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चाणक्य, कामंदक और तिरुवल्लुवर की नीतियों से घातक बनेगी भारतीय सेना; भारतीय सेना का प्रॉजेक्ट उद्भव का मतलब क्या ?

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चाणक्य, कामंदक और तिरुवल्लुवर की नीतियों से घातक बनेगी सेना; प्रॉजेक्ट उद्भव का मतलब क्या?

Military Strategies in Ancient Indian Texts : प्राचीन भारतीय ग्रंथों से सुरक्षा रणनीति का ज्ञान प्राप्त करने का भारत सरकार का विचार देश के सशस्त्र बलों को कुछ खास ताकत नहीं दे पाएगा। हमारी सेनाओं को घातक हथियार, उन्नत तकनीक, डोमेन एक्सपर्टीज और सॉफिस्टिकेटेड आधुनिक सोच की ज्यादा जरूरत है।


रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में सेना के प्रॉजेक्ट उद्भव का शुभारंभ किया। यह प्राचीन भारतीय दर्शन से राजनीति, रणनीति, कूटनीति और युद्ध पर सबक के लिए चाणक्य के अर्थशास्त्र, कामंदक के नीतिसार और तमिल कवि संत तिरुवल्लुवर के तिरुक्कुरल जैसे ग्रंथों से प्रेरणा लेने का प्रॉजेक्ट है। प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन के प्रति यह आकर्षण, आत्म गौरव का एक अकादमिक प्रयास है।हालांकि, किसी को प्राचीन काव्य के मधुर स्वरों में मदमस्त होकर यह नहीं मान लेना चाहिए कि भारतीय सैन्य रणनीति के नियोजन और निष्पादन में अब तक जो प्रयास किए गए वो हर तरह से घटिया थे जो अब अप्रासंगिक हो गए हैं। यह भी सोचना गलत होगा कि भारतीय सैन्य रणनीति का आधार अब प्राचीन ज्ञान की पुनर्खोज से ही हासिल किया जा सकता है। आधुनिक सैन्य रणनीति के निर्माण और भविष्य के जॉइंट थिएटर कमांडों में सामरिक से रणनीतिक को जोड़ने वाले एक सामान्य सिद्धांत सूत्र की जरूरत के मद्देनजर यह धारणा बिल्कुल निराधार है।


युद्ध का जो रूप आज हम देखते हैं, उसका आधार नेपोलियन युग में तैयार हुआ था। तब मोबाइल तोपखाना, पैदल सेना (बंदूक से लैस) और घुड़सवार सेना को इंजीनियरों और पर्याप्त सॉफिस्टिकेटेड लॉजिस्टिक ऑर्गनाइजेशन की मदद से विशाल सेनाओं में संयोजित किया गया था ताकि एक राष्ट्र राज्य के रणनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु खूनी युद्ध लड़े जा सकें। 19वीं शताब्दी में राइफल, मशीन गन, लंबी दूरी तक मार करने वाले तोपखाने और टेलीग्राफ के आगमन, साथ ही रेलवे और स्टीमर ने युद्ध के मैदान और सैन्य रणनीति को हमेशा के लिए बदल दिया।
आज भी सैन्य रणनीति बनाते वक्त कार्ल वॉन क्लॉजविट्ज और एंटनी हेनरी जोमिनी और बाद में डेनिस महान, जूलियन कॉर्बेट और गिउलिओ डौहेट जैसे कुछ महान सैन्य विचारकों को ध्यान में रखा जाता है। इन सभी ने युद्ध के बदले स्वरूप का अध्ययन किया और इस बारे में अपने सिद्धांत लिखे कि लगातार विस्तार कर रहे युद्ध क्षेत्र में सफलतापूर्वक अभियानों का संचालन के लिए जनरलों और एडमिरलों को क्या करना चाहिए।

20वीं शताब्दी के दो विश्व युद्धों के साथ-साथ परमाणु हथियारों के उदय ने शीत युद्ध और 1950 एवं 1960 के दशक में औपनिवेशिक शक्तियों के खिलाफ कई विद्रोहों की शुरुआत देखी। बीते 50 वर्षों से से भी ज्यादा वक्त से हमारा युद्धों से साबका पड़ता रहा है। कारगिल युद्ध तो इस उपमहाद्वीप का आखिरी बड़ा संघर्ष था। इन सभी संघर्षों में, युद्ध छेड़ने के तरीके में बहुत बड़ा बदलाव आया। पहले युद्धक्षेत्र दूरबीन की सहायता से आंखों से दिखने तक सीमित होते थे जो अब इतने जटिल, विशाल और विविध क्षेत्रों तक पहुंच गए कि बहुचर्चित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के हस्तक्षेप से भी समझ पाना मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे में एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी से निपटने के लिए प्राचीन ग्रंथों से रणनीति तैयार करना तो टेढ़ी खीर ही साबित होगी।


इस माहौल में ‘दुश्मन और खुद को जानना सभी लड़ाइयों को जीतने की कुंजी है’ या ‘आपके दुश्मन का दुश्मन आपका मित्र है’ जैसी सरल कहावतें बहुत अच्छी हैं लेकिन किसी भी सैन्य कमांडर और यहां तक कि एक राजनीतिक नेता को किसी राष्ट्र या सेना को युद्ध में ले जाने के लिए व्यावहारिक साधन प्रदान नहीं करते हैं। यह भी सच है कि हम प्राचीन सामरिक ज्ञान को इन्हीं कहावतों के नजरिए से ही समझते हैं।

कोई भी व्यक्ति या सैन्य निकाय यह दावा नहीं कर सकता कि मौजूदा वक्त में एक सफल सैन्य अभियान का संचालन आसान काम है जो अनेक मोर्चों पर लड़े जाते हैं। लेकिन पर्याप्त संसाधन हो तो जीत को एक हद तक सुनिश्चित किया जा सकता है। उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते वक्त युद्ध के विभिन्न मोर्चों का विशाल आकार, प्रहार को ज्यादा भीषण बनाने और हथियारों में काइनेटक और नॉन-काइनेटिक, दोनों तरह की तकनीकी प्रगति के साथ-साथ प्रतिद्वंद्वी की रणनीति समझना बहुत जरूरी है। इसके लिए ऐसे स्ट्रैटिजिक और ऑपरेशन लीडर्स के समूह की आवश्यकता होती है जो आधुनिक सिद्धांतों में पारंगत हों।


उन्हें यूनिट और फॉर्मेशन स्तर की रणनीति, कॉम्बाइंड और जॉइंट वॉरफेयर की वास्तविकताओं और सबसे महत्वपूर्ण- वर्तमान सिद्धांतवादी सोच में समृद्ध अनुभव से परिपूर्ण होना चाहिए ताकि बौद्धिक रूप से ज्यादा फायदेमंद साबित होता है। यह किसी नए युग के मंत्र की तरह लगता है, लेकिन वास्तव में 200 साल पहले विकसित और परिष्कृत आधुनिक युद्ध के अध्ययन और समझ के वर्षों का एक व्यावहारिक सार है।

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शैक्षणिक ज्ञान में सुधार और तेज बुद्धि के लिए प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन जारी रखा जा सकता है, लेकिन यह उन सवालों के जवाब नहीं देगा जो आधुनिक युद्ध खड़े करते हैं। आज दुनियाभर की सेनाओं में बहुत कुछ समान है और इसलिए वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं का पालन करने की आवश्यकता है, भले ही इनमें से कुछ पूर्व औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा प्रचारित किए जाते हों। आधुनिक युद्ध के सैद्धांतिक अवधारणाओं के प्रति सजग रहने के लिए मौजूदा सैन्य विचारों का गहन अध्ययन आवश्यक है।

आधुनिक समय की आपात स्थितियों से निपटने का गुर प्राचीन ज्ञान में नहीं ढूंढा जाना चाहिए, भले ही उनका अध्ययन हमारी इस बेचैनी को शांत करे कि हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले युद्ध के मैदान में क्या करने का विकल्प चुना था।

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