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क्या हमेशा के लिए चला गया आर्टिकल 370:आज सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला; 26 वकीलों ने पक्ष-विपक्ष में क्या बड़े तर्क दिए

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11 दिसंबर को आर्टिकल-370 की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ऐतिहासिक फैसला सुनाएगा। देश की सबसे बड़ी अदालत में इस मुद्दे पर 5 जजों के सामने 26 वकीलों के बीच जबरदस्त बहस हुई। 16 दिनों तक चली सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया था।

इस पूरी जिरह को हमने पढ़ा और समझा है। इस बहस में हरि सिंह से लेकर नेहरू और पटेल के नाम तक का जिक्र आया। कोर्ट के फैसले के बाद ही ये तस्वीर साफ हो पाएगी कि आर्टिकल 370 खत्म करने को लेकर केंद्र का फैसला संवैधानिक रूप से सही है या नहीं।

याचिकाकर्ताओं ने आर्टिकल 370 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 5 प्रमुख तर्क दिए हैं…

याचिकाकर्ता के तर्क-1 : राष्ट्रपति शासन का इस्तेमाल संविधान बदलने के लिए नहीं किया जा सकता
आर्टिकल 356 के तहत आपातकालीन स्थिति में राष्ट्रपति शासन राज्य में लोकतांत्रिक और संवैधानिक सरकार बनाने के लिए लगाया जाता है। इसका इस्तेमाल संविधान बदलने के लिए नहीं किया जा सकता है।

सरकार के तर्क: शासन व्यवस्था ठीक से चलाने के लिए संविधान और कानून के आधार पर राष्ट्रपति शासन लगाए गए। इसके लिए संसद के दोनों सदनों में आर्टिकल 356 के जरिए प्रस्ताव पास किए गए थे।

याचिकाकर्ता के तर्क-2 : आर्टिकल 370 में संशोधन के लिए चुनी हुई सरकार की सहमति जरूरी

दिसंबर 2018 से अक्टूबर 2019 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन था। सभी फैसले राज्यपाल ले रहे थे। राज्यपाल केवल राष्ट्रपति के प्रतिनिधि होते हैं, जो आपातकालीन स्थिति में चुनी हुई सरकार की जगह लेते हैं। इस फैसले को जम्मू-कश्मीर की जनता और वहां की चुनी हुई सरकार का समर्थन नहीं है। ऐसे में बिना विधानसभा की सिफारिश से ये कानून नहीं बन सकते हैं।

सरकार के तर्क: कानून बनाए जाने के वक्त जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन था। इसलिए संसद के पास राज्य के विधानमंडल की शक्तियां थीं। अनुच्छेद 356(B) के मुताबिक संसद ने अपने कानूनी शक्तियों का इस्तेमाल करके ही आर्टिकल 370 में बदलाव किए हैं।

याचिकाकर्ता के तर्क-3 : संविधान सभा खत्म होने के बाद राष्ट्रपति आदेश जारी नहीं कर सकते

आर्टिकल 370(1)(D) के मुताबिक इस कानून में बदलाव तभी हो सकते हैं, जब संविधान सभा (या उत्तराधिकारी कोई हो तो) इसके लिए राष्ट्रपति से सिफारिश करती है। संविधान सभा अब अस्तित्व में नहीं थी, ऐसे में राष्ट्रपति ये आदेश जारी नहीं कर सकते हैं।

सरकार के तर्क: आर्टिकल 370(1)(D) के तहत राज्य में 6 बार राष्ट्रपति शासन लगाए गए। एक बार भी इसे चुनौती नहीं दी गई है। इस कानून का इस्तेमाल इसलिए किया गया, क्योंकि राज्य में विधानसभा और राज्य सरकार अस्तित्व में नहीं थी।

याचिकाकर्ता के तर्क-4 : राज्य को केंद्रशासित प्रदेश बनाना संविधान के आर्टिकल 3 का उल्लंघन

जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों – जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में बांटना आर्टिकल 3 का उल्लंघन है। ऐसा करना संविधान के संघीय ढांचे के खिलाफ है।

सरकार के तर्क: आर्टिकल 3 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश दोनों के संदर्भ में है। ऐसे में केंद्र वास्तव में एक राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट सकता है। जम्मू-कश्मीर को घाटी वाले क्षेत्र से आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद को खत्म करने के लिए किया गया था। ऐसा करके वहां शांति बहाल कर पर्यटन को बढ़ावा देने की कोशिश की गई है।

याचिकाकर्ता के तर्क-5 : राज्यों के स्वरूप बदलने के केंद्र के फैसले से आर्टिकल 147 का उल्लंघन हो रहा है

आर्टिकल 147 में बताया गया है कि आर्टिकल 3 और 5 में सीमित संशोधन हो सकते हैं। जम्मू-कश्मीर और भारत के संविधान एक-दूसरे से अलग और स्वतंत्र थे। ऐसे में वहां के संविधान को ऐसे नहीं बदला जा सकता है।

सरकार के तर्क: संविधान का आर्टिकल 147 किसी भी तरह से भारतीय संविधान के आर्टिकल 370 के तहत भारत के राष्ट्रपति को दी जाने वाली शक्तियों को प्रभावित नहीं कर सकता है। इसी तरह भारत के संविधान का कोई कानून संसद को बाधित नहीं कर सकता है।

केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 खत्म करने के पक्ष में ये 3 तर्क भी दिए हैं…
10 जुलाई 2023 को केंद्र सरकार ने एक हलफनामे के जरिए आर्टिकल 370 को खत्म करने के अपने फैसले को सही बताया। केंद्र सरकार ने अपने 20 पेज के जवाब में आर्टिकल 370 को खत्म करने के पक्ष में 3 तर्क दिए…

1. 370 खत्म होने के बाद जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों का नेटवर्क तबाह हो गया है। पत्थरबाजी और हिंसा जैसी चीजें अब खत्म हो गई हैं। इससे राज्य में रिकॉर्ड 1.88 करोड़ पर्यटक आए और पर्यटन के क्षेत्र में वृद्धि हुई है।

2. पथराव की घटनाएं, जो 2018 में 1,767 तक पहुंच गईं थीं, अब 2023 में पूरी तरह से बंद हो गई हैं। साफ है कि पत्थरबाजी की घटनाओं में 65% से ज्यादा की कमी आई है। इसी तरह से 2018 में जम्मू कश्मीर में 199 युवा आतंकवादी बने थे, ये संख्या 2023 में घटकर 12 रह गई है।

3. जम्मू कश्मीर में बीते 3 दशकों की उथल-पुथल के बाद आम लोग सामान्य रूप से जीवन जी रहे हैं। आर्टिकल 370 खत्म होने के बाद राज्य में शांति और विकास को लोग महसूस कर रहे हैं।

क्या सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 370 पर सरकार के फैसले को पलट सकता है?
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट विराग गुप्ता के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में जब कोई मामला जाता है तो यह निश्चित है कि फैसला पक्ष या विपक्ष में ही होगा।

सैद्धांतिक तौर पर देखें तो आर्टिकल 370 पर सरकार का फैसला पलटने की क्षमता है। हालांकि बहस खत्म होने से पहले कोई भी कयास लगाना सही नहीं है। यह सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आर्टिकल 370 पर सरकार के फैसले के खिलाफ पिटिशनर के वकील ने क्या पक्ष रखा है और सरकारी वकील ने फैसले के बचाव में क्या तर्क दिए हैं।

संविधान एक्सपर्ट प्रोफेसर फैजान मुस्तफा के मुताबिक केंद्र सरकार ने कई मौकों पर आर्टिकल 370 को टेंपरेरी बताया है। इस कानून को खत्म करने के पीछे भी यही तर्क दिया जाता रहा है, लेकिन ये कितना सही है, इस बात को समझने के लिए आर्टिकल 370 को लेकर सुप्रीम कोर्ट के 1959 के फैसले को जानना होगा।

दरअसल, 2 मार्च 1959 को प्रेम नाथ कौल बनाम जम्मू कश्मीर के मामले में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था। इस बेंच ने अपने फैसले में कहा कि संविधान सभा ने कहा था कि जम्मू कश्मीर और केंद्र सरकार के बीच जो रिलेशन है, उसमें आर्टिकल 370 को लेकर अंतिम फैसला वहां की संविधान सभा करे। जब तक राज्य की संविधान सभा (या उत्तराधिकारी यदि कोई हो) खुद को भंग करके आर्टिकल 370 पर फाइनल फैसला नहीं लेती है, तब तक ये अस्थायी है।

बाद में जम्मू कश्मीर की संविधान सभा ने खुद को भंग कर भारत के साथ आर्टिकल 370 के रिलेशन को लागू कर दिया। इस तरह ये कानून स्थायी हो गया था। इस तरह सरकार के समर्थकों का ये कहना कि आर्टिकल 370 अस्थायी था, सही नहीं है। ऐसे ही कई तर्क हैं, जिनकी वजह से सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष कमजोर साबित हुआ है।

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