धारावी में क्राइम-ड्रग्स की जगह हिप हॉप का कल्चर:झुग्गियों में रहने वाले बच्चे ट्रेनिंग ले रहे, यूट्यूब पर मिलियंस में व्यूज
मुंबई
‘धारावी के लोगों के लिए हिप हॉप उनका कल्चर है। ये यहां की लाइफस्टाइल है। दिल्ली का हिप हॉप मतलब गाड़ी, पैसा और अमीरी, लेकिन मुंबई का हिप हॉप दिल खोलकर रख देता है।’
18 साल के रैपर ओजी अंकित हार्ड लड़के ग्रुप का हिस्सा हैं। मुंबई की स्लम बस्ती धारावी में रहते हैं। धारावी, यानी एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती। धारावी कभी अंडरवर्ल्ड का अड्डा होती थी। लोग यहां आने से डरते थे। फिर धारावी की पहचान दूर तक फैली झुग्गियां, इनमें चलते छोटे-बड़े कारखाने बन गए।
इसी धारावी को अंडरग्राउंड हिप हॉप से नई पहचान मिल गई है। गलियों में हिप हॉप आर्टिस्ट तैयार हो रहे हैं। स्लम गॉड, ऑउटलॉज, धारावी रॉकर्स और एम-टाउन जैसे हिप हॉप ग्रुप सोशल मीडिया पर फेमस भी हो चुके हैं। यूट्यूब पर इनके वीडियोज को मिलियंस में व्यूज मिल रहे हैं।
दैनिक भास्कर ने इस कल्चर को समझने के लिए धारावी में एक ग्रुप ‘हार्ड लड़के’ से उनकी कहानी सुनी। कुछ और हिप हॉप आर्टिस्टों के साथ वक्त बिताया।
ये हार्ड लड़के ग्रुप के मेंबर हैं। सबसे बाएं योगेश, उनके बगल में नूर हसन और अंकित हैं।
धारावी की झुग्गी बस्तियां करीब 600 एकड़ में फैली हैं। यहां चमड़े की चीजें बनाने वाली फैक्ट्रियां, कबाड़ की दुकानें और कपड़े के कारखाने हैं। धारावी की गलियां इतनी पतली और संकरी हैं कि एक बार में एक ही आदमी निकल सकता है।
लोग 10X10 के छोटे-छोटे कमरों में रहते हैं, जिनका किराया 4 हजार से 6 हजार रुपए होता है। परिवार में लोग ज्यादा हों तो उसी कमरे में लकड़ी की दीवार बनाकर एक और कमरा बना लेते हैं। इतनी ही जगह में किचन भी होता है।
धारावी के ज्यादातर परिवार छोटे-छोटे कमरों में रह रहे हैं। उनकी यही तंगहाली, दुख और सुविधाओं की कमी यहां के रैपर्स के गानों में दिखती है।
चार आर्टिस्ट मिले, और बन गया हार्ड लड़के ग्रुप
धारावी के चार लड़के कृष्णा, अंकित, नूर और योगेश शुरुआत में अकेले गाने बनाते थे। 2023 में चारों ने मिलकर ‘हार्ड लड़के’ ग्रुप बनाया। अब चारों मिलकर रैप सॉन्ग लिखते हैं और उसे एक स्टूडियो में रिकॉर्ड करते हैं।
योगेश देवरा 22 साल से धारावी में एक कमरे के मकान में रह रहे हैं। उनका परिवार आंध्रप्रदेश से मुंबई आया था और चार पीढ़ियों से धारावी में रह रहा है। परिवार में 9 मेंबर हैं, सभी एक कमरे में रहते हैं।
2019 में रैपर्स पर बनी रणवीर सिंह की फिल्म ‘गली बॉय’ से योगेश देवरा की जिंदगी बदल गई। योगेश अब मशहूर हिप हॉप आर्टिस्ट हैं। उनका स्टेज नाम ‘लिल वाइट’ है। लिल वाइट बड़े ब्रांड्स के ऐड में भी काम कर चुके हैं।
योगेश बताते हैं, ‘2014 में नीलकमल में एक शो था। हम सभी दोस्त उसे देखने गए थे। वो लोग रैप कर रहे थे। मुझे समझ तो नहीं आया कि क्या कर रहे हैं, लेकिन सुनने में अच्छा लग रहा था। लोग गाने एन्जॉय कर रहे थे।’
‘एक आर्टिस्ट की वजह से पब्लिक में इतना जोश देखकर मुझे भी रैप सीखने का मन किया। 2016 में मैंने ‘अनिमीस’ नाम का एक ग्रुप जॉइन किया था। हमारे ग्रुप ने एक गाना बनाया, जो लोगों को बहुत पसंद आया। तब मेरा इंट्रेस्ट बढ़ने लगा। मैं दिन-रात गाने लिखता था। मैंने एक और ग्रुप एम-टाउन के साथ काम किया, लेकिन वो ग्रुप टूट गया। इसके बाद मैंने 2023 में हार्ड लड़के ग्रुप जॉइन किया।’
ग्रुप टूटने के बाद योगेश अकेले गाने बनाना चाहते थे। तभी उनकी मुलाकात ‘हार्ड लड़के’ ग्रुप के सदस्य कृष्णा से हुई। कृष्णा ने योगेश को अपने ग्रुप में शामिल कर लिया। 10 साल से रैप कर रहे योगेश पर अब घर की जिम्मेदारियां आ गई हैं। सिर्फ हिप हॉप से घर चला पाना मुश्किल है।
पहले तीन-चार ही ग्रुप थे, ‘गली बॉय’ मूवी के बाद लोग इसे आर्ट मानने लगे
योगेश बताते हैं, ‘फिल्म गली बॉय ने धारावी के लड़कों में जोश भर दिया। पहले सिर्फ तीन-चार ग्रुप थे। धारावी में अंडरग्राउंड हिप हॉप हुआ करता था। कुछ ही ग्रुप इसे करते थे। गली बॉय आने के बाद से मुंबई में हिप हॉप की आंधी आ गई। सब लोग इसे आर्ट की तरह देखने लगे। परिवार और दोस्त भी हमारे काम को सम्मान देने लगे।’
योगेश बताते हैं, ‘अंडरग्राउंड रैपिंग में हम सरकार से सवाल करते हैं। हम अपनी जिंदगी दुनिया के सामने रखते हैं। धारावी की दिक्कतें बताते हैं। ये रैप क्रिटिकल होता है। हम बैठकर टॉपिक लिखते हैं। ये टॉपिक ट्रेंडिंग में होते हैं। किसी भी मुद्दे पर लिखने से पहले बहुत रिसर्च करनी होती है।’
‘अंडरग्राउंड’ रैप कल्चर, यानी बस्ती से निकले अनजान आर्टिस्ट
धारावी में बच्चों से लेकर बड़े लड़के तक हिप हॉप आर्टिस्ट बनने की तैयारी कर रहे हैं। डोपाडेलिक्स, हार्ड लड़के, 7 बंटाई, एम-टाउन ब्रेकर्स, अनिमीस, अल्ताफ, ओल्ड ब्रदर्स, डीडीपी या धारावी ड्रीम प्रोजेक्ट और डॉग्स कुछ नाम है, जो पूरे धारावी में मशहूर हैं।
धारावी अपने अंडरग्राउंड रैप कल्चर के लिए जाना जाता है। हिपहॉप सिर्फ रैप नहीं होता। धारावी के आर्टिस्टों के लिए हिपहॉप उनके जीने का तरीका है। हिपहॉप के 5 एलिमेंट हैं- रैप/एमसी, बीट बॉक्सिंग, ग्राफिटी, DJ इंग, और बी-बोइंग।
नूर हसन पिछले 9 साल से रैप कर रहे हैं। उन्होंने पहली बार नैजी का आफत गाना सुना था। 2017 में उनका गाना ‘कल का सुपरस्टार’ काफी वायरल हुआ था। यूट्यूब पर इस गाने को 5 मिलियन व्यूज मिल चुके हैं।
ये गाना रिकॉर्ड करने के लिए हिप हॉप आर्टिस्ट डिवाइन ने उन्हें रिकॉर्डिंग के लिए स्टूडियो बुक करके दिया था। वीडियो रिकॉर्ड करने के लिए हसन ने अपना मोबाइल 2 हजार रुपए में बेच दिया था।
नूर हसन बताते हैं, ‘डिवाइन, नेजी और एमीवे जैसे बड़े रैपर्स मेनस्ट्रीम हैं। डोपाडेलिक्स और हार्ड लड़के जैसे ग्रुप्स अंडरग्राउंड कहे जाते हैं। इसका मतलब है बस्ती से निकला आर्टिस्ट। उनके पास कोई अनुभव या कॉन्टैक्ट्स नहीं होते। अंडरग्राउंड आर्टिस्ट जीरो से हीरो बनकर आ रहे हैं।’
नूर हसन 14 साल की उम्र से रैप सॉन्ग गा रहे हैं। अब उनकी उम्र 23 साल है। नूर हार्ड लड़के ग्रुप के मेंबर हैं।
धारावी का स्ट्रगल और बीट बॉक्सिंग
योगेश और नूर जैसी ही कहानी विग्नेश की है। धारावी की एक तंग गली के आखिरी छोर पर विग्नेश अपने जुड़वां भाई, बहन और मम्मी-पापा के साथ रहते हैं। खोली को बीच से डिवाइड करके दो मंजिलें बना ली हैं, ताकि 6 लोगों के परिवार के रहने लायक जगह हो जाए। इसी में किचन भी बना है।
ये बीट बॉक्सिंग आर्टिस्ट विग्नेश का घर है। नीचे एक कमरा है, उसी के ऊपर लकड़ी की छत बनाकर दूसरा कमरा बना लिया है। इसी में उनका पूरा परिवार रहता है।
विग्नेश अभी 12वीं क्लास में हैं। वे कहते हैं, ‘कुछ बच्चों को इंजीनियर, डॉक्टर, बैंकर, सीए बनना है। कुछ को IAS बनना है, लेकिन हम कुछ हटकर करना चाहते हैं। धारावी में जिंदगी बहुत उतार-चढ़ाव के साथ जीनी पड़ती है। सोने की दिक्कत होती है। घर पर पानी नहीं आता। टॉयलेट नहीं है। बारिश के दिनों में घर में पानी भर जाता है।’
‘मैंने कई बार पढ़ाई के बारे में सोचकर हिप हॉप से ब्रेक लिया। फिर लॉकडाउन आ गया। उसके बाद मैंने कमबैक किया।’
विग्नेश की मां अनीता दूसरों के घरों में काम करती है। पिता BMC में काम करते हैं। विग्नेश के काम के बारे में विनीता कहती हैं, ‘विग्नेश को जो करना है, उसकी मर्जी है। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। मैं और विग्नेश के पापा पढ़े-लिखे नहीं हैं। विग्नेश का बड़ा भाई भी सिर्फ 10 वीं तक पढ़ा है।’
‘मैं चाहती हूं विग्नेश पढ़े और अच्छी नौकरी करे। हालांकि अभी उसकी उम्र कम है। उसे जो सीखने का शौक है, मैं सपोर्ट करती हूं।’
धारावी का नाम सुनकर प्रोड्यूसर रिजेक्ट कर देते हैं
18 साल के आर्यन पांडेय बीट बॉक्सिंग करते हैं। उनका जन्म धारावी में हुआ है। वे एक कमरे के घर में मम्मी-पापा और बड़े भाई के साथ रहते हैं। आर्यन कहते हैं, ‘धारावी का नाम सुनते ही प्रोड्यूसर गलत धारणा बना लेते हैं। हम किसी से मिलने जाते हैं, तो वे बोलते हैं कि ये क्या पहना है। तुम कैसे दिखते हो। धारावी सुनकर ही लोगों को लगने लगता है कि नशा करता होगा, क्राइम करता होगा।’
2015 में फिल्म गली बॉय की शूटिंग धारावी में हो रही थी। उस दौरान कुछ रैपर्स के बीच सेशन रखा गया था। आर्यन के भाई उसे वहां लेकर गए थे। वहां रैपर्स के अलावा बीट बॉक्सर भी थे। आर्यन के भाई ने उसे बीट बॉक्सिंग करने का सुझाव दिया। आर्यन 7 साल से बीट बॉक्सिंग कर रहे हैं। उन्होंने धारावी ड्रीम प्रोजेक्ट स्कूल में ट्रेनिंग ली है। इस बीच कई ऐड में भी काम किया।
हिप हॉप ने क्राइम से बचाया, क्योंकि इसके लिए डिग्री नहीं लगती
18 साल के ओजी अंकित रैपर हैं। 8 साल से हिप हॉप कर रहे हैं। अंकित के पिता इलेक्ट्रिशियन और मां एक क्लिनिक में रिसेप्शनिस्ट हैं। अंकित परिवार के पहले मेंबर हैं, जो हिप हॉप आर्टिस्ट हैं।
अंकित बताते हैं, ‘पहले धारावी को क्राइम कैपिटल कहा जाता था। क्रिमिनल और ड्रग्स धारावी की पहचान थे। अब हालात बदल रहे हैं। डिवाइन के लिरिक्स हैं, शिक्षक से पहले ठग्स देखा, टिफिन बॉक्स से पहले मैंने ड्रग्स देखा। ये धारावी की हालत बताते हैं। यहां हर बच्चा इससे गुजरता है। हम अपने रैप के जरिए दुनिया को बताने की कोशिश करते हैं कि धारावी में क्या हो रहा है।’
अंकित मानते हैं कि हिप हॉप धारावी के लोगों के लिए ड्रग्स और क्राइम की दुनिया से बाहर निकलने का जरिया है। वे कहते हैं, ‘पहले यहां के बच्चे बात करते थे किसने किसको मारा, किसको किसने ड्रग्स बेचा। आज इसी धारावी के बच्चे रैप, बार्स, जैमिंग सेशन, साइफर की बातें करते हैं। अगर आप धारावी में घूमेंगे तो आपको दीवार पर बड़े-बड़े ग्राफिटी दिखाई देंगे।’
‘अपराधियों को न सरकार नौकरी देती है और न प्राइवेट में कोई नौकरी पर रखता है। कोई बिजनेस के लिए लोन नहीं देता। ऐसे में लोग क्राइम करते हैं। हिप हॉप करने के लिए डिग्री की जरूरत नहीं। आपके बैकग्राउंड से फर्क नहीं पड़ता। आप कितना अच्छा लिखते हैं, कितना अच्छा डांस करते हैं, कितना अच्छा डीजे बजाते हैं, आपकी कला और मेहनत पर आपको जज किया जाता है।’
धारावी में छोटे-छोटे बच्चे भी हिप हॉप की ट्रेनिंग ले रहे हैं। इन्हें सिखाने के लिए धारावी ड्रीम प्रोजेक्ट जैसे स्कूल भी खुल गए हैं।
धारावी ड्रीम प्रोजेक्ट, जहां मुफ्त में हिप हॉप की ट्रेनिंग ले रहे बच्चे
डॉली रितेश्वर ने 2013 में एक कमरे में हिप हॉप स्कूल शुरू किया था। इसे ‘धारावी ड्रीम प्रोजेक्ट’, आफ्टर स्कूल ऑफ हिप हॉप या टीडीपी के नाम से जाना जाता है। ये स्कूल उन आर्टिस्ट के लिए खोला गया, जिनके पास सुविधाओं और संसाधन की कमी होती है। आज यहां चार क्लास रूम हैं जहां रैप, बीट बॉक्सिंग और डांस सिखाया जाता है। हर साल 100 से ज्यादा बच्चों को मुफ्त में ट्रेनिंग दी जाती है।
डॉली कहती हैं ‘अब हमारे यहां बहुत छोटी उम्र जैसे 8 या 10 साल के बच्चे हिप हॉप सीखने आते हैं। हम ट्रेनिंग के साथ उन्हें बताते हैं कि उन्हें ड्रग्स से दूर रहना चाहिए। ड्रग्स लेने से कोई आर्टिस्ट नहीं बनता। ट्रेनिंग करने से क्रिएटिविटी बढ़ती है। कुछ लोगों को हमने रिहैबिलिटेशन सेंटर भी भेजा, लेकिन अब भी बहुत मेहनत करना बाकी है।’
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