DEFENCE / PARAMILITARY / NATIONAL & INTERNATIONAL SECURITY AGENCY / FOREIGN AFFAIRS / MILITARY AFFAIRS WORLD NEWS

कश्मीर कब्जाने चले PAK से छिन जाता लाहौर:हमारे पास रात में लड़ने वाले टैंक तक नहीं थे; कैसे आज ही के दिन भारत जीता जंग

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

कश्मीर कब्जाने चले PAK से छिन जाता लाहौर:हमारे पास रात में लड़ने वाले टैंक तक नहीं थे; कैसे आज ही के दिन भारत जीता जंग

आज 23 सितंबर है, 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई दूसरी जंग में आज ही के दिन सीजफायर हुआ था। ये वही जंग है जिसमें लाल बहादुर शास्त्री की अगुआई में भारत ने पाकिस्तान के लाहौर तक कब्जा कर लिया था। आज हम 23 दिन तक लड़े गए इस युद्ध की कहानी बताते हैं…

60 का दशक था। 1962 में चीन से हार के चलते भारतीय सेना का मनोबल टूटा हुआ था। इसी बीच मई 1964 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का निधन होने से भारतीय राजनीति में एक वैक्यूम सा आ गया था।

उधर, पाकिस्तान में सेना प्रमुख अयूब खान चुनी हुई सरकार का तख्तापलट कर राष्ट्रपति बने। उनकी नजर में कश्मीर खटक रहा था। जनवरी 1965 में गुजरात के कच्छ में सरक्रीक के पास पाकिस्तानी सेना ने भारतीय क्षेत्र में गश्त करना शुरू दिया।

8 अप्रैल को दोनों देश एक दूसरे की चौकियों पर हमला करने लगे। पाकिस्तान की सेना ऑपरेशन डेजर्ट हॉक लॉन्च करती है और कंजरकोट फोर्ट बॉर्डर के पास कुछ भारतीय चौकियों पर कब्जा कर लेती है।

भारत के PM लाल बहादुर शास्त्री ने मजाक के लहजे में कहा था कि अयूब खान ने ऐलान किया था कि वो दिल्ली तक चहलकदमी करते हुए पहुंच जाएंगे। मैंने सोचा कि हम ही लाहौर की ओर बढ़ कर उनका स्वागत करें।

भारत के PM लाल बहादुर शास्त्री ने मजाक के लहजे में कहा था कि अयूब खान ने ऐलान किया था कि वो दिल्ली तक चहलकदमी करते हुए पहुंच जाएंगे। मैंने सोचा कि हम ही लाहौर की ओर बढ़ कर उनका स्वागत करें।

जून 1965 में ब्रिटिश PM हैराल्ड विल्सन इस विवाद को सुलझाने के लिए एक ट्रिब्यूनल बनाने पर दोनों देशों को राजी कर लेते हैं। पाकिस्तान ने इसे भारत की कमजोरी समझी। इसी दौरान अमेरिका ने पाकिस्तान को 700 मिलियन डॉलर यानी आज के हिसाब से करीब 5.6 हजार करोड़ रुपए की सैन्य सहायता और मॉडर्न हथियार दिए।

दूसरी तरफ चीन से हार के बाद भारत दुनिया से मॉडर्न हथियारों की खरीद कर रहा था, लेकिन अभी डिलिवरी नहीं हुई थी। ऐसे में ओवर कॉन्फिडेंट अयूब को लगा कि भारत से कश्मीर छीनने का ये माकूल वक्त है। अगर देर की तो भारत ज्यादा ताकतवर हो जाएगा।

कहानी में आगे बढ़ने से पहले देखते हैं कि सैन्य ताकत में भारत से कितना मजबूत था पाकिस्तान…

ऑपरेशन जिब्राल्टर की शुरुआत

अयूब खान ने कश्मीर पर कब्जे के लिए ऑपरेशन जिब्राल्टर की शुरुआत की। दरअसल स्पेन के पास जिब्राल्टर नाम का एक छोटा द्वीप है। जब यूरोप जीतने के लिए अरब देशों की सेना पश्चिम की ओर चली, तो उनका पहला पड़ाव जिब्राल्टर ही था। यहीं से आगे बढ़ते हुए अरबी सेना ने पूरे स्पेन पर जीत दर्ज की थी।

पाकिस्तान को लगता था कि एक बार उसने भारत के जिब्राल्टर (कश्मीर) पर कब्जा कर लिया, तो वह भारत को मात दे देगा।

33 हजार पाकिस्तानी सैनिक कश्मीरी बनकर LoC पार करते हैं

तारीख 5 अगस्त 1965, पाकिस्तान के करीब 33 हजार सैनिक कश्मीरी बनकर LoC पार करते हैं। इन सैनिकों का पहनावा और रहन-सहन कश्मीरियों की तरह था। मकसद- कश्मीर के स्ट्रैटेजिक पॉइंट मसलन पुल, पोस्ट ऑफिस, टेलीफोन ऑफिस, कम्युनिकेशन नेटवर्क और सरकारी दफ्तरों पर कब्जा करना।

साथ ही कश्मीरियों को भड़काकर भारत सरकार के खिलाफ खड़ा करना, लेकिन अयूब का दांव उल्टा पड़ गया। कश्मीरी लोगों ने इन पाकिस्तानी सैनिकों को पहचान लिया और 15 अगस्त 1965 को इसकी जानकारी भारतीय सेना तक पहुंचा दी।

अगस्त 1965 में सीमापार कर आए स्थानीय कश्मीरियों के वेश में पाकिस्तानी अधिकारी, कैप्टन मोहम्मद सज्जाद और कैप्टन गुलाम हुसैन को गिरफ्तार कर ले जाते भारतीय सेना के जवान। सोर्स : सैनिक समाचार

अगस्त 1965 में सीमापार कर आए स्थानीय कश्मीरियों के वेश में पाकिस्तानी अधिकारी, कैप्टन मोहम्मद सज्जाद और कैप्टन गुलाम हुसैन को गिरफ्तार कर ले जाते भारतीय सेना के जवान। सोर्स : सैनिक समाचार

जिब्राल्टर के नाकाम हाेने पर ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू कर दिया

भारतीय सेना ने शुरुआत में ही कई लड़ाकों को गिरफ्तार कर लिया। स्पेशल कमांडोज को इन लड़ाकों को पकड़ने या मारने की जिम्मेदारी दी। पाकिस्तान को लगा कि उसका ये प्लान फेल होने वाला है, तो उसने ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया।

1 सितंबर 1965, शाम के 4 बजे का वक्त। दिल्ली के साउथ ब्लॉक के कमरा नंबर 108 में हलचल थी। तब के रक्षा मंत्री यशवंत राव चह्वाण यहीं रहते थे। वे अपने ऑफिस में काम कर रहे थे, तभी सेना प्रमुख चौधरी और एयरफोर्स चीफ अर्जन सिंह दाखिल हुए। वहां डिफेंस सेक्रेटरी पहले से मौजूद थे।

वे लोग कहने लगे की युद्ध शुरू हो चुका है। अभी रिपोर्ट आई है। छंब सेक्टर में पाकिस्तान की आर्मी भारत की ओर बढ़ रही है। उन्होंने चह्वाण से कहा कि हमें जवाब देना होगा। देर की तो रात हो जाएगी और हमारी सेना रात में लड़ने के लिए तैयार नहीं है। सेना जम्मू में है और उसे बॉर्डर तक ले जाने में वक्त लगेगा।

अर्जन सिंह बोले- एयर ऑपरेशन।

चह्वाण ने पूछा- आपको एयर ऑपरेशन पर कॉन्फिडेंस है?

अर्जन सिंह बोले- एयरफोर्स इसलिए ही है। आप ऑर्डर दें, तो हम तैयार हैं।

चह्वाण बोले कितनी देर लगेगी?

अर्जन का जवाब आया- 5 मिनट में आदेश चाहिए।

इसके बाद चह्वाण प्रधानमंत्री शास्त्री से मिलने पहुंचे, लेकिन वे उस वक्त पार्लियामेंट में थे। वो फौरन लौटे और अर्जन सिंह से बोले- मैं एयरफोर्स को छंब सेक्टर में अटैक का आदेश देता हूं। रक्षा सचिव पीवीआर राव ने मौखिक आदेश को रिकॉर्ड किया।

समय था शाम 4:45 मिनट। ठीक एक घंटे बाद 5:45 मिनट पर पठानकोट एयरबेस से भारत के 8 वैंपायर विमानों ने उड़ान भरी। यहीं से भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध की औपचारिक शुरुआत हुई।

ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम का मकसद अखनूर पर कब्जा कर भारत को पुंछ और रजौरी से काटने का था, लेकिन भारतीय एयरफोर्स के हमले ने इसे नाकाम कर दिया।

1965 में खेम करण सेक्टर में जवानों के साथ उस वक्त के रक्षा मंत्री वाई बी चह्वाण।

1965 में खेम करण सेक्टर में जवानों के साथ उस वक्त के रक्षा मंत्री वाई बी चह्वाण।

लाहौर पर कब्जे के लिए भारतीय सेना ने चलाया ऑपरेशन बैंगल

1 सितंबर 1965 की रात थी। 11 बजकर 45 मिनट हुए थे। प्रधानमंत्री के कार्यालय 10 जनपथ में तत्कालीन PM लाल बहादुर शास्त्री अपने दफ्तर के कमरे तेजी से चलते हुए कुछ सोच रहे थे।। शास्त्री के उस वक्त सचिव रहे सीपी श्रीवास्तव ने अपनी किताब ‘ए लाइफ ऑफ ट्रूथ इन पॉलिटिक्स’ में लिखा है- ‘शास्त्री इस तरह तेज चलते हुए तभी बुदबुदाते थे, जब उन्हें कोई बड़ा फैसला लेना होता था। उन्होंने उस वक्त बुदबुदाते हुए कहा- अब तो कुछ करना ही होगा।’

इसके बाद 2 और 3 सितंबर को प्रधानमंत्री शास्त्री ने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई और पाकिस्तान पर हमला करने की योजना को अमलीजामा पहनाया। यानी अखनूर में पाकिस्तान के हमले के प्रेशर को कम करने के लिए भारत ने एक नया मोर्चा खोलने का फैसला किया।

पहले तय हुआ कि हमला 7 सितंबर को सुबह 4 बजे किया जाएगा, लेकिन पश्चिम क्षेत्र के कमांडर-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल हरबख्श सिंह ने 24 घंटे पहले यानी 6 सितंबर को आगे बढ़ने का फैसला किया। इस पूरे ऑपरेशन का कोड वर्ड था ‘बैंगल’।

पाकिस्तान को इसकी भनक न लगे इसलिए जनरल हरबख्श सिंह शिमला में पहले से तय कार्यक्रम में शामिल हुए। कार्यक्रम खत्म होते ही हेलिकॉप्टर से बॉर्डर पर पहुंचे। सबसे पहले उन्होंने अमृतसर में कर्फ्यू लगाने का आदेश दिया। इसके बाद तय वक्त पर भारत की सेना 4 जगहों से पाकिस्तान में घुस गई और कुछ ही घंटों में डोगराई के उत्तर में भसीन, दोगाइच और वाहग्रियान पर कब्जा कर लिया।

जब अब्दुल हमीद ने पाकिस्तान के 8 पैटन टैंकों को तबाह किया

7 सितंबर 1965 तक खेम करण में पकिस्तानी सेना को रोकने के लिए आर्मी ने ‘असल उत्तर’ में डिफेंसिव पोजीशन ले रखी थी। इसी दौरान पाकिस्तान के 100 पैटन टैंकों ने पहला हमला बोला। फिर 8 सितंबर 1965 चीमा गांव के बाहर गन्ने के खेतों के बीच अब्दुल हमीद जीप में ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठे हुए थे। तभी उन्होंने पाकिस्तानी टैंकों की आवाज सुनी।

थोड़ी देर में टैंक दिखाई देने लगे। उन्होंने टैकों के अपनी रिकॉयलेस गन की रेंज में आने का इंतजार किया और जैसे ही टैंक उनके गन की रेंज में आए, फायर कर दिया। अमेरिकी पैटन टैंक धू-धू कर जलने लगा और उसमें सवार पाकिस्तानी सैनिक उसे छोड़कर भागने लगे।

उस लड़ाई में भाग लेने वाले कर्नल रसूल खां कहते हैं कि106 MM RCL की रेंज 500-600 गज होती है। ये काफी प्रभावी होते हैं। लग जाए तो टैंक बचता नहीं है, लेकिन खराब बात ये है कि इससे सिर्फ एक-दो या ज्यादा से ज्यादा तीन फायर हो सकते हैं। इसके बावजूद हमीद ने उसी दिन पाकिस्तान का दूसरा पैटन टैंक भी तबाह किया।

10 सितंबर को पाकिस्तानियों ने जबरदस्त गोलाबारी शुरू कर दी। तभी हमीद की नजर टैंक पर तब पड़ी जब वो उससे 180 मीटर दूर था। उसने टैंक को पास आने दिया और फिर उस पर सटीक निशाना लगाया। टैंक जलने लगा। हमीद तेजी से अपनी जीप को दूसरी ओर ले गए ताकि दूसरे पाकिस्तानी टैंकों को उनकी लोकेशन का पता न चल पाए।

इसके बाद हमीद ने पीछे से निशाना लगाकर एक और टैंक को ध्वस्त कर दिया। इसके बाद वे तीसरे टैंक पर निशाना लगा रहे थे, तभी पाकिस्तानी सैनिक ने उन्हें देख लिया। दोनों ने एक साथ ट्रिगर दबाया। दो गोले फटे। हमीद का गोला टैंक पर लगा और टैंक के गोले ने हमीद की जीप को उड़ा दिया। हमीद जाते-जाते भी पाकिस्तानी टैंक को तबाह कर गए।

युद्ध के दौरान हमीद ने पाकिस्तान के 8 पैटन टैंकों को तबाह किया था।

‘जिंदा या मुर्दा, डोगराई में मिलना है’

डोगराई लाहौर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है। पाकिस्तान के लिए डोगराई सामरिक रूप से अहम है। वजह, GT ट्रंक रोड है, जो दिल्ली-अमृतसर से होते हुए लाहौर तक जाती है। डोगराई में GT ट्रंक रोड के बीच इच्छोगिल नहर है। पाकिस्तान की सेना ने 1950 में इसे बनाया था। ताकि इधर से लाहौर जाने वाले रस्ते को ब्लॉक किया जा सके।

6 सितंबर 1965 को सुबह 9 बजे 3 बटालियन जाट रेजिमेंट ने इच्छोगिल नहर की तरफ बढ़ना शुरू किया। पाकिस्तानी एयरफोर्स की भारी बमबारी से जाट रेजिमेंट को अपने भारी हथियार गंवाने पड़े। इन सब के बावजूद 11 बजे तक उन्होंने नहर के पश्चिमी किनारे पर पहले बाटानगर और फिर डोगराई पर कब्जा जमा लिया। यानी लाहौर पर हमले के लिए भारतीय सेना तैयार थी। उधर पाकिस्तान एयरफोर्स का हमला जारी रहा।

दूसरी ओर, 3 जाट को समय से रसद और हथियार नहीं मिल पाए। भारतीय एयरफोर्स भी मदद नहीं कर पाई। इसका असर यह हुआ कि भारतीय सेना को डोगराई से पीछे हटना पड़ा और संतपुरा में पोजीशन लेनी पड़ी। पाकिस्तान ने फिर से इच्छेगिल नहर पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना ने इसके बाद डोगराई पर कब्जा करने की काफी कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली।

3 जाट कमांड संभाल रहे लेफ्टिनेंट कर्नल डेसमंड हाइड ने 21 सितंबर की रात को डोगराई पर हमला करने का प्लान बनाया। हाइड ने अपने सैनिकों से कहा- एक भी सैनिक पीछे नहीं हटेगा। दूसरा, जिंदा या मुर्दा डोगराई में मिलना है।

लेफ्टिनेंट कर्नल डेसमंड हाइड ने अपनी किताब द बैटिल ऑफ डोगराई मे लिखा- ‘ये एक अविश्वसनीय हमला था। इसका हिस्सा होना और इतने नजदीक से देखना मेरे लिए बहुत सम्मान की बात थी।’

लेफ्टिनेंट कर्नल डेसमंड हाइड ने अपनी किताब द बैटिल ऑफ डोगराई मे लिखा- ‘ये एक अविश्वसनीय हमला था। इसका हिस्सा होना और इतने नजदीक से देखना मेरे लिए बहुत सम्मान की बात थी।’

उस वक्त पाकिस्तान ने अपनी दो कंपनियां डोगराई में तैनात कर रखी थीं। 13 नंबर मील के पत्थर पर दो और कंपनियां मौजूद थीं। नहर के मुहाने पर हर कदम पर 8 मशीन गैन तैनात थीं। भारत के 550 जवानों के सामने पाकिस्तान फौज की दोगुनी संख्या थी।

हाइड ने बताया कि 54 इंफ्रैंट्री ब्रिगेड ने 2 चरणों में हमले की योजना बनाई थी। पहले 13 पंजाब को 13 मील के पत्थर पर पाकिस्तानी कंपनियों को पीछे ढकेलना था और फिर 3 जाट को हमला कर डोगराई पर कब्जा करना था।

हाइड ने ब्रिगेड कमांडर से पहले ही कह दिया था कि 13 पंजाब का हमला सफल हो या न हो, 3 जाट दूसरे चरण को पूरा करेगी। 13 पंजाब का हमला असफल हो गया और ब्रिगेड कमांडर ने वायरलेस पर हाइड से उस रात हमला रोक देने के लिए कहा।

ठीक 1 बजकर 40 मिनट पर हमले की शुरुआत हुई। डोगराई के बाहरी इलाके में सीमेंट के बने पिल बॉक्स से पाकिस्तानियों ने मशीन गन से जबरदस्त हमला किया।

सूबेदार पाले राम ने कहा कि सब जवान दाहिने ओर से मेरे साथ चार्ज करेंगे। कैप्टन कपिल सिंह थापा की प्लाटून ने भी लगभग साथ-साथ चार्ज किया। जो गोली खाकर गिरे उन्हें वहीं पर छोड़ दिया गया। पाले राम के सीने और पेट में 6 गोलियां लगीं, लेकिन उन्होंने तब भी अपने जवानों को कमांड देना जारी रखा। बंदूक और बमों से शुरू होने वाली लड़ाई जल्द ही हाथपाई में तब्दील हो गई।

3 जाट ने पाकिस्तानी फौज के कमांडर कर्नल गोलवाला, उनके बैटरी कमांडर सहित 108 लोगों को जिन्दा पकड़ लिया। इस दौरान पाकिस्तान के 308 सैनिक मारे गए। भारत के 108 जवानों में से 86 शहीद हो गए। 22 तारीख की सुबह साढ़े पांच बजे भारत ने डोगराई पर कब्जा कर लिया। अगले एक दिन तक भारतीय सेना डोगराई से लाहौर पर गोले बरसाती रही।

पाकिस्तान के लाहौर का डोगराई का इलाका जिस पर 1965 में भारतीय सेना ने कब्जा कर लिया था।

पाकिस्तान के लाहौर का डोगराई का इलाका जिस पर 1965 में भारतीय सेना ने कब्जा कर लिया था।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को बीच में आना पड़ा

23 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को बीच में आना पड़ा। इसके बाद दोनों देशों ने सीजफायर की घोषणा की और युद्ध खत्म हुआ। इसके बाद युद्ध में कितना नुकसान हुआ, इसका अंदाजा लगाया गया।

आखिर जीत किसकी हुई

भारत ने 1920 स्क्वायर किलोमीटर जमीन पर कब्जा किया था और पाकिस्तान ने 540 स्क्वायर किलोमीटर जमीन पर। भारत के 2,735 और पाकिस्तान के 5,988 सैनिक मारे गए। दोनों देशों ने जीत का दावा किया, लेकिन डिफेंस एक्सपर्ट की मानें तो दोंनों ही देश अपने सैनिक उद्देश्यों को पूरा करने में असफल रहे।

पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब इतने हतोत्साहित हुए कि उन्होंने एक मंत्रिमंडल की बैठक में कहा था कि मैं चाहता हूं कि यह समझ लिया जाए कि पाकिस्तान 50 लाख कश्मीरियों के लिए 10 करोड़ पाकिस्तानियों की जिंदगी कभी नहीं खतरे में डालेगा…कभी नहीं।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare
error: Content is protected !!