देवबंद में जमीयत कॉन्फ्रेंस : मदनी बोले- डराने की कोशिश नहीं कर रहे, मुल्क हमारा है; हमारा मजहब पसंद नहीं तो कहीं चले जाओ
देवबंद में चल रहे जमीयत सम्मेलन के दूसरे दिन महमूद असद मदनी ने मुसलमानों से सब्र और हौसला रखने की अपील की। उन्होंने कहा, “UP में सरकार आने के तीन दिनों बाद देवबंद से एक लड़का रेप केस में जेल गया। हम इसी देवबंद में स्काउट एंड गाइड के साथ मिलकर एक सेंटर बनाना चाहते हैं, जिसे दहशतगर्दी का अड्डा बताया जा रहा है। 6 दिन पहले हापुड़ में बन रही जमीयत की बिल्डिंग को बिना नोटिस सील कर दिया गया। हम यह बताना चाहते हैं कि कितना कुछ सहने के बाद भी हम चुप हैं। पिछले 10 साल से हम सब्र ही कर रहे हैं। फिर भी हमें परेशान होने की जरूरत नहीं है।”महमूद असद मदनी ने कहा, “अगर वो अखंडता की बात करें तो वो धर्म है, अगर हम बात करें तो वो तंज माना जाता है। अगर इस मुल्क के लिए हमारी जान जाएगी तो यह हमारा सौभाग्य होगा। हम डराने की कोशिश नहीं कर रहे, लेकिन मुल्क हमारा है यह मुल्क हमारा है, हम इसके शहरी हैं। अगर तुमको हमारा मजहब बर्दाश्त नहीं है तो कहीं और चले जाओ। वो बार-बार पाकिस्तान जाने को कहते हैं। हमें पाकिस्तान जाने का मौका मिला था, जिसे हमने रिजेक्ट कर दिया था।”वाराणसी से आए हाफिज उबेदुल्ला ने ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा ईदगाह पर प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा, “वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की शाही ईदगाह और दीगर मस्जिदों के खिलाफ इस समय ऐसे अभियान जारी हैं, जिससे देश में अमन शांति को नुकसान पहुंचा है। जमीयत उलमा-ए-हिंद सत्ता में बैठे लोगों को बता देना चाहती है कि इतिहास के मतभेदों को बार-बार जीवित करना देश में शांति और सद्भाव के लिए हरगिज उचित नहीं है।”

उन्होंने कहा, “खुद सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद फैसले में पूजा स्थल कानून 1991 एक्ट 42 को संविधान के मूल ढांचे की असली आत्मा बताया है। इसमें यह संदेश मौजूद है कि सरकार, राजनीतिक दल और किसी धार्मिक वर्ग को इस तरह के मामलों में अतीत के गड़े मुरदों को उखाड़ने से बचना चाहिए। तभी संविधान का अनुपालन करने की शपथों और वचनों का पालन होगा, नहीं तो यह संविधान के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात होगा।”
मौलाना नोमानी बोले- मुसलमान अपने मजहबी लॉ में बदलाव मंजूर नहीं करेंगे
देवबंद में जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय सम्मेलन का आज आखिरी दिन है। प्रोफेसर मौलाना नोमानी शाहजहांपुरी ने कॉमन सिविल कोड पर प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा, “मुस्लिम पर्सनल लॉ को खत्म करने के लिए सरकार कॉमन सिविल कोड लाना चाहती है, जो बर्दाश्त नहीं होगा। शादी, तलाक जैसी चीजें मजहबी हिस्सा हैं। मुल्क के हर शहरी को आजादी का हक हासिल है। मुसलमान अपने मजहबी लॉ में कोई बदलाव मंजूर नहीं करेंगे। अगर सरकार ऐसा करती है तो हम हर तरह के विरोध को मजबूर होंगे।”

ज्ञानवापी और मथुरा पर चर्चा
सम्मेलन में 25 राज्यों से जमीयत के 1500 प्रमुख मेंबर आए हैं। वाराणसी के ज्ञानवापी, मथुरा के शाही ईदगाह-श्रीकृष्ण जन्मभूमि, कुतुबमीनार जैसे मसलों पर चर्चा चल रही है। आज के सम्मेलन पर देशभर के मुसलमानों समेत तमाम हिंदूवादी दलों की भी निगाहें टिकी हैं। इस सम्मेलन में देशभर के करीब तीन हजार मुसलमान शामिल हुए हैं।
जमीयत का 13 करोड़ का बजट पास
कांफ्रेंस की शुरुआत में जमीयत उलमा–ए–हिंद का सत्र 2022–23 का बजट पेश किया गया। इस सत्र का बजट 13 करोड़ 35 लाख 70 हजार रुपए का रखा गया है। इसमें दीनी तालीम और स्कॉलरशिप पर एक–एक करोड़ रुपए खर्च होंगे। डेढ़ करोड़ रुपए जमीयत फंड रिलीफ के लिए आरक्षित किए गए हैं। पिछले सत्र में करीब 8 करोड़ रुपए का बजट था, जो इस बार करीब 5 करोड़ रुपए बढ़ गया है। जमीयत की नेशनल कांफ्रेंस में इस बजट प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है।
पहले दिन तीन प्रस्ताव पारित हुए
देश में नफरत के बढ़ते दुष्प्रचार को रोकने के उपायों पर विचार करना होगा। प्रतिक्रियावादी और भावनात्मक रवैया अपनाने के बजाय एकजुट होकर चरमपंथी फासीवादी ताकतों का मुकाबला करें।
इस्लामोफोबिया की रोकथाम के विषय में प्रस्ताव। हर साल 15 मार्च को ‘इस्लामोफोबिया की रोकथाम’ का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाएगा। यहां हर प्रकार के नक्सलवाद और धार्मिक भेदभाव को मिटाने का संकल्प लिया जाएगा।
सद्भावना मंच को मजबूत किया जाए। इसके तहत जमीयत देशभर में एक हजार से ज्यादा जगहों पर “सद्भावना संसद” आयोजित करेगी। इसमें सभी धर्म के प्रभावशाली लोग बुलाए जाएंगे। सद्भावना संसद का मकसद धर्म संसद के घृणास्पद व्यक्तियों और समूहों के प्रभाव को खत्म करना होगा।
आज इन मुद्दों पर चर्चा…
ज्ञानवापी और मथुरा ईदगाह
मुल्क के कानून और कॉमन सिविल कोड
इस्लामी तालीम
हिंदी जुबान और इलाकाई भाषा को आगे बढ़ाना

जमीयत की मांग
2017 में प्रकाशित विधि आयोग की 267वीं रिपोर्ट के अनुसार, हिंसा भड़काने वालों और सभी अल्पसंख्यकों को विशेष रूप से दंडित करने के लिए एक अलग कानून बनाया जाना चाहिए। विशेष रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यकों को सामाजिक और आर्थिक रूप से अलग-थलग करने के प्रयासों को विफल किया जाना चाहिए।

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