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मां पर लिखे शेरों से यूं मशहूर हुए मुनव्वर राणा, याद करें मुनव्वर राणा के कुछ शेरों को, जिन्होंने उन्हें सबसे ज्यादा मशहूर किया

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वह कबूतर क्या उड़ा छप्पर अकेला हो गया, माँ के आंखें मूँदते ही घर अकेला हो गया

चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है

अभी जिंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा, मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है

छू नहीं सकती मौत भी आसानी से इसको, यह बच्चा अभी माँ की दुआ ओढ़े हुए है

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है, माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है

मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ, माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ

सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’ रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना

लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती, बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती

अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’ माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है

लिपट के रोती नहीं है कभी शहीदों से, ये हौसला भी हमारे वतन की मांओं में है

ये ऐसा कर्ज है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता, मैं जब तक घर न लौटूं मेरी माँ सज़दे में रहती है

“जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है*

घेर लेने को जब भी बलाएँ आ गईं, ढाल बनकर माँ की दुआएँ आ गईं

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई, मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई

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