पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया यानी पीएफ़आई के जनरल सेक्रेटरी अनीस अहमद ने कहा कि उनका संगठन “सरकार की एंटी-मुस्लिम पॉलिसी का पुरज़ोर विरोध करता रहा है, मुसलमानों में अपने संवैधानिक अधिकारों की मांग उठाने की ताक़त भरने का प्रयास कर रहा है, तो कोशिश हो रही कि हमें आपराधिक और आतंकवादी संगठन ब्रांड कर दिया जाए.”
पटना पुलिस ने कहा है कि शहर में एक छापेमारी के दौरान उसे पीएफ़आई का दस्तावेज़, ‘भारत 2047, इस्लामी हुकूमत की ओर’मिला. पुलिस के मुताबिक़, “इसमें मुसलमानों के एक समूह की सहायता से बहुसंख्यक समुदाय को कुचल देने और भारत में फिर से इस्लाम का गौरव स्थापित करने की बात कही गई है.”
पटना पुलिस की एफ़आईआर में कहा गया है कि दस्तावेज़ में उसे ज़रूरत पड़ने पर तुर्की और दूसरे इस्लामी मुल्कों से मदद मिलने की बात का भी उल्लेख है.
अनीस अहमद कहते हैं, “न तो ग़ज़वा-ए-हिंद की हमारी कोई अवधारणा है, न ही हम भारत को इस्लामी मुल्क बनाना चाहते हैं, न ही हिंदुओं का क़त्ल हमारे एजेंडा का हिस्सा है. ‘इंडिया 1947, इम्पावरिंग पीपुल’ नाम का मसौदा है ज़रूर, जिसे ‘इम्पावर इंडिया फाउंडेशन’ ने तैयार किया था, इसे भारत की आज़ादी की 50वीं वर्षगांठ पर जाने-माने न्यायाधीश जस्टिस राजिंदर सच्चर ने दिल्ली में रिलीज़ किया था.”दक्षिण भारत में जन्मी और अब भारत के 23 राज्यों में फैल गई कट्टर इस्लामी संस्था की फंडिंग और उसके विदेशों से संबंध को लेकर कई तरह के सवाल बार-बार खड़े होते रहे हैं और पीएफ़आई इन आरोपों से इनकार करती रही है.
इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ, हालांकि अनीस अहमद ने बहुत सारे सवालों का जवाब सीधे तौर पर नहीं दिया, मसलन, पीएफ़आई के कार्यकर्ता-समर्थक हिंसा में क्यों बार-बार शामिल पाए जाते हैं, संस्था के सदस्यों का रिकॉर्ड क्यों नहीं रखा जाता, क्या इसलिए कि किसी आपराधिक गतिविधि में पकड़े जाने पर पीएफ़आई उन्हें पहचानने से इनकार कर सके, वग़ैरह.
आतंकवादी संगठन बुलाए जाने पर अनीस अहमद कहते हैं, “आतंकवादी संगठन होने के लिए आतंकवादी गतिविधि में सम्मिलित होने का सबूत होना चाहिए. पीएफ़आई पर जो भी आरोप साबित हुए हैं उनमें से कोई भी आतंकवादी गतिविधि से संबंधित नहीं रहा है.”
अनीस अहमद कहते हैं, “भारत में अजमेर में दरगाह पर धमाका हुआ था जिसमें आरएसएस के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार के ख़िलाफ़ जांच हुई थी, चार्जशीट में नाम भी था, मालेगांव मामले में भी जांच हुई, ऐसी संस्थाओं और व्यक्तियों को आंतकवादी नहीं बुलाया जा रहा है लेकिन किसी स्थानीय आपराधिक गतिविधि में पीएफआई से जुड़े व्यक्ति का नाम आने पर उसे आतंकवादी संगठन बुलाया जा रहा है, ये ठीक नहीं है.”
पीएफआई का नाम जिन आपराधिक घटनाओं में सामने आया है वो हमेशा मामूली नहीं रही हैं.
साल 2010 में मलयालम के प्रोफेसर टीजे जोसफ़ की हथेली कुल्हाड़ी से काट दी गई थी, उन पर आरोप था कि उन्होंने पैगंबर मोहम्मद की बेअदबी की थी. बाद में अदालत ने इस मामले में जिन लोगों को सज़ा सुनाई थी उनमें पीएफ़आई के लोग भी शामिल थे.
कुछ सालों पहले केरल के एर्नाकुलम में वामपंथी छात्र नेता अभिमन्यु की हत्या की वारदात में भी पीएफआई के कई अधिकारियों के विरूद्ध चार्जशीट दाख़िल हुई थी.
अनीस अहमद मानते हैं कि प्रोफेसर जोसफ़ पर हमले में कुछ पीएफ़आई कार्यकर्ता शामिल थे लेकिन उनके अनुसार ये ‘एक स्थानीय घटना’ थी, जिसके फ़ौरन बाद “पीएफ़आई के तत्कालीन शीर्ष नेतृत्व ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके साफ़ कर दिया था कि संस्था का इस घटना से कोई संबंध नहीं है.”
अभिमन्यु हत्याकांड के बारे में पूछे जाने पर सीधा जवाब देने की जगह अनीस आरएसएस का ज़िक्र करते हैं. वे कहते हैं, “केरल में 240 वामपंथी कार्यकर्ताओं के मर्डर में आरएसएस के लोगों का नाम है, इसी तरह आरएसएस-बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के लोगों का हाथ है, मगर उन संस्थाओं को आपराधिक नहीं बुलाया जाता है. लेकिन पोपुलर फ्रंट का किसी लोकल मामले में नाम आ गया तो पूरा पीएफ़आई आपराधिक संगठन हो जाता है. यही पैमाना तृणमूल कांग्रेस, वामपंथियों या दूसरों के साथ नहीं अपनाया जाता है. इससे लगता है कि एक कोशिश है कि किसी भी तरह पीएफआई को एक आपराधिक-आंतकवादी संगठन क़रार दे दिया जाए.”
पीएफ़आई के सदस्यों पर गंभीर आरोप
केरल में जो राजनीतिक हिंसा हो रही है, चाहे वो आरएसएस कार्यकर्ताओं या वामपंथी कॉडर के साथ हो, उनमें पीएफ़आई का नाम भी पुलिस या अन्य संगठनों की ओर से आता रहा है.
पीएफ़आई का दावा है कि उसके जो कार्यकर्ता हिंसा की घटना में शामिल पाए जाते हैं उन्हें वो फ़ौरन निकाल देता है, लेकिन क्या ये सच नहीं है कि पीएफआई ने कुछ ऐसे लोगों की ओर से, जैसे प्रोफेसर जोसफ़ वाली घटना में शामिल लोगों का केस भी लड़ा?
इस सवाल के जवाब पीएफ़आई के जनरल सेक्रेटरी कहते हैं, “नहीं, हम जिन मामलों की क़ानूनी पैरवी करते हैं उसके बारे में खुलकर बोलते हैं. जैसे हादिया केस. हमने प्रोफेसर वाले मामले में कोई केस नहीं लड़ा.”
एक हिंदू महिला का धर्म-परिवर्तन करके, एक मुसलमान युवक से विवाह करना, और युवती के परिवार का इस मामले में आरोप लगाना, ये एक ऐसा मामला था जो देश की सबसे ऊँची अदालत तक जा पहुंचा था. बाद में अदालत ने हादिया के पक्ष में फ़ैसला सुनाया. बहला-फुसलाकर मज़हब बदलवाने की बात को भी कोर्ट ने सही नहीं पाया.
हादिया मामले में पीएफ़आई के महासचिव का कहना है, “जब हाई कोर्ट ने निकाह को मानने से इनकार कर दिया तो ये मुस्लिम पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप का मामला बन गया, और सैद्धांतिक तौर पर हमारा ये रुख़ रहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के मामले में हम किसी भी तरह का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेंगे, चाहे वो हुकूमत की तरफ़ से हो या अदालत की तरफ़ से.”
हथियारबंद ट्रेनिंग का सवाल
एनआईए की एक अदालत ने इस मामले में पीएफ़आई और उसके राजनीतिक विंग एसडीपीआई यानी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया के बीस से अधिक कार्यकर्ताओं को सात साल जेल की सज़ा सुनाई थी.
पीएफ़आई नारथ कैंप को योगा ट्रेनिंग शिविर बताता है लेकिन अदालत ने भी सवाल उठाया था कि योगा शिविर में हथियारों का क्या काम?
साल 2007 में बनी संस्था हथियारबंद प्रशिक्षण के इल्ज़ाम से इनकार करती है और उसके अनुसार, “योगा एक भारतीय विद्या है जिसमें हिंदूत्वादी संस्थाएं धार्मिकता का पुट घोलकर इसे एक नया रंग देने की कोशिश कर रही हैं.”
फ्रेज़र टाउन के पीएफआई की पब्लिसिटी शाखा में सफ़ेद शर्ट और चेक नेहरू जैकेट में हमारे साथ बैठे अनीस अहमद पहली नज़र में किसी कॉरपोरेट हाउस के अधिकारी लगते हैं, किसी मुस्लिम तंज़ीम के महासचिव नहीं. मूलत: गोवा से तालुक्क़ रखने वाले अनीस अहमद पेशे से सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हैं.
पीएफ़आई भी ख़ुद को ‘सामाजिक आंदोलन’ बताता है, किसी ख़ास समुदाय से जुड़ाव की बात उसकी बेवसाइट या प्रकाशनों में नहीं दिखती. संस्था एक ऐसे ‘सर्वधर्म समभाव वाले समाज की बात करती है जिसमें सभी को आज़ादी, न्याय और सुरक्षा का अधिकार हासिल हो.’
अंतर्धार्मिक विवाह पर क्या है राय?
हमने पीएफ़आई के युवा महासचिव से पूछा कि जिस तरह वो एक हिंदू युवती के अपने पसंद से शादी करने के अधिकार का समर्थन करते हैं क्या वो किसी मुस्लिम युवती के हिंदू युवक से विवाह का समर्थन करेंगे या इसका विरोध में खड़े होंगे?
इसके जवाब में वे कहते हैं, “भारत में धार्मिक स्वतंत्रता एक संवैधानिक अधिकार है. भारत में प्रत्येक व्यक्ति को पसंद से शादी करने, किसी भी धर्म को अपनाने, और उसका प्रचार करने का क़ानूनी अधिकार है. उसमें पीएफ़आई के समर्थन या विरोध उसके लिए ज़रूरी नहीं. हमने कभी भी किसी व्यक्तिगत संवैधानिक अधिकार का कभी भी किसी तरह विरोध नहीं किया है.”
घंटे भर चली बातचीत में एक सवाल ये भी था कि मुसमानों के हितों की बात करने वाली संस्थाएं केरल के इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग से लेकर, असदउद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुसलिमीन और उत्तर प्रदेश की वेलफ़येर पार्टी तक हैं, लेकिन तमाम तरह की गतिविधियों में पीएफ़आई का नाम ही क्यों बार-बार आता है?
अनीस अहमद के अनुसार ये उनके काम करने के स्टाइल की वजह से है. वे कहते हैं, “हम आक्रामक नहीं हैं लेकिन हमारा तरीक़ा पुरज़ोर है. अपने हक़ों की पुरज़ार मांग करने वाला मुस्लिम समाज आरएसएस की रणनीति के अनुकूल नहीं है, वो एक दब्बू मुस्लिम समाज चाहते हैं इसलिए पीएफ़आई को समाप्त करना इस सरकार का टॉप एजेंडा है, एक तरह का टूल किट है कि पूरे देश में कहीं कुछ हो जाए पीएफ़आई का नाम उसमें डाल दो.”
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