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कैबिनेट बैठक में किस बात पर भिड़े मंत्री:ब्यूरोक्रेसी की मुखिया के एक्सटेंशन को रेड सिग्नल, छात्र नेता का सुपर फास्ट प्रमोशन

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कैबिनेट बैठक में किस बात पर भिड़े मंत्री:ब्यूरोक्रेसी की मुखिया के एक्सटेंशन को रेड सिग्नल, छात्र नेता का सुपर फास्ट प्रमोशन

  • हर शनिवार पढ़िए और सुनिए- ब्यूरोक्रेसी, राजनीति से जुड़े अनसुने किस्से

सत्ताधारी पार्टी में नेता और मंत्री साथ बैठें और मतभेद न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। पिछले दिनों कैबिनेट की बैठक में जयपुर के माइनॉरिटी हॉस्टल की जमीन का जिक्र आते ही राजधानी वाले मंत्री बरस पड़े। मारवाड़ से आने वाले महकमे के मंत्री ने जयपुर में माइनॉरिटी हॉस्टल की जमीन की दिक्कत का जिक्र किया।

प्रदेश के मुखिया ने राजधानी वाले मंत्री की राय पूछी। राजधानी वाले मंत्री जमीनों वाले मंत्रीजी से हिसाब बराबर करने को तैयार ही बैठे थे, कई दिनों का संचित गुस्सा बहा दिया। तेजतर्रार मंत्री ने यहां तक आरोप लगा दिया कि जमीनों वाले मंत्री तो बीजेपी की सलाह पर काम करते हैं, ये माइनॉरिटी का हॉस्टल क्यों बनने देंगे?

सरकार के नंबर टू को घिरता देख प्रदेश के मुखिया ने बात संभाली। पार्टी के नेता अब अपने कोर वोट बैंक को हॉस्टल के लिए राजधानी में जमीन मिलने में देरी पर नाराजगी जता रहे हैं। उधर यह मामला हैदराबाद वाले नेता के रडार पर भी आ गया है।

संगठन मुखिया और मंत्री के बीच तनातनी

सत्ताधारी पार्टी में संगठन की नियुक्तियों में हुई देरी के साइड इफैक्ट सामने आने लग गए हैं। एक ब्लॉक अध्यक्ष की नियुक्ति के मामले में पूर्वी राजस्थान के मंत्री और संगठन के मुखिया के बीच तनातनी होने की खबर है। पिछले दिनों सत्ता के सबसे बड़े घर पर हुई बैठक में जब पार्टी के पदों पर नियुक्तियों का मामला उठा, मंत्री ने अपने खाली ब्लॉक का मामला उठा दिया।

मंत्री और संगठन मुखिया दोनों ही गरम मिजाज के हैं, इसलिए तनातनी होनी ही थी। अब सत्ताधारी पार्टी में विधायक ही सुप्रीम हैं तो संगठन में अपनी पसंद के नेताओं को पद दिलवाएंगे ही। सत्ताधारी पार्टी में यह शुरुआत है। चुनावी साल है अभी आगे आगे देखिए, ऐसे कई मौके आएंगे।

ब्यूरोक्रेसी की मु​खिया के एक्सटेंशन को दिल्ली से रेड सिग्नल

प्रदेश को इस महीने के अंत में ब्यूरोक्रेसी का नया मुखिया मिलना तय हो गया है। सरकार मौजूदा ब्यूरोक्रेसी के मुखिया को एक्सटेंशन दिलाने के प्रयास में थी लेकिन बात नहीं बनी। मौजूदा ब्यूरोक्रेसी के मुखिया का इसी महीने के आखिर में रिटायरमेंट है।

बताया जाता है कि अंदरखाने एक्सटेंशन के प्रयास भी हुए लेकिन दिल्ली से मनाही हो गई। केंद्र-राज्य दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकार हुए बिना एक्सटेंशन नामु​मकिन होता है। पिछले राज में जब दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकार थी तो तत्कालीन ब्यरोक्रेसी के मुखिया को आसानी से एक्सटेंशन मिल गया था। अब नए ब्यूरोक्रेसी के मुखिया के नाम पर एक्सरसाइज तेज हो गई है। मौजूदा ब्यूरोक्रेसी की मुखिया के लिए रिटायरमेंट बाद अच्छे पद की तलाश शुरू हो गई है।

विपक्षी पार्टी में बाबा मेनस्ट्रीम में, आगे बड़ी जिम्मेदारी की चर्चा

विपक्षी पार्टी में इन दिनों बहुत कुछ बदल रहा है। हर छोटे बड़े मामले में सरकार के खिलाफ झंडा बुलंद करने वाले बाबा के नाम से मशहूर नेताजी इन दिनों मेनस्ट्रीम में आ गए हैं। लंबे समय से बाबा अपने बूते ही आंदोलन और धरने प्रदर्शन करते रहे थे। पिछले 10 दिन में बाबा विपक्षी पार्टी के मुख्यालय में दो प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुके हैं।

प्रदेश के मुखिया सहित सत्ता में बैठे कई लोगों के खिलाफ केंद्रीय एजेंसी को दस्तावेज के साथ शिकायत और एक्शन की जुगलबंदी भी खूब चर्चा में है। सियासी जानकार बाबा को चुनावी साल में किसी चुनावी कमेटी में बड़ी जिम्मेदारी दिए जाने की भी चर्चा कर रहे हैं।

चुनावी रणनीतिकार की जोरदार वापसी, देखते रह गए दिग्गज

सियासत में वक्त कब पलट जाए और कब कौन महत्वपूर्ण बन जाए कोई नहीं कह सकता। कर्नाटक की जीत के बाद सत्ताधारी पार्टी में अब राजस्थान का कई मामलों में वीटो खत्म हो गया लगता है। चुनावी रणनीति तैयार करने वाले एक रणनीतिकार को कुछ महीने पहले राजस्थान में भाव नहीं दिया गया था।

अंदरखाने चर्चाएं थीं कि साउथ इंडिया के रणनीतिकार को मुखिया की तरफ से रेड सिग्नल मिल गया, इसलिए वे अपना बोरिया बिस्तर समेटकर चले गए थे। कर्नाटक जीत के बाद समीकरण ऐसे बने कि वहां का मॉडल अब हाईकमान सब चुनावी राज्यों में लागू करना चाहता है।

जिस रणनीतिकार को कुछ माह पहले भाव नहीं दिया था वह इतनी पवरफुल पॉजीशन बनाकर लौटे कि मुखिया को मंत्रियों की बैठक में उनकी रणनीति पर चर्चा करनी पड़ी। अब सर्वे और टिकट के मापदंडों से लेकर चुनावी रणनीति तैयार करके हाईकमान को कोई सीधे रिपोर्ट करेगा तो उसकी ताकत समझ सकते हैं।

इसीलिए कहा जाता है प्रतिभावान सियासी रणनीतिकार से पंगा नहीं लेना चाहिए, कब हाईकमान का खास हो जाए और आप जिस बात को सिरे से खारिज करते थे उसे मानना पड़ जाए। यहां वाले सुरमाओं के साथ ऐसा ही होता हुआ दिख रहा है।

छात्र नेता का सुपर फास्ट सियासी प्रमोशन

राजनीति में जबसे रगड़ाई शब्द का चलन बढ़ा है तबसे नेताओं के पदों की ट्रैकिंग शुरू हो गई है। सियासत में तरक्की में किस्मत और कनेक्शन का रोल मानने वालों की भी कमी नहीं है। सत्ताधारी पार्टी में तो किसी को पद मिलता है तो उसका पूरा बायोडाटा दूसरे ही पहले से निकालकर तैयार रहते हैं।

एक छात्र नेता का सुपरफास्ट सियासी प्रमोशन चर्चा का विषय बन गया है। सत्ताधारी पार्टी की स्टूडेंट विंग में प्रदेश महासचिव फिर कुछ ही दिन बाद पीसीसी मेंबर और इसके सप्ताह भर बाद प्रदेश सचिव का पद मिल गया। राजनीति में इतना सुपरफास्ट प्रमोशन तो किस्मत-कनेक्शन वालों को ही मिल सकता है।

इतने सारे प्रमोशन मिलने के बाद छात्र कम युवा नेता संगठन मुखिया का आभार जताने पहुंचे। स्वागत सत्कार करवाने के बाद संगठन मुखिया भी इस सुपरफास्ट प्रमोशन पर चुटकी लिए बिना नहीं रह सके। अब इस प्रमोशन को कोई दूदू मॉडल नाम दे रहा है और तो कोई कुछ।

अब ईडी, इनकम टैक्स तय करेंगे सियासी नरेटिव

चुनावी साल में प्रदेश का सियासी नरेटिव कौन तय करेगा? इसका जवाब एक बड़े नेता ने दिया कि कोई कुछ भी दावा करे लेकिन सियासी नरेटिव तो ईडी तय करेगा। यह बात कई लोगों के गले नहीं उतरी लेकिन पेपरलीक में ईडी की एंट्री होते ही यह बात समझ आने लगी है। अंदरखाने जो सूचनाएं मिल रही हैं उसके हिसाब से पेपरलीक तो एक ट्रेलर है, असली पिक्चर तो आगे बाकी है। आगे अब विभागों के घोटालों का नंबर बताया जा रहा है।

ईडी के पास बहुत पहले से घोटालों के दस्तावेज पहुंचाए जा चुके हैं। कुछ मंत्रियों के अलावा सत्ता लाभार्थी बड़े अफसरों के खिलाफ भी ईडी के पास दस्तावेज पहुंचाए गए हैं। सियासी और प्रशासनिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि आने वाले दिनों में कई बड़े नाम केंद्रीय एजेंसियों के चक्कर काटते दिख सकते हैं। सत्ताधारी पार्टी के नेता और लाभार्थी अफसर इसके लिए मेंटली तैयार हो चुके हैं।

विपक्षी पार्टी की केंद्रीय टीम में राजस्थान के दिग्गजों के नाम

विपक्षी पार्टी में इन दिनों अंदरखाने बहुत कुछ ऐसी तैयारियां चल रही हैं जिसका असर राजस्थान पर भी पड़ेगा। विपक्षी पार्टी की केंद्रीय कार्यकारिणी में फेरबदल से लेकर चुनावी कमेटियां तक बनाने की तैयारियां जारी हैं। राजस्थान के कई नेताओं को केंद्रीय टीम में जगह मिल सकती है।

प्रदेश की पूर्व मुखिया को केंद्रीय टीम में प्रमोशन मिलने की तो पूर्व संगठन मुखिया को केंद्रीय टीम में लेने की चर्चा है। राजस्थान की चुनावी कमेटियों में भी कई चौंकाने वाले नामों की चर्चा है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी राजस्थान के चेहरों की अदला बदली की चर्चाएं हैं।

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