजिंग में ईरान और सऊदी अरब के बीच अहम समझौता हुआ। रिपोर्ट में कहा गया है कि हथियार सप्लाई करने की पॉलिसी पर चलने के कारण अमेरिका की मिडल ईस्ट में ऐसी छवि नहीं रह गई थी कि उसे शांति स्थापित करवाने के लायक समझा जा सके। जिसका चीन ने फायदा उठाया है। सऊदी और ईरान के बीच समझौता करवा कर चीन ने यमन में जंग खत्म करने के लिए रास्ता खोल दिया।

तस्वीर में ईरान के विदेश मंत्री (बाएं) सऊदी के विदेश मंत्री (दाएं) से हाथ मिला रहे हैं। बीच में दोनों के बीच समझौता कराने वाले चीन के विदेश मंत्री हैं।

तस्वीर में ईरान के विदेश मंत्री (बाएं) सऊदी के विदेश मंत्री (दाएं) से हाथ मिला रहे हैं। बीच में दोनों के बीच समझौता कराने वाले चीन के विदेश मंत्री हैं।

7 साल पहले शुरू हुआ था तनाव

  • 2016 में सऊदी अरब ने ईरान के लिए जासूसी के आरोप में 32 शिया मुसलमानों के खिलाफ मुकदमा शुरू करते हुए इन्हें जेल में डाल दिया था। इसमें 30 सऊदी अरब के ही नागरिक थे। ईरान ने इसका बदला लेने की धमकी दी थी।
  • इसके बाद, सऊदी अरब ने ड्रग स्मगलिंग के आरोप में ईरान के तीन नागरिकों को सजा-ए-मौत दे दी। इसके बाद तेहरान में मौजूद सऊदी ऐंबैसी पर ईरानियों ने हमला बोल दिया था। दोनों देशों के रिश्ते पूरी तरह खत्म हो गए थे। ऐंबैसीज भी बंद हो गईं थीं। दोनों देश जंग की कगार पर पहुंच गए थे। इस दौरान अमेरिका सऊदी की मदद के लिए आया था।
  • 2020 में ईरान परमाणु संधि से बाहर होने और तेहरान पर प्रतिबंध लागू करने के लिए अमेरिका को सबक सिखाना चाहते थे। इसके लिए हुई मीटिंग में अफसरों के बीच इस बात की सहमति बनी कि अमेरिका से सीधे हमले में उलझने के बजाय उसके सहयोगी सऊदी अरब को सबक सिखाया जाए। इसके लिए यमन के हूती विद्रोहियो की लगातार मदद की गई। उनसे हमले कराए गए।
  • 2014 में BBC ने एक रिपोर्ट में कहा- जल्द ही सऊदी अरब के पास परमाणु बम होगा। इसे पाकिस्तान बना रहा है। माना जा रहा है कि सऊदी अरब ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम से निपटने के लिए पाकिस्तानी परमाणु हथियारों में पैसा लगाया है।
  • 2017 में तब के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सऊदी अरब में सेना तैनात करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। सऊदी की तेल कंपनी अरामको की दो रिफाइनरियों पर ड्रोन और मिसाइल हमलों के बाद यह फैसला लिया गया था। इसकी जिम्मेदारी यमन के हूती विद्रोहियों ने ली थी, लेकिन अमेरिका और सऊदी अरब दोनों ने इसके लिए ईरान को जिम्मेदार ठहराया।
  • एक इंटरव्यू में सऊदी क्राउन प्रिंस सलमान ने कहा था- हमारे तेल संयंत्रों पर हमला ईरान की तरफ से जंग की शुरुआत है। इसके बावजूद हम ईरान के साथ विवाद का हल डिप्लोमैसी से चाहते हैं। अगर जंग हुई तो दुनिया की इकोनॉमी तबाह हो जाएगी।
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