जब राजपरिवार लड़ते थे चुनाव:राजा करणी सिंह को जनता वोट के साथ देती थी नोट, महारानी गायत्री देवी कांग्रेस का ऑफर ठुकराकर लड़ीं चुनाव
बीकानेर
वर्ष 1947 में देश आजाद हुआ और आम आदमी को अपना जनप्रतिनिधि चुनने का मौका मिल गया। राजतंत्र से छुटकारा मिल गया था, लेकिन देश के कई राज परिवार आम आदमी के दिल और दिमाग में इस तरह रचे बसे थे कि वो राजा और रानी को ही अपना अन्नदाता मानते थे।
ऐसे ही एक राजा बीकानेर के डॉ. करणी सिंह थे, तो रानी जयपुर की गायत्री देवी थीं। दोनों के नाम एक रिकॉर्ड ये है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में रिकाॅर्ड मतों से जीत हासिल की थी। जितने प्रतिशत वोट डॉ. करणी सिंह (71%) ने बीकानेर से और गायत्री देवी (70%) ने जयपुर से प्राप्त किए, उतने आज तक कोई उम्मीदवार नहीं ले सका।
पढ़िए पूरी रिपोर्ट
चुनाव के दौरान करणी सिंह बहुत कम प्रचार करते थे, लेकिन जीतते थे।
बात वर्ष 1951 की है, जब पहला चुनाव हो रहा था। डॉ. करणी सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपनी दावेदारी रखी। महाराजा नगर सेठ लक्ष्मीनाथ के मंदिर पहुंचे। लोगों के सामने हाथ जोड़े और पूरा शहर उन्हें वोट देने के लिए उमड़ पड़ा।
प्रचार के नाम पर राजमहल से लक्ष्मीनाथ मंदिर तक का रोड शो किया। घर-घर जाकर प्रचार नहीं किया। किसी तरह की कोई चुनावी सभा भी तब नहीं होती थी। डॉ. करणी सिंह के समर्थक जरूर इधर-उधर प्रयास करते, लेकिन खुद डॉ. करणी सिंह ने वोट के लिए प्रचार नहीं किया।
पहले चुनाव में एक रुपए का नेगचार
बीकानेर के श्याम नारायण रंगा बताते हैं कि पहले चुनाव में बीकानेर की जनता ने वोट के साथ नोट भी दिया था। तब आम बीकानेरी की धारणा थी कि चुनाव के माध्यम से ही वो अपने महाराजा से मिल रहे हैं। अगर मिल रहे हैं तो खाली हाथ नहीं जाएंगे।
ऐसे में बड़ी संख्या में लोगों ने एक-एक रुपया भी अपने बैलेट पेपर के साथ डाला था। मतगणना के समय ये रुपए पेटियों से निकले। रंगा बताते हैं कि ये रुपए बाद में चुनाव आयोग में जमा हो गए। कितने लोगों ने रुपए डाले इसका कोई रिकाॅर्ड नहीं मिला।
आमतौर पर करणी सिंह की एक मीटिंग लक्ष्मीनाथ मंदिर में होती थी, जहां भारी भीड़ एकत्र होती थी।
डॉ. करणी सिंह को दिखाने बैलेट साथ ले आए
बताया जाता है कि तब महाराजा के प्रति अपनी निष्ठा दिखाने के लिए शहरी क्षेत्र के कई वोटर अपने-अपने बैलेट पेटी में डालने के बजाय साथ ले आए।
उनके मन में था कि वो डॉ. करणी सिंह को बताएंगे कि वोट उन्हीं को दिया है। बाद में उन्हें वोट पुन: पेटी में डालकर आने के लिए कहा गया और समझाया गया कि वोट बाहर नहीं आते।
खम्मा अन्नदाता का नारा : बीकानेर के पहले लोकसभा चुनाव में एक ही नारा था, खम्मा अन्नदाता। यानी राजा जो अन्न देता है, उसकी जय हो।
मिट्टी के कबूतरों पर निशानेबाजी की प्रैक्टिस
जब डॉ. करणी सिंह मात्र 13 साल के थे, तभी बन्दूक चलाने लगे थे। उनके निशाने पर एक चिड़िया आ गई। उसकी मौत ने उन्हें विचलित कर दिया।
वे निशाना सटीक बैठने पर खुश थे, लेकिन किसी जीव की हत्या से वे परेशान हुए और तय कर लिया कि निशानेबाजी में अब से वे किसी जीव का इस्तेमाल नहीं करेंगे।
वे मिट्टी के कबूतरों पर निशाना लगाते रहे और इसी के सहारे उन्होंने अनेक पदक अपने और देश के खाते में डाले
डा.करणीसिंह क्ले कबूतर ट्रैप और स्कीट में 17 बार नेशनल चैंपियन रहे। वर्ष 1960 से 1980 तक पांच ओलिंपिक खेलों में भाग लेने वाले पहले भारतीय थे।
वर्ष 1968 में उनकी बेटी राज्यश्री को भी अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया था, वह भी निशानेबाजी के लिए।
करणी सिंह स्वयं इंटरनेशनल लेवल के शूटर थे, वहीं उनकी बेटी राज्यश्री कुमारी भी शूटर थीं। पिता-पुत्री दोनों को अर्जुन अवार्ड मिला था।
रचा जीत का इतिहास, अंतर घटा ताे चुनाव लड़ना छोड़ा
डॉ. करणी सिंह वर्ष 1951 से 1972 तक लगातार चुनाव लड़ते रहे। 1971 से पहले तक उनकी जीत का अंतर काफी बड़ा होता था, लेकिन वर्ष 1971 में उनकी जीत का अंतर कम हो गया।
इस जीत के बाद उन्होंने फिर से चुनाव लड़ने का मानस छोड़ दिया। बीकानेर से लगातार पांच बार सांसद रहने का रिकाॅर्ड डॉ. करणी सिंह के नाम ही सुरक्षित है।
उन्हें वर्ष 1971 में पचास फीसदी से कम वोट मिले थे, ऐसे में उन्होंने फिर से चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय कर लिया। हालांकि, दूसरे चुनाव में उन्हें सबसे कम 33 फीसदी वोट मिले थे। इसके बाद मत अंतर लगातार बढ़ता गया।
1951 | 62.87% |
1957 | 33.30 % |
1962 | 70.19 % |
1967 | 71 % |
1971 | 49.15 |
अब पढ़िए गायत्री देवी के वर्ल्ड रिकॉर्ड की कहानी…
प्रसिद्ध वोग मैग्जीन ने गायत्री देवी को दुनिया की 10 सबसे खूबसूरत महिलाओं में शामिल किया था।
रियासत विलय के बाद जयपुर की रॉयल फैमिली की सियासी पारी का दौर 1962 में शुरू हुआ। कम लोग ही जानते हैं कि गायत्री देवी ने कांग्रेस का प्रस्ताव ठुकराकर अपना पहला लोकसभा चुनाव कांग्रेस की कट्टर विरोधी पार्टी से लड़ा और रिकॉर्ड मतों से जीतकर राजस्थान की पहली महिला सांसद बनीं। उनकी ये जीत तब गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुई थी।
उस दौर में राजस्थान में चुनावी स्थिति ‘सामंत बनाम कांग्रेस’ बनती जा रही थी। उसी समय सी राजगोपालचारी की स्वतंत्र पार्टी का भी जन्म हो चुका था। डूंगरपुर में महारावल लक्ष्मण सिंह, अलवर से राजा प्रताप सिंह, कोटा के महाराजा और जोधपुर रियासत के सामंत एवं जागीरदार चुनाव लड़ने के लिए एकजुट हो रहे थे।
1962 के चुनाव से कई माह पूर्व एक दिन मोहनलाल सुखाड़िया गायत्री देवी से मिलने जयपुर पहुंचे। उन्हें कांग्रेस के टिकट पर जयपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया। तब गायत्री देवी ने सुखाड़िया से कहा- ‘मुझे अपने पति से परामर्श करना होगा।’
महलों से निकलकर गायत्री देवी लोगों की समस्याएं सुनने में ज्यादा रुचि रखती थीं।
कांग्रेस का ऑफर ठुकराया
जयपुर महाराजा मानसिंह और गायत्रीदेवी के बीच चर्चा हुई। महाराजा ने उनसे कहा- क्या वे सोचती हैं कि यदि वे कांग्रेस में शामिल हो जाएंगी तो जयपुर के लिए कुछ उपयोगी काम कर सकेंगी?
गायत्री देवी ने अपनी आत्मकथा ए प्रिंसेस रिमेम्बर्स में लिखा है- राजनीति में आने से पहले उनके मानस पर कुछ घटनाओं का असर रहा था। उनमें 1956 में जयपुर महाराजा को राजप्रमुख पद से हटाने की घटना भी एक है। राजप्रमुख सवाई मानसिंह के मन पर इसका बड़ा आघात लगा था।
रियासत के विलय के समय यह समझौता हुआ था कि राजप्रमुख के पद पर वह जीवन पर्यन्त रहेंगे, लेकिन बाद में उन्हें हटा दिया गया था। इन्हीं सब बातों पर विचार और चर्चा के बाद गायत्री देवी ने सुखाड़िया को सूचित किया कि वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव नहीं लड़ सकेंगी।
जयपुर में जनसंपर्क के दौरान गायत्री देवी की एक पुरानी तस्वीर।
जीत से बनाया वर्ल्ड रिकॉर्ड
इसी दौरान कांग्रेस के प्रखर विरोधी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने गायत्री देवी से संपर्क साधा और उन्हें खुद की स्वतंत्र पार्टी से टिकट देकर चुनाव लड़वाया। उस चुनाव में कुल कुल 2 लाख 46 हजार 516 वोट पड़े थे, इनमें से गायत्री देवी को 1 लाख 92 हजार 909 वोट ( करीब 70%) मिले, जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी शारदा देवी महज 35 हजार 217 वोट हासिल कर पाईं। ये दुनिया में किसी भी इलेक्शन में तब सबसे बड़ी जीत थी, जिसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया।
स्वतंत्र पार्टी की उमीदवार गायत्री देवी ने जयपुर लोकसभा सीट से लगातार दो और लोकसभा चुनाव लड़े 1967 में 1 लाख 96 हजार 892 मत एवं 1971 में 1 लाख 80 हजार 59 मत प्राप्त कर जीत दर्ज की। हालांकि, इस बीच 1967 में उन्होंने मालपुरा (जिला- टोंक) से विधानसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन वे कांग्रेस प्रत्याशी डी. व्यास से हार गईं थी। गायत्री देवी ने कांग्रेस उम्मीदवार को लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव में हराया था।
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