चिकित्सक धर्म
सेवा धर्म है मेरा चिकित्सा कर्म है मेरा
जो मिलते दर्द से तड़पते बचाना फर्ज है मेरा।
किसी दिन यह नहीं सोचा करुं आराम मैं घर में
तड़पता है कहीं कोई तो सुनना धर्म है मेरा।
कभी दवा करुं मैं तो कभी दुआ करूं मैं भी
कसर कोई नहीं छूटे जान पर कर्ज है मेरा ।
किसी का खून बह जाए किसी की हड्डियां टूटी
किसी का दुख नहीं छोटा दवाएं हर मर्ज है मेरा।
करें एक जान से दो जान तब किलकारियां गूंजी
दर्द में डूबे को दिलासा दें शब्द हमदर्द है मेरा।
कभी समझा करो लोगों जो आया है वो जाएगा
करूं सांसों का सौदा जमीर न खुदगर्ज है मेरा।
जलाकर रात की नींदें लुटाकर हर सुख चैना को
रूप ईश्वर किया धारण है छुपा हर दर्द है मेरा।
नहीं करना इबादत तुम, मुझे चाहत नहीं इसकी
मेरी संवेदनाओं को जानों यही एक अर्ज है मेरा।
रहूँ निश्चिंत मैं इतना मुसीबत हो कोई हमपर
सकल समाज को फिर जीवन सुपुर्द है मेरा।
डॉ रजनी शर्मा ‘चंदा’
रांची,झारखंड
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