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चीन बोला- भारत ने 1987 में अरुणाचल पर कब्जा किया:वो हमारा हिस्सा; जयशंकर ने कहा था- ड्रैगन सीमा समझौतों को नहीं मानता

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चीन बोला- भारत ने 1987 में अरुणाचल पर कब्जा किया:वो हमारा हिस्सा; जयशंकर ने कहा था- ड्रैगन सीमा समझौतों को नहीं मानता

बीजिंग

PM मोदी के अरुणाचल दौरे के बाद से चीन लगातार अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बता रहा है। - Dainik Bhaskar

PM मोदी के अरुणाचल दौरे के बाद से चीन लगातार अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बता रहा है।

चीन ने एक बार फिर से अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताया है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा- 1987 में भारत ने चीनी जमीन पर अवैध तरह से अरुणाचल प्रदेश बसाया। हमने तब भी इसका विरोध किया था और आज भी हम अपने बयान पर कायम हैं।

जियान ने कहा- चीन और भारत की सीमा का कभी सीमांकन नहीं किया गया। ये पूर्वी सेक्टर, पश्चिमी सेक्टर और सिक्किम सेक्टर में बंटी हुई है। पूर्वी सेक्टर में जांगनान (अरुणाचल प्रदेश) हमारा हिस्सा है। भारत के कब्जे से पहले चीन ने हमेशा प्रभावी ढंग से यहां पर शासन किया है। यह मूल तथ्य है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता।

इसी के साथ इस महीने यह चौथी बार है जब चीन ने अरुणाचल को अपना क्षेत्र बताया है। दरअसल, शनिवार (23 मार्च) को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सिंगापुर में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था- चीन ने लगातार अरुणाचल पर अपना दावा किया है। ये दावे शुरू से ही बेतुके थे और आज भी बेतुके ही हैं। चीन सीमा समझौतों को नहीं मानता है।

सिंगापुर में एक कार्यक्रम के दौरान विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत-चीन रिश्तों और सीमा विवाद पर बात की।

सिंगापुर में एक कार्यक्रम के दौरान विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत-चीन रिश्तों और सीमा विवाद पर बात की।

भारत-चीन के बीच संतुलन बनाना सबसे बड़ी चुनौती
सिंगापुर में जयशंकर ने कहा था- मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती ये है कि भारत-चीन के बीच संतुलन कैसे बनाएं, दोनों देश 2 बड़ी ताकतें हैं जो आपस में पड़ोसी भी हैं। दोनों देशों का इतिहास और उनकी क्षमताएं उन्हें दुनिया से अलग करती हैं। ऐसे में दोनों देशों के बीच बातचीत जारी रखना अहम है।

विदेश मंत्री ने कहा कि 2020 में हमें हैरानी हुई, जब चीन ने बॉर्डर पर कुछ ऐसा किया जो दोनों देशों के बीच हुए समझौते का उल्लंघन था। चीन ने दोनों देशों के बीच संतुलन बनाने की बजाए उसे बिगाड़ दिया।

सेला टनल खुलने पर चीन बोला था- PM मोदी के दौरे से मुश्किलें बढ़ेंगी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 मार्च को अरुणाचल में सेला टनल का उद्घाटन किया था। यह 13 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी दुनिया की सबसे लंबी डबल लेन टनल है। चीन सीमा से लगी इस टनल की लंबाई 1.5 किलोमीटर है।

टनल के उद्घाटन के बाद से चीन ने लगातार इसका विरोध करते हुए अरुणाचल को अपना क्षेत्र बताया है। करीब 15 दिन पहले चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा था- भारत के कदम LAC पर तनाव को बढ़ावा देने वाले हैं। हमारी सरकार ने कभी भी गैर-कानूनी तरीके से बसाए गए अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं दी। हम आज भी इसका विरोध करते हैं।

चीन ने कहा- अरुणाचल हमारा हिस्सा है और भारत मनमाने ढंग से यहां कुछ भी नहीं कर सकता है। हम PM मोदी के पूर्वी क्षेत्र में किए गए इस दौरे के खिलाफ हैं। हमने भारत से भी अपना विरोध जताया है।

टनल चीन बॉर्डर से लगे तवांग को हर मौसम में रोड कनेक्टिविटी देगी। LAC के करीब होने के कारण यह टनल सेना के मूवमेंट को खराब मौसम में और भी बेहतर बनाएगी। इस टनल के बनने से चीन बॉर्डर तक की दूरी 10 किलोमीटर कम हो गई है।

सेला टनल रणनीतिक रूप से इतनी अहम क्यों है?
डिफेंस एक्सपर्ट मनोज जोशी बताते हैं कि सेला टनल रणनीतिक रूप से अहम ‘सेला पास’ के नजदीक बनी है। ये इलाका चीनी सेना को LAC से साफ नजर आता है। 1962 की भारत-चीन जंग में चीनी सेना इसी सेला पास से घुसकर तवांग तक पहुंची थी। इतना ही नहीं, तवांग सेक्टर में ही 9 दिसंबर 2022 को चीनी सैनिकों ने घुसपैठ की थी, जिसके बाद भारतीय सेना से उनकी झड़प हुई थी।

अरुणाचल प्रदेश के अलावा चीन अक्साई चिन और लद्दाख को भी अपना हिस्सा बताता है। पिछले साल 28 अगस्त को चीन ने अपना एक ऑफिशियल मैप जारी किया था। इसमें उसने अरुणाचल प्रदेश, अक्साई चीन, ताइवान और विवादित दक्षिण चीन सागर को अपना इलाका बताया था।

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