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तीज माता की कथा, VIDEO:लहरिया, घेवर, मां पार्वती से जुड़ा यह त्योहार क्यों है महिलाओं के लिए खास

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तीज माता की कथा, VIDEO:लहरिया, घेवर, मां पार्वती से जुड़ा यह त्योहार क्यों है महिलाओं के लिए खास

जयपुर

सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर हर साल हरियाली तीज का पर्व मनाया जाता है। इस व्रत को करने से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है और दांपत्य जीवन सुखमय होता है। वहीं, कुंवारी कन्याएं यदि इस व्रत को करती हैं तो उनको योग्य वर की प्राप्ति होती है।

हरियाली तीज के दिन माता पार्वती की सवारी बड़े धूमधाम से निकाली जाती है। हरियाली तीज पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है।

आपके लिए पहली बार डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लेकर आया है तीज माता की पूरी कथा। आइए जानते हैं क्या है तीज की कथा, आरती और पारंपरिक गीत…

हरियाली तीज पर्व की मान्यता
भविष्य पुराण में देवी पार्वती बताती हैं कि तृतीया तिथि का व्रत उन्होंने बनाया है जिससे स्त्रियों को सुहाग और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि हरियाली तीज के दिन माता पार्वती और शिवजी की आराधना सच्चे मन से करने से मनोकामना जरूर पूरी होती है। अगर आप भी हरियाली तीज का व्रत इस बार रख रही हैं, तो इस व्रत कथा को जरूर पढ़ें, क्योंकि हरियाली तीज व्रत कथा के बिना व्रत पूरा नहीं माना जाता है।

तीज के दिन महिलाएं लहरिया पहनकर देवी मां की पूजा करती हैं।

तीज के दिन महिलाएं लहरिया पहनकर देवी मां की पूजा करती हैं।

हरितालिका व्रत की कथा
कहा जाता है इस व्रत के महात्म्य की कथा भगवान शिव ने पार्वती जी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण करवाने के मकसद से इस प्रकार कही थी-

हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया था। इस अवधि में तुमने अन्न नहीं खाकर केवल हवा का ही सेवन किया था। इतनी अवधि तुमने सूखे पत्ते चबाकर खाए थे। माघ की शीतलता में तुमने निरन्तर जल में प्रवेश कर तप किया था।

वैशाख की जला देने वाली गर्मी में पंचाग्नि से शरीर को तपाया। श्रावण की मूसलाधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न जल ग्रहण किए व्यतीत किया। तुम्हारी इस कष्टदायक तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज होते थे। तब एक दिन तुम्हारी तपस्या और पिता की नाराजगी को देखकर नारद जी तुम्हारे घर पधारे।

तुम्हारे पिता ने आने का कारण पूछा तो पर नाराद जी बोले- ‘हे गिरिराज! मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां आया हूं। आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं।

इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूं। नारद जी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले श्रीमान यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं, तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती है।

वे तो साक्षात ब्रह्म हैं। यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख संपदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने। नारद जी तुम्हारे पिता के स्वीकृति पाकर विष्णु जी के पास गए और उन्हें विवाह तय होने का समाचार सुनाया, लेकिन जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हारे दुख का ठिकाना नहीं रहा।

तुम्हें इस प्रकार से दुखी देखकर तुम्हारी एक सहेली के तुम्हारे दुख का कारण पूछने पर तुमने बताया मैंने सच्चे मन से भगवान शिव का वरण किया है, लेकिन मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णु जी के साथ तय कर लिया है। मैं विचित्र धर्म संकट में हूं।

अब मेरे पास प्राण त्याग देने के अलावा कोई और उपाय नहीं बचा। तुम्हारी सखी बहुत ही समझदार थी। उसने कहा प्राण छोड़ने का यहां कारण ही क्या है। संकट के समय धैर्य से काम लेना चाहिए। भारतीय नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि जिसे मनुष्य के रूप में एक बार वरण कर लिया जीवन पर्यंत उसी से निर्वाह करें।

सच्ची आस्था और एक रिश्ता के समक्ष तो भगवान भी असहाय है। मैं तुम्हें घनघोर वन में ले चलती हूं, जो साधना स्थल भी है और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी नहीं पाएंगे। मुझे पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे। तुमने ऐसा ही किया।

तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए। इधर, तुम्हारी खोज होती रही और उधर तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन रहने लगीं। तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण किया। तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन हिल उठा और मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास पहुंचा और तुमसे वर मांगने को कहा।

तब अपनी तपस्या के फलीभूत मुझे अपने सामने पाकर तुमने कहा, ‘मैं आपको सच्चे मन से पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए। तब ‘तथास्तु’ कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया।

उसी समय पर्वतराज अपने बंधु-बांधवों के साथ तुम्हें खोजते हुए वहां पहुंचे। तुमने सारा वृतांत बताया और कहा कि मैं घर तभी जाऊंगी, अगर आप महादेव से मेरा विवाह करेंगे।

तुम्हारे पिता मान गए और उन्होंने हमारा विवाह करवाया। इस व्रत का महत्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मनवांछित फल देता हूं। इस पूरे प्रकरण में तुम्हारी सखी ने तुम्हारा हरण किया था, इसलिए इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत हो गया।

व्रत कथा के बाद महिलाएं माता की पूजा करती हैं।

व्रत कथा के बाद महिलाएं माता की पूजा करती हैं।

हरितालिका माता की आरती
जय पार्वती माता जय पार्वती माता
ब्रह्म सनातन देवी शुभ फल कदा दाता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता
जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
सिंह को वाहन साजे कुंडल है साथा
देव वधु जहं गावत नृत्य कर ताथा।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
सतयुग शील सुसुन्दर नाम सती कहलाता
हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता
सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाथा।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
सृष्ट‍ि रूप तुही जननी शिव संग रंगराता
नंदी भृंगी बीन लाही सारा मदमाता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
देवन अरज करत हम चित को लाता
गावत दे दे ताली मन में रंगराता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता
सदा सुखी रहता सुख संपत्ति पाता।
जय पार्वती माता मैया जय पार्वती माता।

सभी महिलाएं मिलकर तीज के गीतों पर करती हैं डांस।

सभी महिलाएं मिलकर तीज के गीतों पर करती हैं डांस।

यूं तो तीज के कई लोक गीत है, लेकिन सबसे लोकप्रिय गीतों में से एक है-
झुला झूल रही सब सखियां, आई हरयाली तीज आज
राधा संग में झूले कान्हा झूमे अब तो सारा बाग
झुला झूल रही सब सखियां, आई हरयाली तीज आज
नैन भर के रस का प्याला देखे श्यामा को नंद लाला
घन बरसे उमड़ उमड़ के देखों नृत्य करे बृज बाला
छमछम करती ये पायलियां, खोले मन के सारे राज
झुला झूल रही सब सखियां, आई हरयाली तीज आज

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