फोटो 25 सितंबर 2022 का है, जब पूर्व UDH मंत्री शांति धारीवाल के साथ कांग्रेस विधायकों ने तत्कालीन स्पीकर सीपी जोशी के घर पहुंच इस्तीफे सौंपे थे।
पूर्व सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच पुरानी खींचतान का मामला हाईकोर्ट में फिर ताजा हो गया है। बीजेपी नेता राजेंद्र राठौड़ की पीआईएल पर चल रही सुनवाई के तहत शुक्रवार को मौजूदा विधानसभा स्पीकर वासुदेव देवनानी की ओर से हाईकोर्ट में जवाब पेश किया गया।
मौजूदा स्पीकर ने जवाब में कहा कि पूर्व मंत्री शांति धारीवाल, बीडी कल्ला, टीकाराम जूली, ममता भूपेश सहित अन्य ने अपने इस्तीफे वापस लेने की अर्जियों में कहा कि उनके इस्तीफे मर्जी से नहीं थे। 25 सितंबर 2022 को कांग्रेस विधायक दल की पैरेलल बैठक करके गहलोत गुट के 81 विधायकों ने पायलट को सीएम बनाने की कोशिश के खिलाफ उस समय के विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को इस्तीफे सौंप दिए थे।
मौजूदा स्पीकर ने जवाब में लिखा है कि इस्तीफों पर हस्ताक्षर भी खुद की मर्जी से नहीं किए थे। कई मंत्री-विधायकों ने यह भी कहा कि उन्होंने स्पीकर के समक्ष व्यक्तिगत उपस्थित होकर इस्तीफे नहीं दिए थे। कोर्ट में पेश जवाब में यह भी कहा कि इस्तीफे देने, फिर वापस लेने की घटना बहुत बड़ी है। जांच होनी चाहिए, लेकिन तत्कालीन स्पीकर ने प्रसंज्ञान नहीं लिया।
फोटो 25 सितंबर 2022 का पूर्व UDH मंत्री शांति धारीवाल के बंगले का है। जब गहलोत समर्थक विधायकों से धारीवाल ने कहा था कि बगावत करने वालों में से किसी को सीएम बनाना हम स्वीकार नहीं करेंगे।
मौजूदा स्पीकर के जवाब को रिकॉर्ड पर लिया
राजेंद्र राठौड़ सुनवाई के लिए अपने विधिक सलाहकार एडवोकेट हेमंत नाहटा के साथ हाईकोर्ट में पेश हुए थे। मौजूदा स्पीकर की ओर से सीनियर एडवोकेट आरएन माथुर कोर्ट में उपस्थित हुए और प्रतीक माथुर ने जवाब पेश किया। विधायकों के इस्तीफे और उन्हें वापस लेने के प्रार्थना पत्र की कॉपी भी पेश की गई। इनमें खुलासा हुआ कि उन्होंने इस्तीफा स्वैच्छिक तौर पर नहीं दिए थे, जबकि विधानसभा अध्यक्ष से इस्तीफे अविलम्ब मंजूर करने का आग्रह किया गया था।
तत्कालीन स्पीकर ने भी जवाब में माना था इस्तीफे मर्जी से नहीं दिए थे
गहलोत और पायलट गुट के बीच खींचतान के चलते तत्कालीन स्पीकर सीपी जोशी को गहलोत गुट के विधायकों ने इस्तीफे दिए थे। 25 सितंबर 2022 की घटना के बाद कांग्रेस हाईकमान ने शांति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ को नोटिस दिए थे। इस मामले में सुलह हो जाने के बाद गहलोत गुट के विधायकों ने इस्तीफे वापस लिए थे। 30 दिसंबर 2022 से 10 जनवरी 2023 तक इन विधायकों ने इस्तीफे वापस लेने के लिए अर्जियां लगाई थीं। 13 जनवरी 2023 को तत्कालीन स्पीकर ने इस्तीफे नामंजूर कर दिए थे।
कांग्रेस विधायकों ने इस्तीफे को लेकर इस तरह का ड्राफ्ट सौंपा गया था।
राठौड़ की याचिका के बाद सीपी जोशी ने हाईकोर्ट में जवाब पेश किया था
गहलोत गुट के विधायकों के इस्तीफों पर उस समय के स्पीकर सीपी जोशी ने 113 दिन तक फैसला नहीं किया और बाद में इन्हें नामंजूर किया। राठौड़ ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। राठौड़ की याचिका के बाद हाईकोर्ट में तत्कालीन स्पीकर ने जवाब पेश करते हुए माना था कि ये इस्तीफे मर्जी से नहीं दिए थे।
राठौड़ बोले- गहलोत का दबाव था, महिला विधायकों ने लिखा- इस्तीफा वापस लेता हूं
राठाैड़ ने कहा कि तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत का विधायकों पर दबाव था। इस्तीफा वापसी की अर्जियों में कांग्रेस की महिला विधायक मनीषा पंवार, मंजू देवी, ममता भूपेश, कृष्णा पूनिया, प्रीति शक्तावत, इंदिरा मीणा, शोभारानी कुशवाहा ने खुद के लिए पुल्लिंग शब्द का उपयोग करते हुए लिखा कि इस्तीफा वापस लेता हूं।
इससे साबित है कि इस्तीफे योजनाबद्ध तरीके से कांग्रेस आलाकमान को प्रभावित करने के लिए पूर्व सीएम अशोक गहलोत के दबाव में दिलवाए गए थे। राठौड़ ने कहा कि टीकाराम जूली, शांति धारीवाल, महेश जोशी, अशोक चांदना, उदयलाल आंजना ने भी कहा कि उनके इस्तीफों पर खुद की मर्जी से हस्ताक्षर नहीं थे।
विधायकों का 110 दिन बाद यह कहना कि त्याग पत्र स्वैच्छिक नहीं थे, तो सवाल है कि किसके दबाव में इस्तीफे दिए थे। 25 सितंबर 2022 से 81 विधायकों ने वेतन-भत्तों के जो 18 करोड़ प्राप्त किए उन्हें भी रिकवर करवाने का आदेश देने का आग्रह हाईकोर्ट से किया गया है।
पुराने जख्म कुरेदने से खेमेबंदी बढ़ेगी
25 सितंबर की घटना पर गहलोत और पायलट खेमों के बीच अब भी कई बार वार पलटवार होता रहता है। विधानसभा चुनावों में हार के बाद कांग्रेस की सत्ता चली गई है, पार्टी विपक्ष में है, इसलिए अब सत्ता संघर्ष बचा नहीं है।अब तक राजनीतिक हालात काफी बदल चुके हैं। सचिन पायलट सीडब्ल्यूसी मेंबर और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव, छत्तीसगढ़ के प्रभारी बन चुके हैं। विधायकों पर दबाव बनाकर इस्तीफे दिलवाने पर कोई फैसला आता है तो पर्सेप्शन के मोर्चे पर कांग्रेस में अंदरूनी तौर पर फर्क पड़ेगा।
गहलोत और पायलट खेमों के बीच पुराने जख्म फिर ताजा होंगे, इससे खींचतान बढ़ेगी। पायलट खेमा पहले भी 25 सितंबर की घटना पर सवाल उठाता रहा है। हालांकि यह पिछली विधानसभा का मामला है, इसलिए कोर्ट कोई भी फैसला दे, इसका व्यवहारिक रूप से ज्यादा सियासी असर नहीं होगा। सियासी चर्चाओं और कांग्रेस पर बीजेपी को पलटवार करने का एक मौका मिल जाएगा, इससे ज्यादा कुछ होने की गुंजाइश नहीं है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पायलट और गहलोत की खेमेबंदी राजस्थान में जैसी पहले थी, वैसी ही अब भी बरकरार है। गहलोत और पायलट के आपसी रिश्तों की तल्खी पर इसका असर नहीं होना है, जब तक दोनों राजस्थान में हैं, तब तक अंदरूनी सियासी लड़ाई चलती रहेगी। पहले भी दिग्गजों के बीच खींचतान चलती रही है। कांग्रेस और गहलोत-पायलट की सियासी सेहत पर इसका चर्चाओं के अलावा ज्यादा असर होने की संभावना नहीं है।
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