मुस्लिम देशों में कभी पाकिस्तान ने भारत को दी थी मात, आज हिंदुस्तान कर रहा पलटवार, यूं पलटी बाजी
India Middle East: इजरायल और हमास के बीच जारी जंग में भारत के रुख पर भी चर्चा हो रही है। मिडिल ईस्ट या पश्चिमी एशिया अब वह हिस्सा बन गया है जहां पर भारत की भूमिका पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो गई है। कभी यहां देश पाकिस्तान को तवज्जो देते थे।
रियाद: इजरायल और हमास के जंग की वजह से मध्य पूर्व या पश्चिमी एशिया के हालात पूरी तरह से बदल गए हैं। इस क्षेत्र में उथल-पुथल की स्थिति है और ऐसे में सबकी नजरें भारत पर भी लगी हुई हैं। आज भारत इस क्षेत्र की स्थिति में कैसे प्रतिक्रिया देता है और कब तक देता है, उसका इंतजार सभी को रहता है। विदेश नीति के जानकारों की मानें तो आज से कुछ साल पहले तक हालात ऐसे नहीं थे। मध्य पूर्व में पाकिस्तान का बोलबाला था और भारत अलग-थलग था। लेकिन आज पाकिस्तान किनारे हो चुका है और भारत का कद पहले की तुलना में कई गुना तक बढ़ गया है।
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हमेशा से भारत के लिए रहा अहम
सन् 1947 में आजादी मिलने के बाद से ही मध्य पूर्व भारत के लिए एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह है यहां से होता व्यापार और यहां मौजूद तेल का भंडार। मध्य पूर्व सदियों से समुद्र के जरिए होने वाले व्यापार में भारत के लिए महत्वपूर्ण रास्ता रहा है। आज तक मिस्र की स्वेज नहर भारत के लिए व्यापार का अहम रास्ता है। आजादी मिलने के बाद भारत कई दशकों तक 60 फीसदी से ज्यादा का आयात और निर्यात स्वेज नहर के जरिए ही करता था। भारत, इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के लिए तेल का एक प्रमुख आयातक देश भी बन चुका है। ऐसे में भारत की मध्य-पूर्व रणनीति का एक बड़ा हिस्सा हमेशा से यह सुनिश्चित करना रहा था कि यह महत्वपूर्ण व्यापार जारी रहे।
कश्मीर और पाकिस्तान
जो एक और वजह है वह है पाकिस्तान और कश्मीर जो पिछले सात दशकों से राजनीति को प्रभावित करने वाले मसले रहे हैं। पाकिस्तान ने आजादी के बाद से ही लगातार मध्य-पूर्व के ताकतवर देशों से कश्मीर और उसके साथ संघर्ष पर अपना समर्थन प्राप्त करने की कोशिशें जारी रखीं। अपने मकसद के लिए और इन देशों की सहानुभूति हासिल करने के लिए पाकिस्तान ने इस्लामिक देश वाला कार्ड खेला। उसने हमेशा एक मुस्लिम देश के तौर पर स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश की है। जबकि भारत ने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि पाकिस्तान के प्रयास सफल न होने पाएं। शीत युद्ध के दौरान भारत ने संघर्ष को सीमित करने के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन के जरिए क्षेत्रीय शक्तियों के साथ काम करने की कोशिश की। बाद में सारा ध्यान आतंकवाद का मुकाबला करने पर केंद्रित हो गया।
भारत ने बदली नीति
भारत ने सन् 1992 तक इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष में फिलिस्तीन का साथ दिया। इजरायल के साथ संबंधों को पूरी तरह से सामान्य करने से इनकार कर दिया। भारत को उम्मीद थी कि कश्मीर मसले पर उसे अरब देशों का समर्थन मिलेगा लेकिन यह नीति पूरी तरह से असफल रही। सन् 1965 और 1971 के युद्धों में कुछ देश तटस्थ थे जबकि ईरान जैसे अन्य देश खुले तौर पर पाकिस्तान के समर्थक थे। ईरान और सऊदी जैसे रूढ़िवादी देशों ने पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए थे। विशेषज्ञों के मुताबिक इन देशों को मिस्र के शासक नासिर का डर था। उन्हें ये देश एक कट्टरपंथी के तौर पर देखते थे। भारत ने सन् 2000 से अपनी रणनीति को बदलना शुरू किया।
भारत ने हासिल किए लक्ष्य
खाड़ी देशों के साथ भारत का व्यापार साल 2001 में 5.5 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2022 में 133 बिलियन डॉलर हो गया है। यूएई, सऊदी अरब जैसे देशों में निवेश इस बात की पुष्टि करता है कि आज भारत को एक छोटे आर्थिक भागीदार के रूप में देखा जाता है। जैसे-जैसे भारत का कद बढ़ता गया, उसने इजरायल, ईरान और यूएई के साथ मजबूत रिश्ते बनाए। यहां तक कि सऊदी अरब भी एक महत्वपूर्ण आर्थिक और सुरक्षा भागीदार बन गया है। इन सबके बीच पाकिस्तान की स्थिति काफी कमजोर हो गई है। यहां तक कि जब भारत ने कश्मीर में धारा 370 को हटाया तो पाकिस्तान के विरोध के बावजूद मध्य पूर्व के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों में सुधार हुआ।
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