NATIONAL NEWS

खड़गे के गांव से उनकी अनसुनी कहानियां:मां सामने जिंदा जला दी गईं, जंगल में रहे..

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

खड़गे के गांव से उनकी अनसुनी कहानियां:मां सामने जिंदा जला दी गईं, जंगल में रहे…

80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे 137 पुरानी पार्टी कांग्रेस के नए अध्यक्ष बन गए हैं। उन्होंने शशि थरूर को 6,825 वोट से हराया। 9 बार विधायक और दो बार सांसद रह चुके खड़गे 1972 में पहली बार चुनाव मैदान में उतरे थे। तब से सिर्फ एक बार 2019 का लोकसभा चुनाव हारे। एक मौका ऐसा भी आया, जब उन्होंने अपने दोस्त के लिए CM पद की दावेदारी छोड़ दी।

कांग्रेस में 24 साल बाद गांधी परिवार के बाहर कोई नेता अध्यक्ष बना है। इससे पहले सोनिया गांधी 1998 से 2017 तक अध्यक्ष रहीं। 2017 से 19 तक ये जिम्मेदारी राहुल गांधी ने संभाली। इसके बाद से सोनिया ही पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष हैं।

खड़गे की दावेदारी तय होने के बाद उनके गांव वरवट्टी से ये ग्राउंड रिपोर्ट की थी। उनके दोस्तों और परिवार से मल्लिकार्जुन खड़गे का पूरा सियासी सफरनामा जाना। ये रिपोर्ट 10 अक्टूबर को पब्लिश हुई थी। अब खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष बन गए हैं, इसलिए एक बार फिर पढ़िए उनकी कहानी….

1947 का अगस्त महीना। मैसूर राज्य (अब कर्नाटक) का वरवट्टी गांव। तब यहां निजाम की हुकूमत थी। भारत को बांटकर पाकिस्तान बनाया गया, तो इस इलाके में भी हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क गए। वरवट्टी गांव पर निजाम की सेना ने हमला कर दिया। साथ में लुटारी (अमीरों को लूटने वाले) भी थे। उन्होंने पूरे गांव में आग लगा दी। यहीं एक घर में 5 साल के बच्चे ने अपनी मां को जिंदा जलते देखा।

पिता उसे बचाकर गांव से दूर ले गए। 3 महीने जंगल में रहे। मजदूरी की। बच्चे को काम में लगाने के बजाय पढ़ाया। मल्लिकार्जुन नाम का वह बच्चा बड़ा होकर पहले वकील बना, फिर यूनियन लीडर, विधायक, अपने प्रदेश कर्नाटक में मंत्री, सांसद, केंद्रीय सरकार में मंत्री और अब कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष। जी हां, ये मल्लिकार्जुन खड़गे की कहानी है।

खड़गे की जिंदगी हमेशा मुश्किल भरी रही, लेकिन लीडरशिप की क्वालिटी उनमें बचपन से थी। वे स्कूल में हेड बॉय थे। कॉलेज गए तो स्टूडेंट लीडर बन गए। गुलबर्गा जिले के पहले दलित बैरिस्टर बने, पहली बार में विधायक बने और 9 बार चुने गए, दो बार सांसद भी रहे, लेकिन तीन बार कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए।

खड़गे इंदिरा गांधी के समय से गांधी परिवार के करीब रहे हैं। यही वजह है कि अध्यक्ष पद के लिए उनके नाम पर सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी तीनों की सहमति थी।

बीदर जिले के छोटे से गांव में मल्लिकार्जुन का जन्म
मल्लिकार्जुन खड़गे के सियासी सफर को समझने के लिए हम सबसे पहले वरवट्टी गांव पहुंचे। यहीं मल्लिकार्जुन खड़गे का जन्म हुआ था। ये गांव कर्नाटक के बीदर जिले के भालकी तालुका में आता है। यहां अब भी उनके परिवार के कुछ लोग रहते हैं। गांव में हमारी मुलाकात उनके भतीजे संजीव खड़गे से हुई। संजीव के पिता मल्लिकार्जुन से दो साल बड़े थे। 9 साल पहले उनका निधन हो गया था।

संजीव हमें खंडहर हो चुका एक घर दिखाने ले गए। उन्होंने बताया कि इसी जगह साईबववा (मां) और मपन्ना खड़गे (पिता) के घर 21 जुलाई 1942 को मल्लिकार्जुन का जन्म हुआ था। वरवट्टी में उनकी यही आखिरी निशानी है। घर पूरी तरह टूट चुका है। अब इसकी एक दीवार का हिस्सा भर बचा है।

मां की मौत के बाद पिता के साथ जंगल में रहे मल्लिकार्जुन
खड़गे के मौसेरे भाई कल्याणी कांबले ने बताया कि पत्नी की मौत के बाद मपन्ना खड़गे मल्लिकार्जुन को लेकर पैदल निम्बुर के लिए निकल गए। वहां उनके रिश्तेदार रहते थे। उन्होंने मल्लिकार्जुन को रिश्तेदार के घर छोड़ा और काम के लिए गुलबर्गा चले गए।

एक महीने अलग रहने के बाद उन्हें बेटे के भविष्य की चिंता हुई। वे अपना काम छोड़ वापस निम्बुर आ गए। यहां से मल्लिकार्जुन को लिया और खटक चिंचौली के लिए निकल गए। वहीं दोनों एक जंगल में करीब तीन महीने तक रहे। मपन्ना दिन भर मजदूरी करते और जो कमाते उसे बच्चे की परवरिश में खर्च कर देते।

पिता ने कपड़ा मिल में काम किया, तब गुलबर्गा में पढ़ाई शुरू हुई
दलित समुदाय से आने वाले मपन्ना ने अपने जीवित रहते मल्लिकार्जुन को कभी काम नहीं करने दिया। उनकी सोच थी कि बेटा पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने। खटक चिंचौली से निकलकर मपन्ना तीन दिन लगातार पैदल चलकर गुलबर्गा पहुंचे। यहां उन्होंने कपड़ा मिल में काम शुरू किया।

मपन्ना, मल्लिकार्जुन के साथ बसवानगर में रहने लगे। यहीं एक घर बनाया और पास के स्कूल में मल्लिकार्जुन का एडमिशन करा दिया। चुनावों के दौरान आज भी मल्लिकार्जुन खड़गे इसी स्कूल में वोट डालने आते हैं। उनके पिता के बनाए घर की जगह उन्होंने दो मंजिला मकान बनवाया है। अब यहां 6 परिवार किराए से रहते हैं।

कबड्डी के अच्छे प्लेयर थे मल्लिकार्जुन खड़गे
आगे की कहानी हमें मल्लिकार्जुन खड़गे के बचपन के दोस्त हनुमंत राव ने सुनाई। करीब 82 साल के हनुमंत राव अब मुश्किल से ही चल पाते हैं। उन्होंने बताया कि मल्लिकार्जुन बचपन से पढ़ाई में तेज थे। वे कबड्डी के अच्छे प्लेयर थे। स्कूल लेवल पर कई प्रतियोगिताओं में उन्होंने इनाम जीते। अगर वे पॉलिटिक्स में नहीं होते तो अच्छे कबड्डी प्लेयर हो सकते थे। वे कबड्डी के अलावा हॉकी भी अच्छी खेलते थे।

गुलबर्गा के पहले दलित वकील थे मल्लिकार्जुन
मल्लिकार्जुन ने 12वीं तक की पढ़ाई नूतन स्कूल से पूरी की। इसके बाद गवर्नमेंट कॉलेज से ग्रेजुएशन। गुलबर्गा के सेठ शंकरलाल लाहोटी लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री ली। खड़गे गुलबर्गा के पहले दलित वकील थे। उनकी होशियारी देख सुप्रीम कोर्ट के जज शिवराज पाटिल ने उन्हें अपना असिस्टेंट बना लिया।

गरीबों का केस लड़ते, लेकिन पैसे नहीं लेते
मल्लिकार्जुन 1969 में MSK मिल के लीगल एडवाइजर बनाए गए। उनके पिता कभी इसी मिल में काम करते थे। मजदूरों के कहने पर खड़गे यूनियन लीडर बन गए। वे बिना पैसे लिए गरीबों और मजदूरों के केस लड़ते थे। इस वजह से खड़गे कुछ ही दिन में शहर के लोगों, खास तौर से दलितों में मशहूर हो गए। उन्हें गुलबर्गा के संयुक्त मजदूर संघ का सबसे प्रभावशाली नेता कहा जाने लगा। यहीं से कांग्रेस नेताओं की नजर उन पर पड़ी।

जहां यूनियन लीडर थे, अब वह मिल बंद
हम उस मिल में भी गए, जहां मल्लिकार्जुन यूनियन लीडर हुआ करते थे। 1884 में बनी यह मिल 1992 में बंद हो गई। अब यह खंडहर की तरह दिखती है। यहां काम करने वाले रवि आर चोटी ने बताया कि मल्लिकार्जुन खड़गे के होने के बावजूद मिल बंद हो गई। इसमें काम करने वाले सड़क पर आ गए।

मल्लिकार्जुन के लिए पिता ने दूसरी शादी की
मिल से कुछ दूर मल्लिकार्जुन के दोस्त तुलसीराम नाइक रहते हैं। उन्होंने बताया कि मल्लिकार्जुन छोटे थे, तो उन्हें पालने के लिए उनके पिता ने दूसरी शादी की थी। उनकी दूसरी मां उन्हें सगे बेटे से भी ज्यादा प्यार करती थीं।

1970 में मल्लिकार्जुन कांग्रेस के डिस्ट्रिक्ट प्रेसिडेंट बन गए। पॉलिटिक्स में जाने के बाद उन्होंने अपनी कुर्सी तुलसीराम को दे दी। तुलसीराम रिटायर होने तक मिल यूनियन से जुड़े रहे। मिल बंद होने के बाद वे कांग्रेस के टिकट पर पार्षद भी चुने गए।

हमेशा एक किताब साथ रखते हैं खड़गे
कल्याणी कांबले ने बताया कि मल्लिकार्जुन कब सोते हैं, यह किसी को नहीं पता। वे चाहे घर में हो या बाहर, टीवी देख रहे हों या किसी रिश्तेदार के घर गए हों, उनके हाथ में एक किताब जरूर रहती है। ज्यादातर वक्त वे भगवान बुद्ध से जुड़ी या डॉ. अंबेडकर की किताब रखते हैं।

कांग्रेस नेता धर्म सिंह राजनीति में लेकर आए
मल्लिकार्जुन खड़गे का गुलबर्गा के जवलकर परिवार से गहरा नाता रहा है। परिवार के मुखिया 85 साल के लक्ष्मण बदरीनाथ जवलकर हैं। वे खड़गे को 15 साल की उम्र से जानते हैं। उनके छोटे भाई सुरेश और मल्लिकार्जुन दोनों क्लासमेट थे। बचपन से दोनों ने साथ पढ़ाई की और फिर लॉ ग्रेजुएट बने।

लक्ष्मण ने बताया कि पॉलिटिक्स में एंट्री से पहले मल्लिकार्जुन ने लॉ की प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। राजनीति में जाना है या नहीं, इसका फैसला उनके घर पर हुई एक मीटिंग में लिया था। इसमें उनके भाई, मल्लिकार्जुन और कांग्रेस नेता धर्म सिंह मौजूद थे। धर्म सिंह ने ही मल्लिकार्जुन को पॉलिटिक्स में जाने के लिए मनाया था। लक्ष्मण के मुताबिक, उनके पहले चुनाव की तैयारी भी इसी घर में की गई थी।

लक्ष्मण जवलकर के बेटे संदीप ने बताया कि हम उनके इलेक्शन में बैनर पेंट किया करते थे। रात में पोस्टर चिपकाते और घर-घर पैम्फलेट्स बांटा करते थे। उनकी एम्बेसडर कार से गांवों में प्रचार करने जाते थे।

1972 में मल्लिकार्जुन खड़गे पहली बार चुनाव मैदान में उतरे। कांग्रेस ने उन्हें गुरमिटकल विधानसभा सीट से टिकट दिया था। खड़गे को 1,67,960 वोट मिले। उन्होंने निर्दलीय मुरथेप्पा को 94,400 वोट से हराया था।

दोस्त के लिए छोड़ दी मुख्यमंत्री की कुर्सी
मल्लिकार्जुन के लिए कहा जाता है कि कांग्रेस जब भी कर्नाटक में सत्ता में आई वे ‘CM इन वेटिंग’ रहे। 2004 में उनका मुख्यमंत्री बनना लगभग तय था, लेकिन उनके दोस्त धर्म सिंह का नाम सामने आया तो मल्लिकार्जुन पीछे हट गए। 2013 में भी मल्लिकार्जुन कांग्रेस विधायक दल के नेता चुने जाने वाले थे। तब आखिरी वक्त में सिद्धारमैया का नाम आगे कर दिया गया।

1980 में आर गुंडु राव सरकार में मंत्री बनने के बाद मल्लिकार्जुन सभी कांग्रेस सरकारों में मंत्री रहे। राज्य की राजनीति में लिंगायतों और वोक्कालिगाओं के वर्चस्व के कारण वे मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। 8 भाषाएं जानने वाले खड़गे की मराठी पर अच्छी पकड़ है। इसीलिए 2018 में पार्टी ने उन्हें महाराष्ट्र की जिम्मेदारी सौंपी थी।

2014 के बाद नेशनल पॉलिटिक्स में कद बढ़ा

खड़गे के लिए सबसे बड़ा मौका 2014 में आया। कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हार मिली थी। वह सिर्फ 44 सीटों पर सिमट गई। गुलबर्गा से दूसरी बार जीते खड़गे को पार्टी ने लोकसभा में अपना नेता बनाया। संसद में एक स्पीच के दौरान खड़गे ने कहा था, ‘हम लोकसभा में 44 हो सकते हैं, लेकिन पांडव कभी सौ कौरवों से नहीं डरेंगे।’

गुलबर्गा में बनवाया बुद्ध विहार
मल्लिकार्जुन बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। वे सिद्धार्थ विहार ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। ट्रस्ट ने बुद्ध और डॉ. अंबेडकर के विचारों को फैलाने के लिए गुलबर्गा के बाहरी इलाके में बुद्ध विहार बनवाया है। इसकी देखरेख का जिम्मा उनके रिश्तेदार कल्याणी कांबले के पास है।

गुलबर्गा से 6 किमी दूर बना बुद्ध विहार करीब 18 एकड़ में फैला है। इसके गुंबद की ऊंचाई 70 फुट और व्यास 59 फीट है।

एक बेटा विधायक, दूसरा डॉक्टर
मल्लिकार्जुन खड़गे की पत्नी का नाम राधाबाई है। उनके तीन बेटे और दो बेटियां हैं। बड़े बेटे राहुल खड़गे परिवार का बिजनेस संभालते हैं। दूसरे बेटे मिलिंद डॉक्टर हैं, उनका बेंगलुरु में स्पर्श नाम से हॉस्पिटल है। छोटे बेटे प्रियांक खड़गे गुलबर्गा जिले के चित्तपुर से विधायक हैं।

प्रियांक 2016 में सिद्धारमैया सरकार में IT और पर्यटन मंत्री बनाए गए थे। तब उनकी उम्र 38 साल थी। वे तब सबसे कम उम्र के मंत्री थे। एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में वे समाज कल्याण मंत्री थे।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

About the author

THE INTERNAL NEWS

Add Comment

Click here to post a comment

error: Content is protected !!