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पर्यावरण संरक्षण में यज्ञ का महत्व: पर्यावरण दिवस पर विशेष आलेख

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डॉ. सुरेन्द्र कुमार शर्मा
अध्येता – पं. मधुसूदन ओझा साहित्य एवं लिपि विशेषज्ञ
समन्वयक – पाण्डुलिपि संसाधन केन्द्र, वैदिक हेरिटेज एवं पाण्डुलिपि शोध संस्थान,
राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर

महाराज ईश्वरी सिंह का पुरुष मेध यज्ञ
अपरा काशी के नाम से सुविख्यात नगर जयपुर में प्राचीन समय से यज्ञ होते रहे हैं जिनसे पर्यावरण को संरक्षण मिलता रहा है, कयी-कयी दिनों तक यज्ञों का चलते रहना प्रदूषण को दूर करता था उस समय के बड़े-बड़े यज्ञ संपन्न हुए,
जयपुर रियासत ही एक ऐसी रियासत रही जिसमें केवल धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न कराने के लिये भारत प्रसिद्ध विद्वानों को जयपुर बुलाकर ब्रह्मपुरी में बसाया गया। यज्ञ राज परिवार के द्वारा कराए गए जिससे पता चलता है कि अपनी प्रजा की सुख -समृद्धि कल्याण के लिए महाराज धार्मिक यज्ञ अनुष्ठानों को कराया करते थे। इस तरह के एक यज्ञ पुरुष मेघ का वर्णन हमें विद्या भूषण संग्रहालय पुरातत्व मंदिर जयपुर की एक हस्तलिखित पांडुलिपि से मिलता है ,की संवत 1792 से 1800 के मध्य सवाई जयसिंह के पुत्र सवाई ईश्वरी सिंह ने पुरुष मेध यज्ञ कराया था यह 40 दिन तक चलने वाला श्रोत याज्ञ है। इसका वर्णन शतपथ ब्राह्मण में मिलता है हस्तलिखित पांडुलिपि में श्री सुधाकर महाशब्दे पौण्डरीक द्वारा इस यज्ञ को संपन्न कराया गया उल्लेख प्राप्त होता है भारत प्रसिद्ध इतिहासकार स्वर्गीय श्री जगन्नाथ सरकार ने जयपुर के इतिहास के लेखन के पश्चात जयपुर प्रसिद्ध स्वर्गीय श्री हरनारायण जी पुरोहित विद्या भूषण ने इसके कुछ अंश उद्धृत किए थे उनके संग्रह में यज्ञस् नामक पांडुलिपि में प्राप्त होता है, कि सवाई ईश्वर सिंह ने तीन यज्ञ संपन्न किये जिनमें पुरुष मेध यज्ञ का वर्णन मिलता है यह यज्ञ प्रजा के सुख समृद्धि कल्याण के लिए किया गया था।

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