जेलर का बेटा कैसे बना पूर्वी राजस्थान का पेपर माफिया?:फरारी में भी लगती थी अटेंडेंस, रुतबा ऐसा कि बॉस बुलाते थे पुलिसवाले, करोड़ों कमाए
जयपुर
रिटायर्ड जेलर का बेटा जो कभी RAS बनना चाहता था, लेकिन पूर्वी राजस्थान में पेपर लीक करवाने वाली सबसे बड़ी गैंग का माफिया बन गया। डमी कैंडिडेट बैठाने, पेपर लीक से लेकर इंटरव्यू पास तक हर काम में खुद का नेटवर्क बनाया।
13 साल में इतने पेपर लीक करवाए कि 500 से ज्यादा लोगों को नौकरी पर लगवा दिया। ये माफिया है जेईएन पेपर लीक का मास्टरमाइंड पटवारी हर्षवर्धन कुमार मीणा। गिरोह के माफिया को हर कोई बॉस के नाम से जानता था।
रुतबा ऐसा कि कभी अपनी पटवारी की नौकरी पर ड्यूटी करने नहीं गया। एक युवक को 10 हजार रुपए प्रतिमाह पर नौकरी करने के लिए रख लिया। पुलिस जब उसे तलाश रही थी, तब भी उसकी अटेंडेंस लगती रही।
हर्षवर्धन मीणा कैसे नकल गिरोह का सबसे बड़ा माफिया बना? कैसे वो पेपर लीक करवाता था? एसओजी को उसके कौन-कौन से काले कारनामे पता चले हैं? पढ़िए- स्पेशल स्टोरी में…
पेपर लीक गैंग का मास्टरमाइंड हर्षवर्धन मीणा।
जेलर का बेटा बना पेपर माफिया
दौसा की महवा तहसील के सलीमपुर गांव में रहने वाले हर्षवर्धन मीणा (39) के पिता मुरारी लाल मीणा रिटायर्ड जेलर हैं। जेलर के पद से रिटायर होने के बाद गांव में बने अपने छोटे से मकान में रहते हैं। हर्षवर्धन भी शुरुआत में RAS भर्ती परीक्षा की तैयारी में लगा था।
इसके साथ ही पटवारी-तहसीलदार जैसे एग्जाम भी दे रहा था। दिमाग से शातिर हर्षवर्धन हर बार एग्जाम में फेल हो जाता था। इसी दौरान वो एक नकल गिरोह के संपर्क में आया। हर्षवर्धन ने भर्ती परीक्षाओं में हाईटेक गैजेट्स (ब्लूटूथ) से नकल करवाकर पेपर माफिया की दुनिया में एंट्री ली।
नाम नहीं छापने की शर्त पर उसके करीबी बताते हैं कि हर्षवर्धन ने ब्लूटूथ पर एक सरकारी एग्जाम सॉल्व करवाया था। इसके बदले उसने लाखों रुपए कमाए। फिर खुद का गिरोह बनाकर भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक करवाने लग गया।
महवा के सलीमपुर गांव में स्थित हर्षवर्धन मीणा का पुश्तैनी मकान।
ऐसे बना हर्षवर्धन मीणा पेपर लीक का सरगना
हाईटेक गैजेट्स नकल : हर्षवर्धन शुरुआत में हाईटेक गैजेट्स से अभ्यर्थियों को नकल करवाकर भर्ती परीक्षाएं पास करवाता था। इसके लिए वो पहले 10 अभ्यर्थियों से सौदा करता था। हर अभ्यर्थी से 5 से 10 लाख रुपए लेता था। इसके अलावा कोचिंग कराने वाले किसी टीचर को करीब 5 लाख रुपए में हायर करता था। अभ्यर्थियों को सेंटर पर जाने से पहले जासूसी में काम आने वाले ब्लूटूथ डिवाइस पहनाए जाते थे।
कानों, कपड़ों, शरीर पर टेप से चिपकाकर, जूते-चप्पल में छुपाकर अभ्यर्थियों को हाईटेक गैजेट्स पहना देते थे। परीक्षा के दौरान अभ्यर्थी इन डिवाइस से सेंटर परिसर के बाहर गाड़ी में बैठे अपने साथी को सवाल बताते और वे हल करके उन्हें सही आंसर बताते थे, लेकिन पुलिस ने ऐसे कई गिरोह पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया। परीक्षा केंद्रों पर सिक्योरिटी बढ़ा दी गई और अभ्यर्थियों की तलाशी ली जाने लगी। इसके बाद गिरोह ने यह तरीका छोड़ दिया था।
हर्षवर्धन की गैंग से जुड़े सभी लोग डमी कैंडिडेट बैठाने से लेकर पेपर लीक करने में लिप्त पाए गए हैं।
डमी कैंडिडेट से भर्ती परीक्षा में मेरिट लाते थे
हाईटेक डिवाइस से जब कई नकल गिरोह पकड़े गए तो हर्षवर्धन ने अपना तरीका बदल लिया। उसने भर्ती परीक्षा में पास हुए छात्र और कोचिंग टीचर का एक ग्रुप बनाया। कोई भी सरकारी भर्ती परीक्षा की घोषणा होते ही ये ग्रुप एक्टिव हो जाता।
गिरोह के लोग अभ्यर्थियों को परीक्षा पास करवाने की गारंटी देकर सौदा करते थे। इसमें एक कैंडिडेट से इसके बदले 15 से 20 लाख रुपए लिए जाते। डमी कैंडिडेट को परीक्षा केंद्र में जाने के लिए फर्जी एडमिट कार्ड बनाया जाता था। एडमिट कार्ड में डमी कैंडिडेट की फोटो ऐसी लगाई जाती थी कि वो असली अभ्यर्थी जैसा दिखे।
गिरोह ने 13 और 15 सितंबर 2021 को हुई सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा में सबसे ज्यादा डमी कैंडिडेट बैठाए थे। मास्टरमाइंड हर्षवर्धन ने भीलवाड़ा में पटवारी लगी पत्नी सरिता को एसआई भर्ती का एग्जाम डमी कैंडिडेट से ही पास करवाया था, लेकिन सरिता फिजिकल में फेल हो गई थी।
हर्षवर्धन के साथ पकड़े गए एक दलाल राजेंद्र कुमार यादव उर्फ राजू ने भी एसआई भर्ती परीक्षा में डमी कैंडिडेट के जरिए मेरिट में 53वीं रैंक हासिल की थी।
एसओजी के हत्थे चढ़ने के बाद हर्षवर्धन मीणा (हाथ ऊपर उठाते हुए)
हर्षवर्धन ने पेपर लीक का इतना बड़ा नेटवर्क कैसे तैयार किया?
एसओजी को पता चला है कि हर्षवर्धन की पेपर लीक गैंग में सबसे ज्यादा सरकारी कर्मचारी शामिल हैं। कर्मचारियों को अपनी गैंग में जोड़ने के लिए वह शातिर तरीका अपनाता था।
1. ट्रांसफर करवाकर पहले एहसान करता, फिर उसे गिरोह में जोड़ता
हर सरकारी एग्जाम के दौरान सेंटर में स्कूल टीचर्स की ही ड्यूटी लगती है। हर्षवर्धन ने खुद का गिरोह चलाने के कई सरकारी टीचरों से दोस्ती कर अपने साथ जोड़ना शुरू किया। उन्हें सभी परेशानियां हल करने का आश्वासन देता था। कुछ टीचरों को उनकी मनचाही जगह पर तबादला करवाकर भी भरोसे में लिया।
इनमें खातीपुरा के राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल में कार्यरत ग्रेड थर्ड के टीचर राजेंद्र कुमार यादव भी शामिल है, जो पिछले 23 साल से एक ही स्कूल में नौकरी कर रहा है। मई 2010 में उसका ट्रांसफर मुरलीपुरा स्कूल में हुआ था, लेकिन हर्षवर्धन की मदद से उसने महज तीन महीने बाद सितंबर में अपना ट्रांसफर फिर से खातीपुरा स्कूल में करवा लिया।
सरकारी स्कूल का टीचर राजेंद्र यादव, जिसने पेपर लीक किया।
2. गिरोह के टीचर स्ट्रॉन्ग रूम से पेपर लीक करते थे
हर्षवर्धन ने बाद में राजेंद्र यादव उर्फ राजू को अपना पार्टनर बना लिया था। दोनों के संपर्क में कई सरकारी टीचर थे। यह टीचर अलग-अलग जिलों में लगे थे। जब भी कोई भर्ती परीक्षा होती थी। इनमें से किसी ना किसी टीचर की स्ट्रॉन्ग रूम में इंचार्ज के तौर पर ड्यूटी लगती थी। किसी भी भर्ती परीक्षा का पेपर एग्जाम सेंटर पर 1 या दो घंटे पहले स्ट्रॉन्ग में पहुंच जाता है।
इसके बाद यह टीचर स्ट्रॉन्ग रूम में जाकर पेपर को खोलकर उसकी फोटो लेकर गिरोह को भेज देते थे। कनिष्ठ अभियंता भर्ती परीक्षा में इसी तरीके से राजेंद्र कुमार ने जयपुर के खातीपुरा स्थित दिग्विजय सिंह सुमाल स्कूल के स्ट्रॉन्ग रूम से पेपर लीक कर हर्षवर्धन को वॉट्सऐप पर भेजा था।
हर्षवर्धन ने SOG के सामने पूछताछ में कबूल किया है कि उसकी गैंग ने पटवारी, सीएचओ, लैब असिस्टेंट, महिला सुपरवाइजर का पेपर लीक भी इसी तरीके से किया था।
जयपुर के खातीपुरा स्थित स्कूल जहां राजेंद्र यादव ग्रेड थर्ड टीचर था।
3. गिरोह ने 13 साल में कमाए करोड़ों रुपए
कनिष्ठ अभियंता का पेपर हर्षवर्धन ने राजेंद्र यादव से 50 लाख रुपए में खरीदकर आगे 2.50 करोड़ में बेचा था। महज एक पेपर से उसने 2 करोड़ रुपए रुपए कमा लिए थे। इसी तरह पटवारी, सीएचओ, लैब असिस्टेंट, महिला सुपरवाइजर के पेपर लीक करवाए थे। यह वो पेपर हैं जिनको लीक करवाने की जानकारी एसओजी की शुरुआती जांच में सामने आई है। इसके अलावा नकल करवाने, डमी कैंडिडेट से भर्ती परीक्षा पास करवाने के बदले गैंग 15 से 20 लाख रुपए लेती थी। एसआई भर्ती परीक्षा में गिरोह ने एक दर्जन से ज्यादा लोगों को ऐसे ही परीक्षा पास करवाई थी।
महज 13 साल में हर्षवर्धन ने 500 से ज्यादा रिश्तेदारों-जानकारों को नौकरी पर अलग-अलग तरीकों से लगवाया है। इनमें 20 लोग तो उसके परिवार के ही बताए जा रहे हैं। अगर अनुमान लगाया जाए गिरोह ने पेपर बेचकर 10 करोड़ से ज्यादा की काली कमाई की है।
गैंग के लोग पुकारते थे ‘बॉस’, रुतबा ऐसा कि मिलना आसान नहीं
हर्षवर्धन मीणा अपने गिरोह का बॉस बन गया था। उसे लोग हर्षवर्धन के नाम से कम और बॉस के नाम से ज्यादा जानते थे। बॉस बनने के लिए हर्षवर्धन ने अपना रुतबा भी ऐसा ही बना रखा था। वह किसी से भी डायरेक्ट डील नहीं करता था।
हर जिले में अपने दलाल लगा रखे थे। किसी को कोई भी काम होता तो वो उन दलालों के जरिए ही मैसेज करवा सकता था। हर्षवर्धन अपने गांव भी आता था तो ज्यादा लोगों से नहीं मिलता था। लेकिन परिवार और रिश्तेदारों में हर कोई जानता था कि हर्षवर्धन पेपर माफिया है।
हर्षवर्धन मीणा जेईएन पेपर लीक में नाम आने के बाद नेपाल भाग गया था। 21 फरवरी को एसओजी उसे नेपाल बॉर्डर से पकड़कर जयपुर लाई थी।
कभी नौकरी पर नहीं गया, खुद की जगह युवक को किराए पर रखा
हर्षवर्धन मीणा दौसा की बतौर पटवारी ग्राम पंचायत पाली में ड्यूटी थी। लेकिन खुद कभी नौकरी पर ड्यूटी करने नहीं जाता था। उसने खुद की जगह पाली गांव के शिवराम मीणा को अपनी जगह लगा रखा था। उसे वो काम करने और अटेंडेंस लगाने के लिए हर महीने 10 हजार रुपए की तनख्वाह भी देता था।
फरारी में भी अटेंडेंस देखकर चौंकी पुलिस
कनिष्ठ अभियंता भर्ती परीक्षा में हर्षवर्धन मीणा का नाम सामने आने के बाद एसओजी ने उसकी तलाश शुरू कर दी थी। 25 जनवरी 2024 को एसओजी की टीम उसके गांव सलीमपुर स्थित घर पर पहुंची, लेकिन वहां घर पर ताला मिला। इसके बाद टीम ने ग्राम पंचायत में पहुंचकर वहां पता किया तो चौंक गई। एक तरफ फरार चल रहे हर्षवर्धन मीणा की हर दिन ड्यूटी पर उपस्थित होने की अटेंडेंस लग रही थी। पुलिस ने जब शिकायत की तो बाद में विभाग ने हर्षवर्धन मीणा को सस्पेंड कर दिया था।
अंडरग्राउंड होकर लग्जरी लाइफ जीता था
हर्षवर्धन को लग्जरी लाइफ जीने का शौक था लेकिन दिखावा पसंद नहीं था। उसने सोशल मीडिया से भी दूरी बना रखी थी। लोगों की नजरों में आए बिना वो अरबपति बनने के साथ ही लग्जरी लाइफ जीना चाहता था। क्रेटा गाड़ी से गांव आता था तो किसी से कोई मुलाकात नहीं करता था।
हर्षवर्धन मीणा का एक बाबा से भी संपर्क में था जो दौसा में अपना अस्थायी आश्रम चलाता है। कई बार हर्षवर्धन ने इस बाबा के आश्रम में छुपकर भी फरारी काटी थी।
दौसा के सलीमपुर गांव में हर्षवर्धन मीणा के मकान पर रेड के दौरान एसओजी की टीम।
गांव में दो मकान, जयपुर-दौसा में प्रॉपर्टी
हर्षवर्धन मीणा ने पेपर लीक से करोड़ों रुपए कमाए थे। उसने गांव में दो मकान बना रखे हैं। वहीं दौसा और जयपुर में कई जगहों पर प्रॉपर्टी ले रखी है। हर्षवर्धन मीणा के कुछ स्कूल और कोचिंग सेंटर भी पार्टनरशिप में चल रहे हैं, जिनके रिकॉर्ड एसओजी दर्ज कर रही है।
गैंग में शामिल ग्रेड थर्ड टीचर राजेंद्र कुमार यादव की वैशाली नगर में एक निजी स्कूल और कोचिंग होने की जानकारी भी एसओजी को मिली है। दोनों आरोपियों के रिकॉर्ड खंगाल कर प्रॉपर्टी पता लगाने का प्रयास कर रही है।
पेपर लीक करके पूरे परिवार को सरकारी नौकरी दिलाई
हर्षवर्धन मीणा ने पटवारी और महिला सुपरवाइजर भर्ती परीक्षा का भी पेपर लीक करवाया था। यही कारण है कि वो खुद भी पटवारी बना और पत्नी को भी नौकरी लगवाया। हर्षवर्धन का भाई पुष्पेंद्र मीणा भी निगम में नौकरी कर रहा है। भाई की पत्नी जो उसकी साली भी लगती थी उसे आंगनवाड़ी में सुपरवाइजर पद पर लगा दिया।
स्ट्रॉन्ग रूम से पेपर लीक करने वाले टीचर राजेंद्र कुमार यादव का बेटा डाक विभाग में नौकरी करता था। करीब दो साल पहले वो जेईएन बन गया तो उसने डाक विभाग की नौकरी छोड़ दी। राजेंद्र कुमार यादव की पुत्रवधु भी टीचर हैं।
ये हैं प्रदेश के दो सबसे बड़े पेपर माफिया गैंग
प्रदेश में दो बड़े पेपर माफिया के गिरोह हैं, जिन पर एसओजी ने शिकंजा कसा है। दोनों ही गैंग पिछले 10 सालों में 35 से ज्यादा पेपर लीक कर चुके हैं। पूर्वी राजस्थान की सबसे बड़ी गैंग हर्षवर्धन मीणा (बॉस) और राजू यादव की है। पश्चिमी राजस्थान में सुरेश ढाका और भूपेंद्र सारण का गिरोह।
दोनों गिरोह के काम करने का तरीका लगभग समान है। दोनों ही गिरोह में पेपर लीक करवाने वाले 99% लोग सरकारी कर्मचारी निकले हैं। पेपर लीक या डमी कैंडिडेट से परीक्षा दिलवाकर गिरोह के मास्टरमाइंड करोड़ों रुपए कमाते थे। एसओजी ने पेपर माफिया के लगभग सभी किंगपिन को पकड़ लिया है। केवल सुरेश ढाका अभी तक फरार है। अब कुल 615 से ज्यादा गिरोह के लोग पकड़े गए हैं।
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