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क्वालिटी के कॉम्पिटिशन में विश्वास है व्यास जी इमरती वालों का

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इम्पैक्ट फीचर

बीकानेर । आमतौर पर मिठाई खरीदने वालों के दिमाग में एक सवाल रहता है कि वह जो मिठाई खरीदने वाले है वो कितनी शुद्ध है ? आमतौर पर कारखानों से बनकर शो रूम तक पहुचती है , लेकिन पिछले लगभग 160 सालों से बीकानेर में चाय पट्टी के पास व्यास जी मिठाई वालों की दुकान में ग्राहकों के सामने पूरी पारदर्शिता के साथ सभी परंपरागत मिठाइयां तैयार होती है ।
दिल्ली निवासी सुमित दम्माणी कहते है मेरा जब भी बीकानेर आना होता है या कोई परिचित बीकानेर आता है तो मैं उसे यहां से इमरती लाने का जरूर बोलता हूं । कारण यहां की बनी इमरती बिना कोई एक्स्ट्रा केयर किए दस से पंद्रह दिन तक खराब नहीं होती । वास्तव में इस फर्म को जो प्रसिद्धि मिली है वो इमरती के कारण ही। हाल ही मैं अहमदाबाद में अपने पारिवारिक कारोबार के सिलसिले में सैटल हुए सुशील सोनी कहते है जब भी मुझे बीकानेर की याद सताती है घर में जन्मदिन जैसा छोटा मोटा आयोजन हो मैं व्यास जी के यहां फोन कर ऑनलाइन पेमेंट जमा करवाता हूँ । मुझे दूसरे दिन सुबह अपनी पसंदीदा मिठाई जैसे दाल का हलुआ , गौदपाक , बालूशाही व बादाम अथवा काजू कतली जैसी मिठाई मिल जाती है । अब तो मेरे यहां आने वाले मेहमान भी व्यास जी के ग्राहक बन गए है । सोनी कहते हैं महानगरों में आप किसी पर इतना विश्वास नहीं कर सकते । यह सही है रियासतकाल से मिठाई के कारोबार में लगे व्यास परिवार की चौथी पीढ़ी तक आते आते ये पूरे भारत में व्यास जी इमरती वाले के नाम से प्रसिद्ध हो गए। चाय पट्टी के पास छोटी सी दुकान पर इमरती लेने शहर के आम व खास लोगों के अलावा प्रवासी भी बड़ी संख्या में पहुचते है।
अपने पैतृक व्यवसाय को गति दे रहे दाऊदयाल व्यास ने शिक्षा बी टेक तक हासिल की है लेकिन इंजीनियरिंग का हुनर अपने पैतृक पेशे को आगे बढाने के लिए कर रहे है । अपने कारोबार के बारे में बताते हुए कहते है हम मिठाई बनाने में बाजार में उपलब्ध ब्रांडेड घी व अन्य इंटिग्रेट्स का इस्तेमाल करते है । जो बनता है वो सबकी आंखों के सामने है । वे कहते है आजकल लो शुगर समय की जरूरत है हमारा प्रयास रहता है कि कम चीनी में गुणवत्ता वाली मिठाई लोगों को मिले । इमरती के बारे में बात करने पर व्यास बताते है कि कुछ वामपंथी विचारधारा के लेखकों ने इमरती को मुगलों की देन बताया है मैं उसको मैं सिरे से खारिज करता हूँ। व्यास बताते है वास्तव में इसका पौराणिक नाम अमृति था जो अपभ्रंश होते होते इमरती बन गया।

क्या है मुगलों से इमरती का कनेक्शन

बताते है जहांगीर को मिठाइयों का बड़ा शौक था। लेकिन वे लड्डू, खीर आदि खाकर बोर हो गए थे। वे कुछ ऐसा खाना चाहते थे, जो इससे पहले कभी न खाया हो। उन्होंने अपने बावर्चीखाने के खानसामे से कोई नई स्वीट डिश बनाने को कहा। इस समय तक हिंदुस्तान में ईरान से जलेबी का पदार्पण हो चुका था। जब खानसामे को कुछ नया नहीं सूझा तो उसने जलेबी के साथ ही प्रयोग करने का निश्चय किया। उसने उड़द को महीन पीसकर उसका घोल बनाया और बाकी की प्रोसेस वही अपनाई, जो जलेबी बनाने में इस्तेमाल लाई जाती है। जहांगीर को खुश करने के लिए उसने उड़द दाल की उस जलेबी में फूल जैसी कुछ डिजाइन डाल दी। चाशनी में उसने रंग के लिए केसर, केवड़ा, कपूर और लौंग भी मिला दिया। तैयार हो गई एक नई डिश जो थी तो जलेबी जैसी, लेकिन स्वाद में बिल्कुल अलहदा। जहांगीर को यह खूब पसंद आई। ऑरेंज कलर की इस नई डिश को तब ‘जहांगीरी’ नाम दिया गया। बाद में यही डिश इमरती कहलाई। उधर पीढ़ियों से इमरती बना रहे व्यास इस कहानी को खारिज करते है । वे जोर देकर कहते है यह शुद्ध पारम्परिक भारतीय मिठाई है जिसका अमृति नाम से उल्लेख हमारे पुराने गर्न्थो में मिलता है ।
व्यास कहते है इमरती उड़द दाल व घी के कॉम्बिनेशन से बनी मिठाई है जो पौस्टिक मिठाइयों की श्रेणी में आती है ।
उधर इमरती का ज्योतिष में भी बहुत महत्व है । ज्योतिषी कई बार किसी न किसी ग्रह को प्रसन्न करने के लिए अपने यजमानों से इमरती अलग अलग देवताओं को चढ़ाने का उपाय बताते है।

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