तेजी से बढ़ रहे हैं समलैंगिक रिश्ते:अमेरिका में 30 सालों में 3 गुना बढ़े बाइसेक्शुअल, भारत में भी यही स्थिति
स्त्री-पुरुष संबंध, शादी और रोमांस के बारे में तो हम जानते ही हैं। लेकिन 21वीं सदी में रिश्ते का दायरा ‘स्त्री-पुरुष संबंध’ से कहीं आगे निकल रहा है। वैसे तो सोसाइटी में समलैंगिक रिश्ते पहले भी मौजूद रहे हैं। लेकिन हाल के वर्षों में लोग खुलकर सामने आने लगे हैं।
हालिया रिपोर्ट अमेरिका से है। जहां एक नई स्टडी में पाया गया कि 1990 के बाद से बाइसेक्शुअल रिश्ते 3 गुना बढ़ गए हैं। बाइसेक्शुअल यानी ऐसे लोग जिनका यौन आकर्षण लड़का और लड़की दोनों की ओर हो सकता है। बाइसेक्शुअल लोग दोनों जेंडर के शख्स के प्रति आकर्षित हो सकते हैं और उन्हें पार्टनर के रूप में स्वीकार कर सकते हैं।
भारत की भी स्थिति अलग नहीं है। यहां अलग-अलग रिपोर्ट में समलैंगिकों की संख्या 5 करोड़ से लेकर 20 करोड़ तक बताई जाती है। पिछले दिनों समलैंगिक शादियों को मान्यता देने संबंधी सुनवाई की भी खूब चर्चा हुई थी।
आज रिलेशनशिप कॉलम में हम रिश्ते के इस नए दायरे की बात करेंगे और जानेंगे कि अलग-अलग देशों के कानून की इस पर क्या राय है। साथ ही यह भी जानेंगे कि क्या समलैंगिकता अप्राकृतिक है या फिर ऐसा चलन इंसानों के अलावा दूसरे जीवों में भी है।
सेक्शुअल ओरिएंटेशन और रिश्ते के 4 आयाम
जेंडर और सेक्सुअलिटी के आधार पर बात करें तो रिश्ते मुख्य रूप से 4 तरह के हो सकते हैं-
- हेट्रोसेक्शुअल- मेल और फीमेल के बीच का संबंध। दुनिया में सबसे ज्यादा इसी तरह के रिश्ते बनते हैं।
- होमोसेक्शुअल- सेम जेंडर के बीच बना संबंध। मेल-मेल या फिर फीमेल-फीमेल का रिश्ता।
- बाइसेक्शुअल- दोनों जेंडर(मेल-फीमेल) के प्रति आकर्षण।
- असेक्शुअल- किसी भी जेंडर के प्रति किसी तरह का सेक्शुअल ओरिएंटेशन नहीं।
देश में समलैंगिकों की संख्या पर एक राय नहीं
‘LGBT+ Pride 2021 ग्लोबल’ सर्वे की मानें तो देश के 3% लोग खुद को गे या लेस्बियन मानते हैं। इसके अलावा 09% लोग ऐसे हैं, जो पार्टनर के रूप में लड़का या लड़की किसी को भी चुन सकते हैं। यानी कि वे बाइसेक्शुअल हैं।
जबकि 02% लोग असेक्सुअल हैं। यानी उनमें किसी तरह का सेक्शुअल ओरिएंटेशन नहीं है।
इस आंकड़े की मानें तो कुल मिलाकर देश के 14% यानी लगभग 20 करोड़ लोग किसी न किसी रूप में इससे संबंध रखते हैं।
हालांकि ये आंकड़े आधिकारिक नहीं हैं और इन पर सवाल भी उठते रहे हैं। अलग-अलग संस्थाओं के सर्व में भारत में समलैंगिकों की संख्या 5 करोड़ से लेकर 20 करोड़ तक बताई जाती है।
साल 2011 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया था कि देश में 25 लाख पुरुष समलैंगिक हैं। LGBT एक्टिविस्ट समूह इस संख्या को हकीकत से काफी कम बताते हैं।
3% से 9% हुई बाइसेक्शुअल लोगों की आबादी
‘द जर्नल ऑफ सेक्स रिसर्च’ में छपी इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 1990 से 1995 के बीच हुए सर्वे में अमेरिका में बाइसेक्शुअल लोगों की संख्या 3.1% थी। जबकि यह आंकड़ा वर्तमान में 9.3% तक पहुंच गया है।
रिसर्च की को-ऑर्थर के मुताबिक काफी बाइसेक्शुअल्स में काफी संख्या वैसे लोगों की भी है, जो अपने सेक्शुअल बिहेवियर को एक्सप्लोर कर रहे हैं।
क्या इंसानों के अलावा दूसरे जीवों में भी होती है समलैंगिकता
समलैंगिकों के अधिकार के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट अली फराज बताते हैं कि आमतौर पर लोग ऐसे संबंधों को ‘अप्राकृतिक’ कह देते हैं। लेकिन साइंस की कई रिसर्च में यह साबित हुआ है कि समलैंगिकता न तो कई डिसऑर्डर है और न ही यह प्रकृति के खिलाफ है।
शेर, लकड़बग्घा, जिराफ, बंदर, भालू जैसे जानवरों और पेंग्विन, अबाबील, सारस जैसी चिड़िया और छिपकली, मक्खी, ततैया जैसे कीट-पतंगों में भी समलैंगिकता देखने को मिलती है। जिराफ के 10 में से 9 जोड़े समलैंगिक होते हैं। इन सभी को ‘अप्राकृतिक’ नहीं कहा जा सकता।
समलैंगिकता की 2 वजहें- हार्मोन असंतुलन और साइकोलॉजिकल
आमतौर पर समलैंगिकता के दो कारण होते हैं। पहला कारण है- हॉर्मोन असंतुलन। इस स्थिति में शख्स अपने जेंडर से विपरीत व्यवहार करता दिखता है और उसे ठीक करने की कोशिश में ‘हॉर्मोन थेरेपी’ का सहारा लिया जाता है।
जबकि समलैंगिकता की दूसरी स्थिति मानसिक होती है। ऐसे में काउंसिलिंग के जरिए उसे सुधारने की कोशिश की जाती है।
हालांकि साइकोकॉजी के प्रोफेसर डॉ. रमा शंकर यादव बताते हैं कि समलैंगिकता बीमारी नहीं है। ऐसे में साइकोलॉजिकल थेरेपी से इसके इलाज का दावा भी नहीं किया जा सकता है। हां, अगर फैमिली में कोई समलैंगिक हो तो उसे स्वीकारने के लिए बाकी लोग काउंसिलिंग का सहारा ले सकते हैं।
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