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चीन के खतरे ने भारत को बनाया इंटरनेशनल शिप मेंटीनेंस हब, अमेरिका-ब्रिटेन के युद्धपोत मरम्मत के लिए पहुंचे

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चीन के खतरे ने भारत को बनाया इंटरनेशनल शिप मेंटीनेंस हब, अमेरिका-ब्रिटेन के युद्धपोत मरम्मत के लिए पहुंचे

चीन के खतरे ने भारत को पूरी दुनिया में युद्धपोतों के एक बड़े रिपेयरिंग हब के रूप में विकसित कर दिया है। अब अमेरिका और ब्रिटेन के युद्धपोत भी जल्द मरम्मत के लिए भारत आ रहे हैं। इन युद्धपोतों के आने से न सिर्फ भारत की नौसैनिक ताकत बढ़ रही है, बल्कि नई-नई टेक्नोलॉजी तक पहुंच भी मिल रहा है।

बीजिंग: इंडो-पैसिफिक में अपने युद्धपोतों को बनाए रखने के लिए पश्चिम तेजी से भारत पर निर्भर हो रहा है। ब्रिटेन के पहले दो युद्धपोत इस क्षेत्र के लिए प्रस्थान करने से पहले मेंटीनेंस के लिए भारत पहुंचे हैं। अमेरिका लंबे समय से अपने युद्धपोतों के मेंटीनेंस में देरी का सामना कर रहा है। इस कारण लागत में भी भारी बढ़ोत्तरी हो रही है और युद्धपोत भी ऑपरेशन के लिए देरी से उपलब्ध हो रहे हैं। अमेरिका इस समय चीन की बढ़ती नौसैनिक ताकत का मुकाबला करने के लिए संघर्ष कर रहा है। ऐसे में अमेरिका को इंडो-पैसिफिक में भारत जैसा भरोसेमंद साथी मिला है। अमेरिकी युद्धपोत भी अब मेंटीनेंस के लिए भारत पर निर्भर हो रहे हैं। इससे इंडो-पैसिफिक में उनकी तैनाती को बल मिल रहा है।

अमेरिका शिप मेंटीनेंस को लेकर क्यों परेशान है

यूरेशियन टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका चीन की बढ़ती जहाज निर्माण क्षमताओं से मेल खाने के लिए ठोस प्रयास कर रहा है। अमेरिका अपने बेकार हो चुके शिपयार्डों को फिर से शुरू करने में मदद के लिए अपने एशियाई सहयोगियों, जापान और दक्षिण कोरिया पर दबाव डाल रहा है। अमेरिकी नौसेना सर्विसिंग बैकलॉग को कम करने के लिए अपने युद्धपोतों के रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल के लिए” जापान के निजी शिपयार्डों के उपयोग का भी अध्ययन कर रही है। इस परियोजना का विस्तार दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और फिलीपींस तक हो सकता है।

यूएस नेवी ने भारत में एलएंडटी के साथ किया समझौता

यह कदम चीनी नौसैनिक बेड़े की तेजी से वृद्धि का मुकाबला करने के लिए ‘समान विचारधारा वाले’ देशों के एक साथ आने का प्रतीक है। विशेषज्ञों का मानना है कि दक्षिण चीन सागर के प्रवेश बिंदु मलक्का जलडमरूमध्य पर बैठा भारत, इस क्षेत्र में पश्चिमी देशों के संचालन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उनका कहना है कि अमेरिका और भारत के बीच रक्षा सहयोग अपने चरम पर पहुंच गया है, क्योंकि अमेरिकी नौसेना ने चेन्नई में लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) शिपयार्ड के साथ पांच साल के मास्टर शिपयार्ड मरम्मत समझौते (एमएसआरए) पर हस्ताक्षर किए हैं, जो यहां अमेरिकी नौसैनिक युद्धपोतों की मरम्मत का मार्ग प्रशस्त करेगा।

चेन्नई बना शिप मेंटीनेंस का बड़ा हब

पूर्वी तट पर चेन्नई के पास कट्टुपल्ली में एल एंड टी शिपयार्ड सैन्य सीलिफ्ट कमांड जहाजों की मरम्मत का कार्य कर रहा है और अब अमेरिकी नौसेना के जहाजों की मरम्मत का केंद्र बन रहा है। चेन्नई जहाजों की मरम्मत के लिए एक अच्छी जगह है जहां एलएंडटी शिपयार्ड (अमेरिकी जहाजों के लिए गहराई की बड़ी आवश्यकता के कारण) और सक्षम इकाई (एलएंडटी) दोनों में बंदरगाह बुनियादी ढांचे उपलब्ध हैं। इस जगह पर मरम्मत किया जाने वाला पहला युद्धपोत यूएसएनएस साल्वर था, जो स्टील की मरम्मत के लिए शिपयार्ड पहुंचा था।

ब्रिटिश नौसेना के दो जहाज भी मरम्मत के लिए पहुंचे

यह वही शिपयार्ड है जहां दो ब्रिटिश जहाज, रॉयल फ्लीट ऑक्जिलरी (आरएफए) आर्गस और आरएफए लाइम बे, आवश्यक रखरखाव के लिए रुके थे। यह पहली बार है कि रॉयल नेवी जहाज का भारतीय शिपयार्ड में मेंटीनेंस किया जाएगा, जो 2022 में यूके और भारत के बीच हस्ताक्षरित रसद-साझाकरण समझौते का प्रत्यक्ष परिणाम है। मेंटीनेंस के बाद, मेहमान जहाज चेन्नई तट से दूर अरब सागर में पहली बार भारतीय नौसेना के साथ समुद्री अभ्यास करेंगे। यह उम्मीद की गई है कि अमेरिका भारत-प्रशांत में सक्रिय अपनी नौसैनिक संपत्तियों को रसद सहायता प्रदान करने के लिए भारत में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए समर्थन बढ़ाएगा।

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