पति कहता- तुम चरित्रहीन हो:पढ़ाई छुड़वाई, बाथरूम में CCTV लगवाया; चाकू से अपना नाम मेरे हाथों पर लिखना चाहा
दोपहर के करीब बारह बजे हैं। भोपाल के आसमां में काले घने बादल छाए हैं। मैं रक्षा से मिलने पहुंची हूं। दूर से मुस्कुराती रक्षा मेरे पास आकर बैठती हैं।
क्या हुआ था आपके साथ? बस ये पूछने भर की देरी थी। रक्षा बोल पड़ीं-
‘पति ने पहले मेरा खुद ही कॉलेज में एडमिशन करवाया। फिर पढ़ाई छुड़वा दी। किसी मर्द से बात करती तो कहने लगता कि ये तेरा खसम है, जो उससे बात कर रही है। एक साल तक कैद रखा। पूरे घर में कैमरे लगवा दिए। बाथरूम में भी। धमकी देता कि अगर कहीं शिकायत की तो तेरा वीडियो वायरल कर दूंगा।’
ये रक्षा हैं। दरवाजे का वो टूटा हिस्सा दिखा रही हैं, जब पति ने उन्हें धक्का दिया और उनके गिरने से टूट गया था।
बेटी पढ़ाएं, बीबी नहीं, पति पढ़इले बीबी धोखा दे गईले!
जब से SDM ज्योति मौर्या का मामला आया तब से इस तरह की लाइनें सोशल मीडिया पर दिख रही हैं। खबरें भी आ रही थीं कि पतियों ने पत्नियों की पढ़ाई छुड़वा दी, यह सोचकर कि वो भी उन्हें धोखा न दे दें।
इस बार की ब्लैकबोर्ड सीरीज की कहानी उन महिलाओं पर जिनके पति ने उनकी पढ़ाई-लिखाई इसलिए बंद करा दी क्योंकि उन्हें लगता है कि पत्नी पढ़ गईं तो उन्हें छोड़ देगी। पति के शक की वजह से इन महिलाओं की जिंदगी बदतर हो गई।
मैं मध्यप्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में ऐसी ही महिलाओं की तलाश में निकली। मैं यह भी जानना चाहती थी कि मेरे जन्मस्थल उत्तरप्रदेश से यहां की महिलाओं की स्थिति कितनी अलग है।
भोपाल में ही मेरी मुलाकात 32 साल की रक्षा से हुई। 12वीं में पढ़ती थीं रक्षा, जब उनकी शादी हो गई। कमल राठौर जब उनसे मिलने आए तब रक्षा ने साफ कह दिया था कि आगे की पढ़ाई जारी रखूंगी। अगर यह शर्त मंजूर हो तभी शादी करना।
कमल फौरन शर्त मान गए और रक्षा उनकी दुल्हनिया बन गई।
रक्षा कहती हैं, ‘2010 में मेरी शादी हुई थी। मुझे भरोसा था कि पति आगे की पढ़ाई और जॉब के लिए मना नहीं करेंगे। वो खुद भी पढ़े-लिखे हैं। एक मल्टी नेशनल कंपनी में जॉब करते थे। मेरा भरोसा उन्होंने टूटने भी नहीं दिया। शादी के पहले साल में ही उन्होंने ग्रेजुएशन करने के लिए कॉलेज में एडमिशन दिला दिया। मैं भी खुशी-खुशी घर का काम, कॉलेज की पढ़ाई सब मैनेज करने लगी।’
मैंने बीच में ही टोका- मतलब पति आपके समझदार थे। जो कहा वो सब पूरा किया।
रक्षा कहती हैं,’नहीं मैडम जी। आप जो कह रही हैं, वैसा बिल्कुल नहीं था।
मुश्किल से मैं फर्स्ट ईयर की पढ़ाई पूरी कर पाई थी। वो मुझ पर शक करने लगे। उन्हें लगने लगा कि पढ़ाई के बहाने मैं घूमती-फिरती हूं। वो हर वक्त मुझ पर नजर रखने लगे।
एक दिन तो उन्होंने सारी हदें पार कर दी। मेरे चरित्र पर ही सवाल उठा दिया। उस दिन मैं बहुत रोई, उन्हें समझाया भी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उनका शक दिन पर दिन गहराता चला गया। भाई से भी फोन पर बात करना दुश्वार हो गया।’
एक सांस में रक्षा अपनी सारी बातें कह गईं। उनकी आंखों में आंसू थे और बाहर बारिश शुरू हो गई थी।
रक्षा अपने शरीर पर कुछ निशान दिखाती हैं। सारे निशान उनके पति के नाखूनों के हैं। उसके हाथ में जो आता उसी से मार देता। शक के चक्कर में एक बार तो सिर पर डंडे से इतना जोर से मारा कि एक हफ्ते तक मेरी याद्दाश्त ही धुंधली हो गई थी।
पेट पर भी जानबूझकर लात से मारता, ताकि मेरे अंदरूनी हिस्से में चोट लगे। चाकू-छुरी जो हाथ में आता चला देता।
रक्षा को पढ़ना था, जीवन में कुछ करना था। खुद कार चलाकर दफ्तर जाना था, लेकिन पति के शक की बीमारी ने उनके जीवन को ही बदल दिया। सपनों को पीछे की तरफ धकेल दिया।
रक्षा मुझे बताती हैं कि दिन तो फिर भी कट जाता था। उनके ऑफिस से आने के बाद क्या होगा यह सोचकर रोज वो कांप जाती थींं। कहती हैं, ‘वो अक्सर कहता था कि पढ़-लिख कर क्या करेगी। मैं कमा कर ला रहा हूं। तुम बस घर में रहकर मेरी सेवा करो।
शाम के 5-6 बजते ही मैं डरने लगती थी। सोचती थी कि अब वो आएगा। कहीं चीनी उसे कम लगी तो मुझ पर गर्म चाय फेंकेगा। नमक कम हो गया तो बच्चों के सामने खाना फेंक देगा और सोते वक्त जबरदस्ती करेगा।’
आपके साथ जो कुछ भी हो रहा था, आपने अपने माता-पिता को नहीं बताया?
मेरे सवाल के जवाब में रक्षा ने कैमरा बंद करने को कहा। वो अपने माता-पिता के बारे में कैमरे के सामने बोलने को बिल्कुल तैयार नहीं हुईं। आखिरकार मैंने कैमरा बंद किया। उसके बाद वो बोलीं, ‘मेरा माता-पिता के साथ कोई रिश्ता नहीं है। आप यह समझ सकती हैं कि मैंने खुद ही रिश्ता तोड़ दिया है। जिंदगी की लड़ाई अब अकेले ही लड़नी है।’
मैंने पूछा- ऐसा क्यों?
‘जब मैंने पहली बार उन्हें अपना हाल बताया। पुलिस में शिकायत की बात कही तो पापा ने मुझसे कहा कि यहां तेरी मां भी तो चुपचाप रहती है। हमारे परिवार से कभी कोई थाने, कचहरी नहीं गया। तुम भी चुप रहो। हर लड़की को बर्दाश्त करना सीखना चाहिए।’
रक्षा मुस्कुरा देती हैं। कहती हैं कि मां-बाप जैसे भी हैं उनके बारे में दुनिया के सामने गलत नहीं कह सकती।
रक्षा आज अपने पति को छोड़कर अलग रह रही हैं। बच्चे भी उनके साथ रह रहे हैं। घरेलू हिंसा का केस चल रहा है।
मुझसे मिलने के बाद रक्षा कमरे से बाहर जा रही थीं। अब जाते हुए वो एक ऐसी औरत हैं, जिसे अपने सपनों को पूरा करने में 10 साल की देरी हो गई है। देर ही सही वो अब अपने मनचाहे और आजाद रास्ते पर थी।
रक्षा से मिलने के बाद मैं ममता से मिलती हूं। ममता जिस NGO में एक दिन अपनी फरियाद लेकर आईं थीं, वहीं अब दूसरी औरतों की फरियाद सुनती हैं। ममता आकर मेरे सामने बैठती हैं। उनकी बड़ी-बड़ी आंखों की गहराई में छिपी उदासी कोई भी देख सकता है।
पता नहीं क्यों, मैंने सीधे उनसे यह सवाल कर दिया कि बड़ा होकर क्या बनेंगी, कभी सोचा था आपने इस बारे में?
ममता कहती हैं, ‘मुझे पुलिसवाली बनना था। खूब मन लगाकर पढ़ती थी। इस बीच पापा गुजर गए। 2005 में घरवालों ने शादी कर दी।’
ये ममता हैं। सास ने कहा था, शादी के बाद पढ़ सकती हो। पति ने इजाजत नहीं दी, यह कहकर कि बाहर गई तो दूसरे आदमियों से बात करोगी।
इसका मतलब पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई आपकी?
ममता कहने लगी, ‘सगाई के दिन खुद सास ने आकर वादा किया था कि तुमको आगे पढ़ाएंगे। जैसे ही शादी के बाद मेरे घर का पता बदला, मेरी दुनिया ही बदल गई। लगा जैसे किसी ने नर्क में लाकर पटक दिया हो।
सास ने कभी आगे पढ़ाई का जिक्र नहीं किया। कॉलेज तो दूर की बात है, मैं घर के चौखट के बाहर की दुनिया भी नहीं देख पाती थी।’
क्या पति ने भी साथ नहीं दिया? मैंने पूछा
ममता ने बताया- ’शादी के कुछ दिन बाद ही पति मेरे कैरेक्टर पर शक करने लगा। कहने लगा कि पढ़ाई के लिए बाहर गई तो दूसरे आदमियों से बात करोगी। मैं मना करती तो एक दिन अपने हाथ में मेरा हाथ लिया और कलाई पर चाकू से अपना नाम लिखने लगा। मैं डर गई, रोने लगी।
वो बात-बात पर गाली देने लगा। एक दिन थप्पड़ मारा। वो दिन था जब हाथ उठा तो कभी बंद नहीं हुआ, जब तक उस घर से निकल नहीं गई।’
ममता के पति ने उसके हाथों पर अपना नाम लिखने की कोशिश की, कहा- किसी और के साथ चक्कर नहीं है तो मेरा नाम चाकू से लिखकर साबित करो।
ममता अपने शरीर पर चोट के कुछ निशान दिखाती हैं। कहती हैं, ‘पति ने ऐसे जख्म दिए कि हर रोज भुलाने की कोशिश करती हूं फिर भी भूल नहीं पाती। आप देखो, मैं कानों में झुमके पहनती थी। एक दिन मारते-मारते कान खींच दिया। झुमके को सहारा देने वाला कान का हिस्सा ही अब नहीं रहा। पेट पर भी उसने चाकू मारा था, उसके निशान भी हैं।’
ममता के 4 बच्चे हैं। तीन लड़कियां और एक लड़का। कहती हैं जब पति मेरे कैरेक्टर पर शक कर मेरा साथ अत्याचार कर रहा था तब मेरी बड़ी लड़की 15-16 साल की थी। मेरे साथ बच्चों को भी मारता था।’
आपने पूछा नहीं कि मैं आगे पढ़ना ही तो चाहती हूं, इसमें क्या गलत है?
ममता कहती हैं, ‘कैसे कहती। शुरुआत में तो कह भी पाती थी। साल दर साल उसका डर इतना बढ़ता गया कि मैं उसके सामने मुंह तक नहीं खोल पाती थी। एक रात उसने मेरा फोन छीन लिया और मेरे साथ बड़ी बेटी को मारने लगा। बेटी घर से निकली और बस स्टैंड चली गई।
वहां पुलिस वैन पेट्रोलिंग कर रही थी। अकेले उसे रोते हुए देखा तो उसे थाने लेकर गई। वहां मेरी लड़की ने पुलिस को सब बताया। लड़की जब घर वापस आई तो उसकी और मेरी दोनों की पिटाई हुई। वो कहने लगा कि तुमने लड़की को महिला थाने शिकायत करने के लिए भेजा था।
बेटी डरने वाली नहीं थी। उसने दूसरे दिन सुबह पुलिस वालों को फोन पर सारी बातें बता दीं। पति गिरफ्तार हुआ। उसके बाद मैंने घर छोड़ दिया और NGO के साथ जुड़ गई।
ममता से मिलने के बाद मेरा अगला पड़ाव भोपाल का बैरसिया था। यहां 37 साल की कला से मुलाकात हुई। कला के हालात रक्षा और ममता से थोड़े अलग हैं। पति पढ़ा-लिखा तो है, लेकिन कला अनपढ़ हैं।
ये कला हैं। पढ़ नहीं पाईं कभी, पति के शक का आलम ये है कि किसी भी मर्द से बात करने पर इनकी पिटाई हो जाती है।
कला का पति उसे घर खर्च नहीं देता था। जब भी पैसे मांगती गाली देता। रोजाना मार-पीट और किचकिच से बचने और खुद का खर्च चलाने के लिए कुक का काम करने लगी।
कला कहती हैं, ‘मैं उसकी तरह पढ़ी-लिखी नहीं थी। वो मुझे अनपढ़ होने का ताना अक्सर देता रहता है। मैंने उससे कई बार कहा कि मुझे पढ़ा दो। इस बात का वो कभी जवाब नहीं देता। मैंने सोचा घर में रहती हूं इसलिए इसे लगता है कि किसी काम की नहीं। जब कमाने लगूंगी तो उसकी भी मदद होगी और घर में पैसे के साथ शांति आएगी।
मैंने पूछा- इसका मतलब सब कुछ ठीक हो गया?
कला झट से मना करती हैं, ‘नहीं! उसने कभी काम पर जाने से तो मना नहीं किया, लेकिन बाहर किसी से भी बात करती तो कहता, क्या बात कर रही थी उससे? यहां तक कि मैं अपने दामाद से उसके सामने बात करती तो वो मुझ पर शक करता।
शक का कीड़ा बहुत खतरनाक होता है। इसको मारने की दवाई भी नहीं है। अक्सर मारपीट के बाद रात में घर से बाहर निकाल देता। ऐसी कितनी ही रातें मैंने अपने ही घर के बाहर के चौखट पर बिताई हैं।’
कला ये सारी बातें कह रही हैं और मेरी नजर उनके मंगलसूत्र पर पड़ती है। मैं उनसे पूछती हूं-
इतना सब कुछ होने के बाद भी आप पति के साथ ही रहती हैं?
कला मुंह से कुछ नहीं कहतीं। पत्थर सी नजरों से ऐसे सारी बातें बता जाती हैं, मानों उन्हें अपनी आपबीती से फर्क पड़ना बंद हो गया हो।
कुछ सेकेंड बाद कहती हैं- ‘मेरा कसूर इतना था कि मैं घर से बाहर काम करने जाती। घर पर कोई मेहमान आ जाए, उनसे हंस कर दो-चार बातें कर लूं। उस दिन मेरी शामत आ जाती थी। कहने लगता क्यों हंस कर बात कर रही थी।
काम पर बाहर जाते वक्त वो मेरा फोन ले लेता है। किससे बात हुई। वो रोजाना चेक करता था कि किसका मैसेज आया है। कुछ दिनों तक यह सिलसिला चला। मैं इन सब से इतनी तंग आ गई कि मोबाइल रखना छोड़ दिया।
किसी से तो बात करने पर शक नहीं करता है?
कला बिना सेकेंड की देरी से जवाब देती हैं। उसका सीधा कहना है किसी आदमी से बात मत करो। किसी औरत से बात करने पर भी उसे यह डर सताता है कि मैं उसके बारे में सच न बता दूं।
अपनी बेटी की तरफ इशारा करते हुए कला कहती हैं कि उसकी वजह से मेरे बच्चे भी सही से पढ़ नहीं पा रहे। बेटी 6 साल की हो गई है, लेकिन स्कूल नहीं जा सकी है।
इतना कहकर कला बेटी को लेकर बाहर निकल जाती हैं।
आखिर में मुलाकात हुई सखी सेंटर की कोऑर्डिनेटर शिवानी से। शिवानी पिछले 7 सालों से ऐसी औरतों के लिए काम कर रही हैं।
आपके मुताबिक आखिर क्या वजह है कि एक औरत जब काम या पढ़ने के लिए बाहर जाती है तो पति उनके चरित्र पर शक करने लगते हैं?
ये शिवानी हैं। हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए बने गौरवी सखी सेंटर की कोऑर्डिनेटर।
कहती हैं, ‘पितृसत्तात्मक समाज में औरत को कंट्रोल करने की चाहत की वजह से ऐसा होता है। पति अपनी पत्नियों को काबू में रखना चाहते हैं। दोस्त और आस-पड़ोस क्या, रिश्तेदारों से बात करने पर भी उन्हें दिक्कत होती है।
घर के अंदर लाखों महिलाएं इस हैवानियत की शिकार हैं। क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के 2021 के आंकड़ों के मुताबिक 1 लाख से भी ज्यादा महिलाएं पति या परिवार की हिंसा की शिकार हैं और यह आंकड़ा साल 2020 से 15.3% ज्यादा है।’
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